जेल में दो दलित युवकों की संदिग्ध मौत और चंद्रशेखर आजाद पर हमले की हो उच्च स्तरीय जांच: PUCL

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में योगीराज में दलित उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं। राज्य में गरीब दलितों पर तो उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोतरी तो हुई ही हैं, दलित समाज की नुमाइंदगी करने वाले भी हिंदुत्ववादी ताकतों के उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। 29 जून को सहारनपुर के देवबंद में भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद पर कातिलाना हमला हुआ। वहीं इस घटना के एक दिन पहले पहले 28 जून को सुल्तानपुर जिले के जेल में बंद दो दलित लड़कों की संदिग्ध मौत की खबर भी आई। जेल प्रशासन इन मौतों को आत्महत्या बता रहा है, लेकिन जेल के अंदर यानि न्यायिक हिरासत में हुई ये दो मौत सरकारी मशीनरी पर सवाल खड़े करता है।

पीयूसीएल उत्तर प्रदेश ने चंद्रशेखर आजाद पर हमले की निंदा किया है और जेल में बंद दो दलित युवाओं की संदिग्ध मौत की घटना की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

पीयूसीएल ने बयान जारी कर कहा कि चंद्रशेखर आजाद पर हमला जैसे हथियार और जिस तरीके से किया गया, उससे स्पष्ट होता है यह हमला उनकी हत्या करने के इरादे से की गई थी। यह घटना यह भी दिखाती है कि जैसा कि मुख्यमंत्री कहते हैं “प्रदेश माफिया और अपराध मुक्त हो गया है” वह पूरी तरह गलत है, उल्टा वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में अपराधियों के अंदर से सरकार का डर पूरी तरह से खत्म हो चुका है। अभी ज्यादा समय नहीं बीता जब अतीक अहमद और अशरफ को पुलिस हिरासत में अपराधियों ने सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी। लखनऊ की भरी अदालत में पुलिस कस्टडी में लाए गए संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा की गोली मार कर हत्या कर दी गई। यह सब उत्तर प्रदेश की बदतर कानून व्यवस्था का नमूना है। इस तरह के अपराधों का बढ़ना सरकार के प्रशासन की विफलता का नमूना है।

गौरतलब है कि चंद्रशेखर आजाद इस घटना में बाल बाल बच गए और उन्होंने स्वयं मीडिया प्रतिनिधियों से विस्तार से पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया है। उनके ड्राइवर मनीष ने इस जानलेवा हमले की एफआईआर दर्ज कराई है।

चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर वंचित, शोषित, दलित, किसान, मेहनतकश और महिलाओं पर होने वाले दमन और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं। करीब एक दशक से वो आम लोगों के संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में संघर्ष कर रहे हैं। चाहे वो हाथरस में दलित लड़की के बलात्कार और हत्या का मामला हो या महिला पहलवानों पर यौनिक हिंसा का मामला हो, इन आंदोलनों के पक्ष में वे समाज के सामंती, ताकतवर और राजनीतिक नेताओं और सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं।

आजाद के लगातार विभिन्न अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर ताकतवर आपराधिक तत्वों द्वारा उन्हें धमकियां भी मिलती रही हैं। सरकार से उनकी मांग के बावजूद उन्हें किसी तरह की सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई है।

पीयूसीएल के मुताबिक 28 जून को सुल्तानपुर जेल में बंद दो दलित लड़कों 19 वर्षीय मनोज रैदास और 20 वर्षीय विजय पासी उर्फ करिया की मौत की खबर सामने आई है। जेल अधीक्षक का कहना है कि दिन में 12.30 बजे वे दोनों अपनी बैरक के पीछे पेड़ से लटकते हुए पाए गए और ये आत्महत्या का मामला है। लेकिन ये मौतें क्योंकि जेल के न्यायिक हिरासत में हुई हैं, ये कई सवाल उठाती हैं, अत्यधिक संदिग्ध हैं, इसलिए जेल प्रशासन को इसका जिम्मेदार मानते हुए इन मौतों की भी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। दोनों लड़के 30 मई को अमेठी में हुई एक हत्या के मामले में जेल लाए गए थे। घर वालों ने यह भी बताया कि उन्हें पुलिस कस्टडी में काफी यातना दी गई थी।

इस मामले में यह भी गैर कानूनी प्रक्रिया का नमूना है कि मनोज रैदास की मां को उसके जेल में होने की बात उसकी मौत की खबर के साथ मिली। कई कारणों से यह मौत आत्महत्या नहीं हत्या भी हो सकती है।

पीयूसीएल का कहना है कि न्यायिक हिरासत में हुई मौत किसी भी संवैधानिक लोकतांत्रिक समाज के लिए बेहद खतरनाक और लिटमस टेस्ट की तरह होती है। अफसोस है कि उत्तर प्रदेश इस टेस्ट में लगातार फेल हो रहा है। उत्तर प्रदेश में लगातार पुलिस कस्टडी और न्यायिक हिरासत में मौत हो रही है, जिसमे खुलेआम हत्या तक शामिल है। इस घटना की जांच के लिए जल्द से जल्द जांच बिठाए जाने के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।

उत्तर प्रदेश सरकार लगातार यह दावा करती रहती है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था चाक चौबंद है और हर आम नागरिक महफूज़ है। लेकिन आजाद पर दिनदहाड़े हुए जानलेवा हमले ने सरकार के दावे को खोखला साबित कर दिया है। साथ ही न्यायिक हिरासत में दो दलित लड़कों की मौतों ने सरकार की कानून व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

पीयूसीएल इन दोनों घटनाओं की कड़ी निन्दा करता है और इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए ये मांग करते हैं कि-

1-चंद्रशेखर आजाद पर हुए हमले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाय।

2-सुल्तानपुर जेल में बंद दलित लड़कों की मौत को न्यायिक हिरासत में हत्या का मामला मानते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच कराई जाय।

3- आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर कानूनी प्रक्रिया जल्द से जल्द चलाई जाय।

4- उत्तर प्रदेश में बढ़ती आपराधिक घटनाओं में चूंकि पुलिस कस्टडी और न्यायिक कस्टडी में हुई हत्या भी शामिल है इसलिए सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

5- उत्तर प्रदेश में जेल के अंदर और बाहर नागरिकों की जान की सुरक्षा की जाए।

(पीयूसीएल की प्रेस विज्ञप्ति।)

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