Thursday, March 28, 2024

कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में आँकड़ों की भी है अपनी अहमियत

कोरोना काल के आंकड़े हमारे अस्तित्व और विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होने वाले हैं। इस बात पर दुनिया भर के वैज्ञानिक और समाजशास्त्रियों का ध्यान तेजी से गया है। वे इसे इकट्ठा करने और इसके विश्लेषण पर जोर दे रहे हैं। हालांकि महज आंकड़ों से न तो लोगों की बीमारी दूर की जा सकती है और न ही लोगों का पेट भरा जा सकता है। उसके लिए व्यवहारिक कार्रवाई की जरूरत है। केवल आंकड़े एक डाटा रिलीजन पैदा करते हैं जो अच्छा काम भी कर सकता है और बुरा। वह लोकतांत्रिक व्यवस्था की पूंजी भी हो सकता है और तानाशाही व्यवस्था की भी। 

डाक्टरों के कई संगठनों ने इस बात पर चिंता जताई है कि अभी तक किसी भी सरकारी एजेंसी ने कोरोना के गंभीर मरीजों के क्लीनिकल डिटेल यानी इलाज का ब्योरा इकट्ठा करना नहीं शुरू किया है। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा तब तक इस बीमारी के प्रभाव का सार्थक विश्लेषण नहीं किया जा सकेगा और उससे राहत और बचाव का काम भी बेतरतीब होगा। ऐसा न होने से मरने वालों की संख्या महज गिनती बनकर रह जाएगी। डाक्टरों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्रालय चुनिंदा आंकड़े जारी कर रहा है। जैसे कि कितने लोग संक्रमित हैं। कितने मर रहे हैं और कितने ठीक हो रहे हैं।

सरकार ने बताया है कि भारत में कोरोना से मरने वालों में 45 साल से कम आयु के 14 प्रतिशत लोग हैं। यह संख्या चौंकाती है। न्यूयार्क में कोरोना की मौतों में 45 साल से कम आयु के लोगों की संख्या 4.5 प्रतिशत है और चीन में 6.3 प्रतिशत है। यानी भारत में कोरोना की मौतें क्रमशः तीन गुना और दो गुना ज्यादा हैं। लेकिन इतने आंकड़े विश्लेषण और किसी योजना को बनाने के लिए काफी नहीं हैं। बीमारी की प्रसार प्रणाली को जानने के लिए और उससे लड़ने की तैयारी के लिए और भी ब्योरा चाहिए। 

ऐसे ही मौके पर अमेरिका में सक्रिय कुछ भारतीय डाटा इंजीनियरों ने ONE नाम से एक व्यापक ढांचा तैयार किया है। वे इसे कोविड पैंडमिक लाइफ साइकिल कहते हैं। वे इस बारे में  #wecansolvetogetheronly नाम से एक हैसटैग चला रहे हैं। वे चाहते हैं कि एक केंद्रीकृत प्लेटफार्म पर सरकारी कर्मचारी, मरीज, व्यक्ति, अस्पताल, आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई से जुड़े हुए तमाम आंकड़े इकट्ठा कर लिए जाएं। वे महामारी के काल को तीन चरणों में बांटकर इसे व्यवस्थित करना चाहते हैं। पहला बीमारी से तीन माह पहले की तैयारी। दूसरा बीमारी के दौरान की तैयारी और तीसरा बीमारी काबू होने के तीन माह बाद की तैयारी। इससे पुलिस और अस्पताल के कर्मचारियों की उपलब्धता, व्यक्ति की स्थिति, अस्पतालों की स्थिति और आवश्यक सामानों की उपलब्धता का एक स्पष्ट खाका नीति निर्माताओं और व्यवस्थापकों के समक्ष उपस्थित रहेगा। 

