Thursday, April 25, 2024

सरकार ने दोहराया- देश में एनआरसी लागू करने पर अभी नहीं हुआ कोई फैसला

देश में फिलहाल एनआरसी लागू करने पर कोई फैसला नहीं हुआ है। यह बात गृह मंत्रालय ने संसदीय समिति द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में कही है। इससे पहले पिछले साल भी केंद्र सरकार लोकसभा में लिखित तौर पर कह चुकी है कि अभी इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है।

केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने कहा है कि सरकार ने अभी तक देशव्यापी एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) को लागू करने का फैसला नहीं किया है। गृह मंत्रालय ने यह बात गृह मंत्रालय की संसदीय समिति के सदस्य कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा द्वारा उठाए गए सवाल के जवाब में कही है। संसदीय समिति ने मंत्रालय से यह कहते हुए सवाल पूछा था कि एनपीआर और जनगणना को लेकर पहले ही काफी संशय और आक्रोश देखा जा रहा है, खासतौर से जब से सरकार ने यह संकेत दिए हैं कि केंद्र सरकार जल्द ही एनआरसी लागू करेगी।

इसके जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा, “जनगणना के दौरान किसी की भी निजी स्तरीय सूचनाएं गुप्त रहती हैं। जनगणना में सिर्फ संकलित आंकड़े ही विभिन्न प्रशासनिक स्तर पर जारी किए जाते हैं। पहले की ही तरह इस बार भी जनगणना को लेकर लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया जाएगा, ताकि 2021 की जनगणना सफलतापूर्वक पूरी हो सके। जनगणना के लिए प्रश्नावली का एनपीआर (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) के साथ देशभर में सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया गया है। सरकार के विभिन्न स्तरों पर समय-समय पर यह स्पष्ट किया जाता रहा है कि फिलहाल एनआरसी लागू करने पर कोई फैसला नहीं हुआ है।

गौरतलब है कि देश के कई स्थानों पर संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के बीच सरकार ने 4 फरवरी 2020 को लोकसभा में कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लाने के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है।

गृह मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में कहा था कि सरकार ने अभी तक एनआरसी तैयार करने की शुरुआत का कोई फैसला नहीं लिया है। तब लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं किया है। उन्होंने लिखित जवाब में कहा था कि अभी तक भारतीय नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकता रजिस्टर तैयार करने का कोई फैसला नहीं हुआ है। उन्होंने यह जवाब सांसद चंदन सिंह और नागेश्वर राव के सवाल के जवाब में कही थी।

इसके पहले 17 जुलाई 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में कहा था कि केंद्र सरकार गैरकानूनी तौर पर भारत के किसी भी हिस्से में रह रहे लोगों की पहचान करेगी और उन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक देश निकाला देगी। अमित शाह ने यह बात समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान के उस सवाल के जवाब में कही थी, जिसमें उन्होंने पूछा था कि क्या सरकार असम के अलावा अन्य राज्यों में भी एनआरसी लागू करने वाली है।

इसके जवाब में अमित शाह ने कहा था कि यह एक अच्छा सवाल है। एनआरसी असम समझौते का हिस्सा है और बीजेपी के घोषणापत्र में भी था, जिसके आधार पर वहां बीजेपी की सरकार बनी है। सरकार सभी गैरकानूनी लोगों की पहचान करेगी और उन्हें देश के हर हिस्से से बाहर निकालेगी।

22 दिसंबर 2019 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि पिछले पांच सालों की उनकी सरकार में एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई है। उन्होंने कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों पर लोगों में भ्रम पैदा करने का आरोप लगाया था। प्रधानमंत्री ने देश भर में एनआरसी लागू करने की बात खारिज करते हुए कहा था कि मैं देश के 130 करोड़ भारतीयों को बताना चाहता हूं कि 2014 से लेकर अब तक में कहीं भी ‘एनआरसी’ शब्द पर चर्चा नहीं हुई है। ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम में किया गया है।

गौरतलब है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादा किया कि अलग-अलग चरणों में देश भर में एनआरसी लागू की जाएगी। इसके अलावा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी 20 जून 2019 को संसद में कहा था कि मेरी सरकार ने घुसपैठ से प्रभावित क्षेत्रों में प्राथमिकता के आधार पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ लागू करने का फैसला किया है। बाद में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बजट सत्र की शुरुआत में 31 जनवरी 20 को संसद में दिए अपने भाषण में एनआरसी का उल्लेख नहीं किया।

शाहीन बाग़ में नागरिकता क़ानून और संभावित एनआरसी के विरोध में आयोजित अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी एक बड़ा मुद्दा बन गया था। शाहीन बाग़ में कोरोना काल के पहले तक बड़ी संख्या में महिलाएं धरने पर बैठी थीं। शाहीन बाग़ के समर्थन में देश के विभिन्न हिस्से में धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना था कि नागरिकता संशोधन क़ानून असंवैधानिक है, क्योंकि इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव हो रहा है। यही भेदभाव आगे चलकर देश के वैध नागरिक मुसलमानों के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है, जो एनआरसी लागू होने पर दस्तावेज़ लागू नहीं कर पाएंगे।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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