Tuesday, March 19, 2024

‘हिंदुत्व’ सवर्ण वर्चस्ववाद की स्थापना का प्रोजेक्ट है: भंवर मेघवंशी 

इलाहाबाद। “हिंदू एक धर्म है और हिंदुत्व एक राजनीति है। हिंदुत्व विशुद्ध राजनीतिक अवधारणा है, जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आवरण में सवर्ण वर्चस्ववाद की पुनर्स्थापना का प्रोजेक्ट है जिसका इस्तेमाल राजसत्ता, धर्मसत्ता और अर्थसत्ता को कब्जाने के लिए किया जा सके।” ये बात पीयूसीएल से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता और दलित अधिकारों के लिए संघर्षरत भंवर मेघवंशी ने पीयूसीएल द्वारा आयोजित 42वें जय प्रकाश नारायण मेमोरियल लेक्चर में कही। इस बार इसका विषय था “हिंदुत्व की राजनीति और दलित”।  

यह मेमोरियल लेक्चर पीयूसीएल के संस्थापक सदस्य जय प्रकाश नारायण की याद में हर साल किया जाता है। 23 मार्च 1977 वह दिन है, जब जन आंदोलनों और जनवादी ताकतों के प्रतिरोध के आगे झुकते हुए इंदिरा गांधी ने 26 जून 1975 को देश पर थोपी गई इमरजेंसी हटाई थी। जय प्रकाश नारायण इस तानाशाही राज के खिलाफ हुई लड़ाई के एक प्रमुख किरदार थे। इसलिए हर साल 23 मार्च को जय प्रकाश नारायण यादगार दिन के रूप में मनाया जाता है।

स्वराज विद्यापीठ में आयोजित इस व्याख्यान में बोलते हुए भंवर मेघवंशी ने कहा कि  अपनी किशोरावस्था में वे आरएसएस से जुड़े थे, वहां रहकर उन्होंने संघ की विचारधारा के तौर पर धर्म के साथ जाति के बंटवारे को न सिर्फ देखा, बल्कि दलित होने के नाते उसे झेला भी। जल्द ही उनका संघ से मोहभंग हो गया और वे संघ का पर्दाफाश कर सबको जोड़ने वाले मानवाधिकार कर्मी बने। पेशे से वे पत्रकार हैं। उन्हें बेस्ट सिटीजन जर्नलिस्ट अवॉर्ड और अंतरराष्ट्रीय अंबेडकर अवॉर्ड सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं।

संघ की विभाजनकर राजनीति का पर्दाफाश करने वाली उनकी किताब “मैं एक कारसेवक था” बेहद चर्चित और लोकप्रिय है। इसी वर्ष उनकी एक और पुस्तक “बाबा साहेब के नाम पर” प्रकाशित हुई है। इनके अलावा वर्ण व्यवस्था की अमानवीयता को उजागर करने वाली उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 

अपने विचारोत्तेजक वक्तव्य में उन्होंने कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर जब अछूतों के अधिकार के लिए लड़ रहे थे तो हिंदुत्व के पैरोकार कहां थे? वे दलितों के अधिकारों की लड़ाई में उनके साथ नहीं बल्कि विरोध में खड़े थे। हिंदुत्व की राजनीति ने हर कदम पर डॉ. अंबेडकर का अपमान किया।

1 घंटे के लिखित वक्तव्य में उन्होंने दलितों के संघ और हिंदुत्व की राजनीति का हिस्सा बनने पर भी सवाल उठाए और इस राजनीति से बाहर आ कर सबको जोड़ने की राजनीति से जुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने अपना आरएसएस से जुड़ने और निकलने का रोचक अनुभव भी श्रोताओं को बताया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पीयूसीएल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि किरण जैन ने इमरजेंसी और उसके बाद हिंदुत्व के विकास पर रोशनी डाली और आने वाले समय के लिए लोगों को आगाह किया।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए पीयूसीएल की सीमा आज़ाद ने कहा, ‘इस राजनीति को चुनाव में हराने तक नहीं सीमित करना चाहिए बल्कि इसके आगे भी जाने की बात सोचना चाहिए।’ कार्यक्रम में शहर के जाने माने बुद्धिजीवी वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, छात्र और अंबेडकरवादी संगठनों के लोग शामिल थे।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

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