प्रयागराज। प्रयागराज के कंपनी बाग में हर दिन कुछ ऐसा दृश्य देखने को मिलता है, जो शायद हमारे समाज की मुख्यधारा से कहीं छूट गया है। इस बाग की हरी-भरी घास पर सुबह से शाम तक छात्र अपने सपनों को संजोए बैठे रहते हैं।
ये युवा, जो दूर-दराज़ के गांवों से यहां आए हैं, अपने दिल में एक ही ख्वाब लिए यहां बसते हैं, अफसर बनना, परिवार का सहारा बनना और अपने गांव का नाम रोशन करना।
हर चेहरा एक कहानी कहता है, हर आंखों में संघर्ष की वो गहराई है, जो समाज की नज़रों से छिपी हुई है। यहां पढ़ते इन छात्रों की कहानी में एक ऐसी ताकत और जज़्बा है, जिसे शब्दों में बयान करना आसान नहीं है।
प्रतापगढ़ से आए वीरेंद्र पटेल का संघर्ष सबसे अलग है। उन्होंने बचपन में ही अपने मां-बाप को खो दिया था। अब अकेले अपनी पढ़ाई का खर्च उठाना उनके लिए बड़ी चुनौती है। वीरेंद्र हर दिन कंपनी बाग में अपनी किताबों के साथ वक्त बिताते हैं, और उनके चेहरे की कठोरता उनकी मेहनत का प्रमाण देती है।
वे कहते हैं, “मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है। पढ़ाई के साथ-साथ कोचिंग में पढ़ाता भी हूं ताकि खुद का खर्च चला सकूं।” वीरेंद्र की बातों में जो दर्द और हिम्मत झलकती है, वो उनके संघर्ष का गवाह है। वो कहते हैं, “हर दिन एक नई चुनौती होती है, पर अफसर बनने का सपना मुझे थकने नहीं देता।”
सचिन पांडेय नागचौरी, सिद्धार्थनगर से आए हैं। उनके पिताजी किसान हैं और फर्टिलाइज़र का छोटा-सा काम करते हैं। सचिन का सपना है कि वह एक दिन UPSC पास करके अफसर बनें और अपने परिवार व समाज को गर्वित करें।
सचिन कहते हैं, “हम दो भाई हैं, दोनों पढ़ाई कर रहे हैं। गांव से दूर यहां आना और पढ़ाई के लिए संघर्ष करना आसान नहीं है, लेकिन इस बाग का माहौल हमें एकजुट करता है और हमें हौसला देता है।” सचिन की आवाज़ में वो संघर्ष और जज़्बा है, जो उन्हें हर दिन एक कदम और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
आसान नहीं गरीब छात्रों के लिए पढ़ाई
आजमगढ़ के अभिषेक का सपना है शिक्षक बनना, लेकिन लाइब्रेरी की महंगी फीस उनकी राह में रोड़ा है। वो कहते हैं, “यहां पढ़ना आसान नहीं है। कई बार लोग यहां घूमने आते हैं, रील्स बनाते हैं, जो हमारा ध्यान भटकाते हैं। लेकिन क्या करें, मेरे पास लाइब्रेरी की फीस देने का साधन नहीं है।”
उनके लिए कंपनी बाग ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां वे अपने सपने के लिए पढ़ाई कर सकते हैं। अभिषेक की बातें सुनकर समझ आता है कि कैसे एक छोटा सा सपना भी बड़े संघर्ष की मांग कर सकता है।
मिर्जापुर के वरुण, जिनके पिताजी किसान हैं, SSC की तैयारी में जुटे हैं। वो बताते हैं, “गांव से आकर लगा कि यहां का माहौल कुछ अलग है। इस बाग में पढ़ाई में जो सुकून मिलता है, वो कहीं और नहीं।”
वरुण के लिए ये सिर्फ एक पार्क नहीं, बल्कि उनकी मेहनत और संघर्ष का संगम स्थल है। हर सुबह जब वो यहां आते हैं, तो उनके भीतर एक नया उत्साह होता है। वो जानते हैं कि हर किताब का पन्ना उन्हें अपने लक्ष्य के करीब ले जा रहा है।
जौनपुर के सौरभ गुप्ता, जो यूपीएसआई बनने का ख्वाब संजोए हुए हैं, प्रयागराज के दारागंज में किराये के एक कमरे में रहते हैं। उनके पिताजी एक छोटे किसान हैं।
सौरभ कहते हैं, “यहां का शांत माहौल मुझे पढ़ाई में बहुत मदद करता है। जब हम सभी दोस्त मिलकर पढ़ते हैं, तो एक-दूसरे को प्रेरणा मिलती है।”
सौरभ की बातों में वो जज्बा है, जो शायद ही कहीं और देखा जा सके। वह जानते हैं कि यह संघर्ष उनके सपने को साकार करने का एकमात्र रास्ता है।
प्रयागराज के पूरामुफ्ती से आए हर्ष का सपना है कि वह SSC पास कर एक नौकरी पा सकें। तीन भाइयों और एक बहन वाले परिवार में उनके पिता एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं।
