बिलकिस बानो मामले में सुनवाई अब 11 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच करेगी सुनवाई

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिलकिस बानो मामले में आजीवन दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ दलीलों के एक सेट पर सुनवाई 11 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी। याचिकाकर्ताओं की दलील के प्रकाश में कि प्रतिवादियों में से एक को नोटिस की तामील पूरी करने के लिए तलाश नहीं किया जा सका, पीठ ने उसे नए नोटिस को तामील करवाने के लिए इसे और दो दैनिक गुजराती समाचार पत्रों में एक सार्वजनिक नोटिस प्रकाशित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया।

जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ उन 11 दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई कर रही थी, जिन्हें 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कई हत्याओं और गैंगरेप के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर राज्य सरकार द्वारा सजा में छूट के उनके आवेदन को मंजूरी देने के बाद दोषियों को छोड़ने की अनुमति दी गई थी।

सुनवाई के अंतिम दिन पीठ ने सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी। दो दोषियों के वकील के चलते सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी। दो दोषियों के वकीलों ने आरोप लगाया कि नोटिस की तामिल पर बानो के हलफनामे में विसंगतियां हैं। उन्होंने बानो पर अदालत के साथ ‘धोखाधड़ी’ करने का आरोप लगाया और यह कहा कि बानो की ओर से यह दावा करते हुए कि उन्होंने अपने हलफनामे में संकेत दिया था कि प्रतिवादियों ने नोटिस को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, भले ही वे कथित तौर पर शहर से बाहर थे। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि न्याय को ‘बाधित’ करने की रणनीति है।

जस्टिस जोसेफ ने 16 जून को अपनी आसन्न सेवानिवृत्ति का जिक्र करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि हम समझते हैं कि आप नहीं चाहते कि यह पीठ इस मामले की सुनवाई करे।” सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जून में रिटायर्ड होने वाले हैं, लेकिन उनका अंतिम कार्य दिवस शुक्रवार 19 मई होगा। फिर भी पीठ ने इस मामले को ग्रीष्म अवकाश के बाद सुनवाई के लिए पोस्ट करने का निर्देश देने पर सहमति व्यक्त की। याचिकाकर्ताओं के बैच को केवल नोटिस की तामील सुनिश्चित करने के लिए लिया गया था, जैसा कि पीठ ने सुनवाई की पिछली तारीख पर संकेत दिया था।

27 मार्च, 2023 को हुई सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से तत्सम्बन्धी दस्तावेज मांगे थे। इसके लिए 18 अप्रैल की तारीख दी थी। सरकार की तरफ से दस्तावेज पेश नहीं किए गए, तब जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने फटकार लगाते हुए सुनवाई के लिए 2 मई की डेट दे दी। 2 मई की सुनवाई में 9 मई की तारीख दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि अगर आपने फाइलें नहीं दिखाईं तो हम इसे कोर्ट की अवमानना मानेंगे। आप रिकॉर्ड पेश करने के लिए बाध्य हैं। आप हमसे क्यों लड़ रहे हैं? अगर सरकार ने सब कानून के हिसाब से किया है, तो उसे डरने की जरूरत नहीं है। हम बस ये देखना चाहते हैं कि दोषियों की रिहाई में कानून का पालन किया गया या नहीं।

कोर्ट के सख्त रवैये के बावजूद गुजरात सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा था कि कई दस्तावेज गुजराती में हैं। पहले उन्हें (सरकार) खुद उन फाइलों को रिव्यू करना है। इस पर जस्टिस जोसफ ने कहा कि हमने आपको रिव्यू से कहां रोका है? आप हमारे सामने रिकॉर्ड लाइए।

रिहाई के कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट्स में 11 ऐसी टेबल्स हैं, जिन्हें आधार बनाकर दोषियों को रिहा किया गया है। हमने इन टेबल्स और पूरे डॉक्यूमेंट को गहराई से पढ़ा, तो पता चला कि दोषियों की रिहाई को लेकर ये दस्तावेज खुद ही कई सवाल खड़े कर रहे हैं। ये दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में वो आधार बन सकते हैं, जो बिलकिस की पिटीशन को मजबूत ही करेंगे।

