क्रांतिकारी गीतों से जनता के बीच विद्रोह की अलख जगाने वाले ‘गदर’

जन-क्रांति के विचार-संदेश को गीतों के माध्यम से जनता तक पहुंचाने वाले जन-गायक गदर अब हमारे बीच नहीं रहे। आजीवन अपनी आंखों में क्रांति का सपना लिए वह जनता के बीच संघर्ष की अलख लगाते और लोगों को क्रांति के लिए जगाते रहे। तेलगु में गाए गए उनके क्रांति गीतों की अनुगूंज उत्तर के हिंदी भाषी राज्यों तक थी। जन-क्रांति के लिए जीवन भर संघर्ष करने वाले गदर न तो सत्ता के आगे कभी झुके और न ही सरकारी दमन से टूटे। उनके कंठ से निकली आवाज फासीवाद के विरुद्ध प्रतिरोध की आवाज तो थी ही साथ ही इस अंधेरे के खिलाफ रोशनी और जनता के लिए एक उम्मीद भी थी। वह कलम उठाते तो कविता लिखते लेकिन वह ललकार बन जाती।

हैदराबाद के एलबी स्टेडियम में रखे गदर के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने वालों का ताता लगा है। श्रद्धांजलि देने वालों में युवाओं-महिलाओं के साथ ही कवि, साहित्यकार, बुद्धिजीवी और राजनेता शामिल है। दक्षिण भारत का कोई दल ऐसा नहीं है जिसके प्रतिनिधि गदर को श्रद्धांजलि देने न पहुंचे हों। थोड़ी देर में ही उनके पार्थिव शरीर को विधानसभा के पास तेलंगाना शहीद स्मारक गन पार्क में लाया जाएगा और वहां से जुलूस के रूप में अलवाल स्थित उनके आवास तक ले जाया जाएगा। गदर का अंतिम संस्कार अलवाल के बाहरी इलाके में उनके द्वारा स्थापित महाबोधि विद्यालय में राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

एलबी स्टेडियम में उनको श्रद्धांजलि देने वालों की लंबी कतार को देखकर उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जीवन भर सत्ता से संघर्ष करने वाले गदर ने अपनी मौत के बाद शासक दलों को अपने और अपने काम के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए विवश कर दिया। तभी तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने उन्हें तेलंगाना को ‘गौरवान्वित करने वाला सपूत’ बताया।

गदर को 10 दिन पहले कार्डिएक अरेस्ट के बाद हैदराबाद के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने कहा कि फेफड़ों और मूत्र संबंधी समस्याओं और बढ़ती उम्र के कारण उनका निधन हुआ। वह 77 वर्ष के थे।

गदर का जन्म 1949 में अविभाजित आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के मेडक ज़िले के तूप्रान में एक दलित परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम गुम्मडी विट्ठल राव था। 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रवासी भारतीयों द्वारा स्थापित गदर आंदोलन की तर्ज पर उन्होंने अपना उपनाम गदर कर लिया था। ‘गदर’ का अर्थ ‘विद्रोह’ होता है। गदर को लोकप्रिय रूप से ‘प्रजा गयाकुडु’ या ‘लोगों के गायक’ के रूप में जाना जाता था। वह लंबे समय से माओवादी समर्थक रहे। और उन्होंने 2018 में पहली बार मतदान किया था। उनके परिवार में उनकी पत्नी विमला, उनका एक बेटा सुर्यूडू और बेटी वेनेल्ला हैं।

उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके 1970 के दशक में उन्होंने कुछ दिनों के लिए केनरा बैंक में काम किया। इसके बाद वो ‘आर्ट लवर्स एसोसिएशन’ में शामिल हो गए, जिसकी स्थापना फ़िल्म निर्देशक बी. नरसिंहराव ने की थी। वो नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए जागरूकता फैलाने का काम करने लगे। इसके बाद वो नक्सल राजनीति में शिरकत करने लगे। वो जन नाट्य मंडली के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। यह सांस्कृतिक संगठन पीपुल्स वॉर ग्रुप से जुड़ा हुआ था।

पीपुल्स वॉर ग्रुप अप्रैल 1980 में अविभाजित आंध्र प्रदेश में अस्तित्व में आया था, इसकी स्थापना कोंडापल्ली सीतारामैय्या ने की थी जो अपने दौर के जाने-माने नक्सली नेताओं में गिने जाते थे। नक्सल आंदोलन के कारण उन्हें अंडरग्राउंड भी होना पड़ा था। उनका मुख्य काम गुजरात और अन्य इलाक़ों में मार्क्सवादी और लेनिनवादी विचारधारा से प्रेरित सांस्कृतिक संगठनों को एकजुट करना था।