हर्ष कहते हैं, “घर की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि एक नौकरी ही हमारा सहारा बन सकती है। इसीलिए मेरी पूरी कोशिश है कि मैं जल्दी से जल्दी कामयाब हो सकूं।”
हर्ष के शब्दों में एक गहरी संजीदगी है, जो उनकी जिम्मेदारियों का एहसास कराती है। उनके लिए यह सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि परिवार की उम्मीद का बोझ भी है।
सपनों में पंख लगाता है खुला आसमान
प्रयागराज के रहने वाले रवि भी SSC की तैयारी में जुटे हैं। उनके पिताजी भी एक किसान हैं। रवि के लिए यह बाग एक ऐसी जगह है जहां उन्हें शांति मिलती है, एक ऐसा खुला आसमान है, जिसमें वे अपने सपनों को पंख दे सकते हैं।
रवि कहते हैं, “हर जगह पढ़ाई के लिए पैसे लगते हैं, लेकिन यहां कंपनी बाग में हम सभी एक ही ख्वाब के साथ मेहनत कर रहे हैं। यह जगह हमें हिम्मत देती है कि हम अपने सपनों को पूरा कर सकें।” रवि के चेहरे की मासूमियत में संघर्ष और सादगी का मेल दिखता है।
कंपनी बाग का यह हरा मैदान इन छात्रों के लिए सिर्फ एक पार्क नहीं, बल्कि एक संघर्ष की भूमि है। इस बाग की हर घास की नोक और पेड़ों की हर छांव इनकी मेहनत का गवाह है।
ये छात्र अपने छोटे-छोटे सपनों को लेकर यहां आते हैं, हर सुबह एक नई उम्मीद के साथ, कि शायद आज उनकी मेहनत उन्हें उनके लक्ष्य के एक कदम और करीब ले जाएगी।
इन छात्रों के लिए यह बाग ही उनकी लाइब्रेरी है, यह आसमान ही उनकी छत है, और यह हरा मैदान ही उनका क्लासरूम। मकान मालिकों के नखरों, किराये के छोटे-छोटे कमरों, और आर्थिक तंगी के बावजूद, ये सभी अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हैं।
दरअसल, प्रयागराज के कंपनी बाग की हरी-भरी घास पर बैठे ये छात्र, किताबों में गुम, एक ऐसे संघर्ष की कहानी लिख रहे हैं, जो शायद हमारे समाज की मुख्यधारा से गायब हो चुकी है। यहां आने वाले अधिकांश युवा आईएएस, पीसीएस जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।
यह जगह उनकी उम्मीदों और सपनों का गढ़ है, लेकिन इन छात्रों की संघर्षभरी जिंदगी को शायद ही कोई साहित्यकार, फिल्मकार, या मीडिया के माध्यम से समझने का प्रयास करता है।
कभी-कभी चमक उठते हैं जुगनू की तरह
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार संयोग मिश्र कहते हैं, “जब आजकल कोई छात्र कंपनी बाग में अपनी किताबों के साथ वक्त बिता रहा होता है, तो अचानक दिमाग में पीटर्सबर्ग के फ्योदोर दोस्तोवस्की के आत्मसंघर्ष में डूबे छात्र आ जाते हैं”।
“प्रयाग की गलियों में घूमते हुए पीटर्सबर्ग का ख्याल आना किसी बौद्धिक आडंबर का हिस्सा नहीं है, बल्कि इन छात्रों के संघर्ष की तुलना से उपजा विचार है। प्रयागराज के इन छात्रों के चेहरे साहित्य में कहीं खो गए हैं”।
“यह शायद हमारे साहित्यकारों का मोतियाबिंद है, जिसकी वजह से हमें चेखव और दोस्तोवस्की से उधार लेना पड़ता है।”
“हिंदी साहित्य में जब भी छात्रों का जिक्र होता है, तो अक्सर फणीश्वरनाथ रेणु और काशीनाथ सिंह जैसे लेखकों के उपन्यासों में ये लड़के जुगनू की तरह कभी-कभी चमकते हैं”।
संयोग आगे कहते हैं, “लेकिन वास्तविकता में, ये छात्र हमारे आस-पास हर जगह मौजूद हैं, लड़ते-झगड़ते, धूल-धूसरित होते, और सपनों के साथ संघर्ष करते। वे गांवों से सतुआ, गुड़, और पिसान लेकर आते हैं, और उनकी कड़ी मेहनत उन्हें शहरों में ला खड़ा करती है।”
वरिष्ठ पत्रकार संयोग यह भी कहते हैं, “प्रयागराज के कंपनी बाग में, इन छात्रों का संघर्ष हर दिन देखने को मिलता है। वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन इस सपने को पाने की राह में उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं”।
“उनकी साइकिलें, जिनके कैरियर चौड़े होते हैं, कंपनी बाग में झूलती दिखती हैं, जैसे उनके जीवन का प्रतीक हों, मजबूत और संघर्षशील।”