इस काम में अमेरिका में रह रहे डाटा इंजीनियर विवेक गुप्ता, दीप्ति कालरा, सोमेश लोहानी, सैना कालरा, अनुश्री सेठ, शरद देवलपल्ली, यूनुस ख्वाजा, अमित गाबा और नेहा शेरावत शामिल हैं। उनके अलावा इस टीम में सहयोग करने वाले विशेषज्ञों की लंबी टीम है। covid-19 shorturl.at/flsv8 पर लांच किए गए इस प्रोग्राम में सरकारी अधिकारियों के लिए आंकड़े जमा करने का चार्ट तैयार किया गया है।

इस चार्ट को तीन श्रेणियों के लिए लक्षित किया गया है। पहली श्रेणी सरकारी अधिकारियों के लिए है। दूसरी श्रेणी व्यवसायियों के लिए है। इस श्रेणी में अस्पताल और आवश्यक और गैर आवश्यक वस्तुओं के आपूर्तिकर्ता हैं। चूंकि अमेरिका में स्वास्थ्य सेवाएं निजी क्षेत्र में ज्यादा हैं इसलिए अस्पतालों को भी व्यवसाय की श्रेणी में ही रखा गया है। तीसरी श्रेणी व्यक्तियों की है। इसमें बीमार, बूढ़े, युवा और बच्चों को लक्षित करके विभाजन किया गया है। 

उनके लिए पहले चरण में यह व्यवस्था की गई है कि वे उस आबादी का अनुमान लगाएं जो महामारी से 1,2,3 चरण में प्रभावित होने वाली है। इसमें आबादी का घनत्व, साझी प्रतिरोधक क्षमता का स्कोर, यात्रा संबंधी पाबंदियों का ब्योरा जमा करने का प्रस्ताव है। उसके बाद यह भी देखने का सुझाव दिया गया है कि कौन से लोग हैं जो बीमार होने की देहरी पर खड़े हैं। इस बात का अनुमान लगाने का भी सुझाव दिया गया है कि कौन सी आबादी क्वारंटाइन के आदेश का उल्लंघन कर सकती है। इस कालम में उन सार्वजनिक जमावड़ों पर भी ध्यान रखने की बात है जहां से बीमारी फैल सकती है। 

इस चार्ट में स्वास्थ्य कर्मचारियों और पुलिस को अलग अलग श्रेणी में रखकर उनके लिए तमाम आंकड़े जमा करने और उसके आधार पर हस्तक्षेप का सुझाव दिया गया है। चार्ट में यह अनुमान लगाने का सुझाव दिया गया है कि मरीज की रोग प्रतिरोधी क्षमता और स्वास्थ्य कर्मी के बीच में क्या संबंध है। उसके बाद यह भी पता करने के लिए कहा गया है कि कितने समय बाद स्वास्थ्य कर्मी को क्वारंटाइन किया जा सकता है। 

आवश्यक सामानों में खाने पीने की चीजों की उपलब्धता उनकी मांग का अनुमान और उसे सप्लाई करने की तैयारी करने को विधिवत व्यवस्थित करने का तरीका बताया गया है। इसी के साथ स्कूलों, कालेजों, पार्कों, परिवहन और दूसरी गैर आवश्यक सेवाओं के लिए भी तैयारी का तरीका बताया गया है। इस प्रोग्राम के बारे में ज्यादा ब्योरा https//:www.linkedin.com/in/vivek440 से संपर्क करने पर प्राप्त हो सकता है। 

इस काल ने हमारे समाज के बहुत सारे अंगों और प्रक्रियाओं को खोल कर रख दिया है। यह समय उन्हें जानने का भी है और व्यवस्थित करके उनके हस्तक्षेप सुनिश्चित करने और उन्हें नए सिरे से संचालित करने का है। गरीबी, बीमारी और महामारी से लड़ना तो समाज और उसकी संस्थाओं का धर्म है। लेकिन वह धर्म डाटा धर्म के बिना नहीं निभाया जा सकता। इस बारे में देश और दुनिया के डाटा विशेषज्ञों की राय और उनके कार्यक्रम बहुत सहायक हो सकते हैं।

(अरुण कुमार त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।) 

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