रिहाई के लिए एक चेकलिस्ट तैयार की गई थी। ये चेकलिस्ट रिहाई से पहले गुजरात सरकार की टेबल तक पहुंची। यह दो हिस्सों में थी।

पार्ट-1: इसमें 16 पॉइंट्स थे। इनमें रिहाई के लिए जरूरी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने से संबंधित सवाल थे। किस तारीख को कैदी या उसकी जगह जेल सुपरिन्टेंडेंट ने रिमीशन (रिहाई) की एप्लिकेशन तैयार की? कैदी कौन सी जेल में हैं? सजा सुनाते वक्त कोई अवधि जैसे 20-25 साल तय हुई थी? क्या केस में स्टेक होल्डर विभागों और एजेंसियों की राय ली गई? चेकलिस्ट के 16 पॉइंट्स, जिनमें दोषियों की रिहाई की कानूनी प्रक्रिया से जुड़े सवाल और उनके जवाब हैं। 16वें पॉइंट में दोषियों की प्री-मैच्योर रिलीज की सिफारिश का जिक्र है।

पार्ट-2: इसमें हर कैदी का अलग से रिकॉर्ड तैयार हुआ। इसमें 29 पॉइंट्स रखे गए। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट्स और रिहाई की शर्तों के बीच तालमेल कम नजर आता है। चेकलिस्ट का दूसरा हिस्सा, इसके छठवें पॉइंट में दोषियों के जुर्माना न भरने की बात है। 21वें पॉइंट में अपराध का ब्रीफ डिस्क्रिप्शन लिखा है।

कानून के मुताबिक गुजरात सरकार को दोषियों की रिहाई के लिए 5 स्टेक होल्डर्स से राय लेना जरूरी था। 5 में से तीन ने रिहाई की मंजूरी दी, लेकिन दो ने अपराध के स्वभाव को देखते हुए समय से पहले रिहा न करने की राय दी।

सुपरिन्टेंडेंट ऑफ पुलिस, जहां की विक्टिम यानी बिलकिस है, इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी यानी सीबीआई, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, जिस कोर्ट ने सजा सुनाई, फिलहाल जिस जेल में दोषी बंद थे।

सीबीआई और मुंबई की सेशन कोर्ट ने कहा कि अपराध बेहद क्रूर हैं, रिहाई न हो। सुपरिन्टेंडेंट ऑफ पुलिस स्पेशल क्राइम ब्रांच/सीबीआई ने रिहाई न होने के पक्ष में राय दी थी। सीबीआई के जवाब में कहा गया, कि ‘अपराध इतना गंभीर और कुत्सित है कि बिना किसी दया के मैं इस मामले में अपनी ओपिनियन नेगेटिव देता हूं। अपराधी को समय से पहले रिहा नहीं किया जाना चाहिए।’ मुंबई सेशन कोर्ट ने सरकार के नियमों का हवाला देते हुए कहा कि ‘हत्या और गैंगरेप के गंभीर अपराध की सजा भोग रहे कैदियों को आजीवन कारावास मिला है। सरकार के नियमों के मुताबिक, कैदी किसी भी हालत में रिहा नहीं किए जाने चाहिए।’

बिलकिस के इलाके के सुपरिन्टेंडेंट ऑफ पुलिस, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और जेल ने रिहाई के पक्ष में राय दी। एक दोषी राधेश्याम शाह की रिहाई के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने भी सिफारिश नहीं की थी। केस में सबसे संगीन आरोप राधेश्याम पर ही थे। इस डॉक्यूमेंट में दोषियों की रिहाई से जुड़ी सभी अथॉरिटी के ओपिनियन हैं। इसमें दाहोद के सुपरिन्टेंडेंट ऑफ पुलिस, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और गोधरा सब जेल के सुपरिन्टेंडेंट ने कहा था कि उन्हें दोषियों की रिहाई पर ऑब्जेक्शन नहीं है।

11 कैदियों को उम्रकैद और 6000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। यह रकम भले ही छोटी हो, लेकिन कैदी इसे नहीं चुकाता है, तो उसे इसके एवज में कुछ महीने या साल की सजा काटनी होती है। दस्तावेज में जुर्माना न देने का जिक्र है, लेकिन इसके एवज में उन्हें क्या सजा मिली ये नहीं है। साथ ही जेल में व्यवहार पर इससे क्या असर पड़ा, ये भी नहीं है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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