जादवपुर विश्वविद्यालय को दूसरा जेएनयू बनाना चाहती है बीजेपी

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जादवपुर विश्वविद्यालय में केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के घुसकर दंगा करने का मसला देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। सामने आए वीडियो में साफ-साफ देखा और सुना जा सकता है कि वह विश्वविद्यालय के कुलपति से कितनी बदजुबानी से बात कर रहे हैं। कहीं किसी छात्रा को कमरे पर बुलाकर मर्दानी ताकत के प्रदर्शन की बात कह रहे हैं और कहीं किसी छात्र का कॉलर पकड़कर उन्हें ‘सबक’ सिखाते देखा जा सकता है। अवलन तो एक केंद्रीय मंत्री का इस छिछोरेपन पर उतरना ही शोभा नहीं देता। लेकिन यहां बाबुल सुप्रियो तो उसकी भी सारी हदें पार करते दिखते हैं।

कुलपति से उन्हें साफ-साफ सवाल करते सुना जा सकता है कि वह उनकी अगवानी के लिए क्यों नहीं आए? उनका कहना था कि वह सांसद हैं और ऊपर से एक मंत्री हैं लिहाजा यह कर्तव्य बनता था कि कुलपति उनके स्वागत में दरबान की तरह गेट पर खड़े रहते। इस शख्स को देश की शिक्षा व्यवस्था और उसके संचालन की भी न्यूनतम जानकारी नहीं है। उसे पता होना चाहिए कि देश में विश्विद्यालय कैंपस बिल्कुल स्वायत्त होते हैं। और यह सब एक दूरगामी सोची-समझी नीति के तहत होता है। जिसमें यह बात शामिल होती है कि तमाम हस्तक्षेपों से दूर विश्वविद्यालय स्वतंत्र रूप से ज्ञान-विज्ञान और शोध के केंद्र के तौर पर विकसित किया जाएं। उनके काम में किसी भी तरह की दखलंदाजी देश में स्वतंत्र मेधा के विकास में बाधक साबित होगी। जिसका आखिरी नुकसान देश और समाज को होगा। लिहाजा किसी भी सरकार और उसके प्रतिनिधि को यह अधिकार हासिल नहीं है कि वह उसके काम में कोई हस्तक्षेप करे।

और इसी लिहाज से कुलपति अपने परिसर का मालिक होता है। उसकी मर्जी के बगैर वहां एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है। वहां बाबुल सुप्रियो जाकर कहते हैं कि आप मेरे कार्यक्रम में क्यों नहीं आए? सच तो यह है कि कुलपति चाहता तो वहीं खड़े-खड़े उनका कार्यक्रम रद्द कर सकता था। रही बात प्रोटोकाल की तो यह कहीं नहीं लिखा है कि अगर कोई केंद्रीय मंत्री या सरकार का कोई प्रतिनिधि कैंपस में आता है तो उसकी आवभगत करना कुलपति की मजबूरी है। वह उसी तरह से बिल्कुल स्वतंत्र है किसी कार्यक्रम में शामिल होने और न होने के लिए जैसे विश्वविद्यालय का कोई दूसरा शख्स। इस मामले में कुलपति सिर्फ और सिर्फ सूबे के राज्यपाल के प्रति जवाबदेह हैं वह भी अपनी स्वायत्तता की सीमाओं में। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह सभी विश्वविद्यालयों का पदेन कुलाधिपति होता है।

चलिए एकबारगी मान लेते हैं कि बाबुल को देश की शिक्षा और उसकी संस्थाओं के संचालन की व्यवस्था नहीं पता है। लेकिन देश में गुरुओं के सम्मान की जो परंपरा है क्या उसका भी उनको ज्ञान नहीं है? क्या वह यह बात भूल गए कि गुरू और ईश्वर के साथ खड़े होने पर पहले गुरु के पैर छूने की परंपरा है। लेकिन इन मंत्री महोदय के कार्यक्रम की आयोजक उस विद्यार्थी परिषद से इसकी क्या उम्मीद की जा सकती है जिसके दामन पर मध्य प्रदेश के शिक्षक सब्बरवाल के खून के छीटे हैं। ज्ञान,शील और एकता की बात करने वाला यह संगठन “खून से तिलक करो, गोलियों से आरती” का नारा देता है और एबीवीपी डायनामाइट उसका सबसे प्रिय और चर्चित नारा है।

यह संगठन किसी गुरु और ईश्वर से पहले हथियारों की पूजा करता है। लिहाजा उससे किसी सम्मान और विवेक की उम्मीद करना बिल्कुल बेमानी है। और वही उसने वहां किया भी। परिसर के भीतर छात्रसंघ दफ्तर में आग लगा दी। और पूरे परिसर में जमकर हिंसा और तोड़-फोड़ की। जिसमें लेफ्ट से जुड़े कई छात्रों के सिर फट गए हैं। जिसको सामने आये वीडियो और तस्वीरों में बिल्कुल स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है।

खुद को सांस्कृतिक संगठन कहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस की यही सच्चाई है। उसने कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों के नाम पर देश में तलछट और दोयम दर्जे के लोगों की जमात खड़ी कर दी है। जिसमें बाबुल सुप्रियो से लेकर मनोज तिवारी और सपना चौधरी से लेकर महाभारत सीरियल में द्रौपदी का किरदार निभाने वाली रूपा गांगुली शामिल हैं। और ऐसे लोगों को अगर देश की अगुआई करने वाली राजनीति की कमान दे दी जाए तो देश का क्या होगा यह समझना किसी के लिए मुश्किल नहीं है। ये सभी ऐसे कलाकार हैं जो अपने-अपने क्षेत्रों में नाकाम रहे हैं और अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए उन्हें राजनीति की शरण लेनी पड़ी है।

जादवपुर का यह विवाद सोची समझी रणनीति के तहत खड़ा किया गया है। बीजेपी जादवपुर विश्वविद्यालय को दूसरा जेएनयू बनाना चाहती है। और उसे बदनाम कर उससे निकलने वाले छात्रों और उनकी पूरी विरासत को ही दागदार कर देना चाहती है। यह किसी बाबुल सुप्रियो का अपना फैसला नहीं था बल्कि यह ऊपर से निर्देशित था और विद्यार्थी परिषद और स्थानीय बीजेपी इकाई की इसमें पूरी भागीदारी थी। लेकिन इस घटना से यह बात साबित हो गयी है कि बीजेपी अब शर्म और हया के सारे पर्दों को फाड़कर सड़क पर लड़ाई करने के लिए तैयार है। लिहाजा विरोधी ताकतों को भी इनसे निपटने के लिए उसी स्तर पर तैयारी करनी होगी।

(लेखक महेंद्र मिश्र जनचौक के संस्थापक संपादक हैं।)

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