‘ग़दर’ के बारे में कहा जाता है कि उनके गीतों से प्रेरित हो कर कई युवाओं ने उस दौर में नक्सल आंदोलन में शामिल होने का फ़ैसला किया था। यहां तक कि उन्हें “प्रजा युद्ध नौका” (आमजन के संघर्ष की नौका) का नाम दे दिया गया।

1990 के दशक के मध्य में एक सम्मेलन में उन्होंने नक्सलाइट मूवमेंट से अपने मतभेदों को उठाया और उसके बाद मतभेद बढ़ने लगे। 1997 में अज्ञात लोगों ने उन पर हमला किया। इस हमले के बाद उनकी जान तो बच गई लेकिन जिस्म में धंसी एक गोली मरते दम तक उनके शरीर में ही रही। नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों ने इस हमले का आरोप पुलिस पर लगाया।

1990 के दशक के आख़िर में उन्होंने अपनी राजनीतिक विचारधारा में बदलाव किया और उनका झुकाव आंबेडकरवाद की तरफ हो गया। वो आंबेडकरवाद को मार्क्सवाद से जोड़ने की ज़रूरत पर बल देने लगे। साल 2000 के बाद उन्होंने तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में सक्रियता से हिस्सा लिया। उनका गीत “पोस्दुस्थुन्ना पोद्दुमीदा नाडुस्थुन्ना कालमा” तेलंगाना आंदोलन का मुख्य गाना बन गया।

अपनी ट्रेडमार्क धोती, लाल शॉल और लकड़ी की छड़ी के साथ, गदर तेलंगाना राज्य आंदोलन का सबसे प्रसिद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक चेहरा थे, जो इसे अपने भावपूर्ण गीतों और संगीत से प्रभावित करते थे।

2014 में नया राज्य बनने के बाद गदर ने इसकी राजनीति में जगह पाने की असफल कोशिश की। लेकिन उपेक्षित किए जाने पर उनका मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) से मतभेद हो गया और उन्होंने उन पर दलितों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।

कई वर्षों तक उन्होंने हाशिए पर रहने वाले समुदायों के उत्पीड़न, दलित अधिकारों और किसानों जैसे मुद्दों पर गैर-राजनीतिक संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने कुछ समय के लिए तेलंगाना ज्वाइंट एक्शन कमेटी के संयोजक और तेलंगाना जन समिति पार्टी के संस्थापक प्रोफेसर बी कोडंदरम के साथ दोस्ती की। उन्होंने सीपीएम समर्थित टी एमएएस फोरम का भी समर्थन किया-जो 272 सामाजिक और सांस्कृतिक संघों का एक संगठन है जिसे तेलंगाना मास एंड सोशल ऑर्गेनाइजेशन फोरम कहा जाता है।

गदर और केसीआर के बीच तेलंगाना आंदोलन के चरम काल 2010 में ही मतभेद शुरू हो गया था। तेलंगाना आंदोलन पर तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) का कब्जा होने के कारण गदर ने अक्टूबर 2010 में तेलंगाना प्रजा फ्रंट (टीपीएफ) की शुरुआत की, जिसका लक्ष्य दलितों और पिछड़े वर्गों को एकजुट करना और आंदोलन पर नियंत्रण हासिल करना था। उन्होंने कहा था कि तेलंगाना जैसी जगह में, जहां हाशिए पर रहने वाले समुदायों की बड़ी आबादी है, केवल जन आंदोलन ही सफल होंगे, राजनीतिक दल नहीं।

2018 तक, वह केसीआर के आलोचक बने रहे और उन पर दलितों और हाशिए के समुदायों को धोखा देने का आरोप लगाया। लेकिन फिर उन्होंने मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के बारे में बोलना बंद कर दिया। 2017 में उन्होंने पतलून, पूरी आस्तीन वाली शर्ट और टाई पहनना शुरू कर दिया। उन्होंने क्लीन शेव लुक अपनाया और अपनी दाहिनी कलाई पर एक घड़ी पहननी शुरू कर दी, जिससे उन्होंने जीवन भर परहेज किया था। हालांकि, 2022 में वह अपनी सामान्य पारंपरिक पोशाक में वापस आ गए।

गदर को आखिरी बार 2 जुलाई को खम्मम में एक सार्वजनिक बैठक में राहुल गांधी के साथ देखा गया था। किसी भी पार्टी या मंच पर अपनी पकड़ मजबूत न कर पाने के कारण गदर ने हाल ही में गदर प्रजा पार्टी की शुरुआत की, लेकिन जल्द ही बीमार पड़ गए।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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