“आज के समय में, सरकार कह रही है कि केवल अमीर परिवारों के बच्चे ही विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते हैं, लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। गांवों से आने वाले ये छात्र, जिनके पास बैंक खाते नहीं होते और न ही नियमित रूप से पैसे भेजने वाले माता-पिता, अपनी मेहनत से पढ़ाई का खर्च जुटाते हैं”।
“ये छात्र गांवों की सबसे होनहार उम्मीदें होते हैं, लेकिन इनकी आंखों में सपनों की चमक उस संघर्ष की वजह से थोड़ी मुरझाई हुई होती है, जो वे हर दिन झेलते हैं।”
कंपनी बाग: एक संघर्ष की भूमि
दरअसल, कंपनी बाग की मुलायम घास पर बैठकर ये छात्र न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, बल्कि अपने जीवन के हर संघर्ष को गहराई से महसूस करते हैं। उनकी जेबों में पैसे होते हुए भी वे चुपचाप रहते हैं, क्योंकि गांव से अनाज बेचकर जुटाई गई वह रकम किसी संघर्ष का ही प्रतीक है।
मकान मालिकों के नखरों और सीमित संसाधनों के बीच, वे किराये की अंधेरी कोठरियों में रहते हैं, जहां हवा और रोशनी का आना मना होता है।
वे ट्यूशन पढ़ाते हैं, सेकेंड हैंड किताबें खरीदते हैं, और हर छोटी चीज को संभाल कर रखते हैं ताकि अपनी पढ़ाई जारी रख सकें। इनके कंधों पर गांवों की उम्मीदें टिकी होती हैं, लेकिन ये उम्मीदें उन्हें और अधिक संघर्ष करने के लिए मजबूर करती हैं।”
“इन छात्रों की जिंदगी केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है। ये जातिवादी राजनीति के पेच-ओ-खम से भली-भांति परिचित हैं, और इनके जीवन में कई सामाजिक संघर्ष भी होते हैं। विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना और यहां तक कि प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करना केवल उनके लिए एक कदम है, लेकिन इसके पीछे के संघर्ष गहरे हैं।
वे राजनीतिक आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों में भी सक्रिय होते हैं, लेकिन कभी-कभी उनकी यह सक्रियता उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से चोट पहुंचाती है।”
प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक रणविजय सिंह कहते हैं, “प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले इन छात्रों के बारे में बात करना आज के संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण है, जब सरकार उच्च शिक्षा के निजीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
सरकारी संस्थानों में फीसें बढ़ाई जा रही हैं, और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी महंगी होती जा रही है। ऐसे में, गांवों से आने वाले इन छात्रों के लिए शिक्षा तक पहुंच और भी मुश्किल हो जाती है। वे कंपनी बाग के देशी फूल हैं, जिनकी जगह अब शायद चमकदार, उच्च वर्ग के छात्रों ने ले ली है।
“प्रयागराज के कंपनी बाग में बैठकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले ये छात्र असल में संघर्ष की जीती-जागती मिसाल हैं। उनके कंधों पर न केवल उनके अपने सपने हैं, बल्कि उनके गांवों और परिवारों की उम्मीदें भी टिकी हुई हैं। इन छात्रों का संघर्ष केवल उनका नहीं है, बल्कि पूरे समाज का है, जो इस समय आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के गंभीर दौर से गुजर रहा है।”
“कंपनी बाग की मुलायम घास और पेड़ों की छांव तले, ये छात्र अपनी किस्मत खुद लिखने की कोशिश कर रहे हैं। उनके संघर्ष को देखकर यह साफ है कि ये वही लोग हैं जो भविष्य में समाज के महत्वपूर्ण स्तंभ बनेंगे। शायद, इन्हीं के बल पर हमारे गांवों के सपने जिन्दा हैं, और यही छात्र हमारे देश के भविष्य के निर्माता होंगे।”
(आराधना पांडेय प्रयागराज की स्वतंत्र पत्रकार हैं, कंपनी बाग से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट।)
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