दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए संघ परिवार किसी दंगे की योजना बना रहा है। इसकी सूचना खुफिया एजेंसियों ने पहले ही दे दी थी। जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली के दरियागंज थाने को एलर्ट कर दिया गया था। यही कारण है कि पुरानी दिल्ली और आस-पास के बाज़ारों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिये गए थे तथा पुलिस की गस्त भी बढ़ा दी गई थी। जिससे कि दंगा होने पर स्थिति को नियंत्रित कर लिया जा सके।
पूरी घटना एक चलचित्र की तरह है:
एक आदमी स्कूटर किसी की दुकान के आगे इस तरह से खड़ा करता है कि दुकान से निकलना मुश्किल हो जाता है। दुकानदार एतराज करता है और गाली-गलौज की भाषा में उत्तर दिया जाता है। वहां मजमा इकट्ठा हो जाता है, देख लूंगा की धमकी से दोनों आदमी अलग-अलग हट जाते हैं। इसकी पूरी रिपोर्ट बीट कांस्टेबल थाने को भेज देता है। पहले की खुफिया सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त पुलिसबल उस जगह तैनात कर दिए जाते हैं, साथ ही खुफिया विभाग के कांस्टेबल भी सादी वर्दी में वहां के हालात का जायजा लेने लगते हैं।
रात को दलित बस्तियों और जेजे कालोनी से दलितों का झुंड ट्रक में भरकर लाया जाता है और हौजकाजी की गली के मुहाने पर इन्हें छोड़ दिया जाता है। खुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक कुल चालीस लोग थे। ये ट्रक से उतरते ही जय श्रीराम का नारा लगाने लगते हैं और आस-पास के घरों पर पत्थर फेंकने लगते हैं। घटनास्थल पर एक मंदिर को ये पत्थर मार कर क्षतिग्रस्त कर देते हैं।
उधर मस्जिद से लोगों को घरों में ही रहने की हिदायत दी जाने लगी। दोनों धर्मों की तरफ से लाउडस्पीकर पर अमन-चैन के लिये सूचना प्रसारित की जाने लगी।
पुलिस विभाग पूरी तरह सतर्क हो जाता है और इन दंगाइयों को घेर लेता है। आधे तो पुलिस को आता देखकर भाग जाते हैं और आधे पुलिस के घेरे में आ जाते हैं। इन्हें पकड़ कर थाने में लाया जाता है और जमकर खिदमत की जाती है, इसके बाद जो दंगाइयों ने बताया वह बहुत भयानक है- इनका कहना है कि ये दलित लोग हैं इनको बजरंग दल का सदस्य बनाया गया है। कहीं भी दंगा करवाना हो, तोड़फोड़ करवानी हो, जमीन कब्जा करवाना हो, नेता के भाषण में भीड़ इकट्ठा करवाना हो, कांवड़ ढुलवाना हो – इन्हें ही ले जाया जाता है। इसके एवज में पैसे दिए जाते हैं।
पुलिस ने इन
दंगाइयों को लॉकअप में बंद कर दिया। इनका नाम पता लेकर संबंधित थाने में डायरी भी
करवा दिया ताकि भविष्य में किसी भी दंगे में इनको पकड़ा जा सके।
सुबह इन दंगाइयों को छोड़ने की सिफारिश के लिए
मंत्रियों और नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते हैं।
देश के घर की व्यवस्था देखने वाले का दबाव पुलिस कमिश्नर के माध्यम से आया, सभी को छोड़ दिया गया। लेकिन रजिस्टर में दंगाई के रूप में इनका नाम दर्ज कर लिया गया था।
उधर हौजकाजी के गली मुहल्ले के हिन्दू-मुस्लिम बाशिंदों ने पुलिस को सूचना दे दी की दंगाई बाहरी लोग थे, प्रमाण स्वरूप ये लोग गली में दुकानों के बाहर लगी CCTV की फुटेज भी दे देते हैं।
दोनों धर्मों के लोगों ने अमन-चैन के लिए पंचायत बुलाई, जो पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में संपन्न हुई।
टूटे हुए मंदिर को पुनः बनाने के लिए दोनों धर्मों के लोगों ने चंदा भी इकट्ठा कर लिया।
अब विभिन्न दलों के नेता शांति-व्यवस्था की अपील करने आने लगते हैं, साथ ही भाजपा नेताओं का शांति मार्च भी शुरू हो जाता है जो दरियागंज थाने जाकर रुकता है।
ताजा खबर यह है कि- हौजकाजी में दंगा रोकने और दंगाइयों को पकड़ने वाले पुलिस अधिकारी को सज़ा के रूप में अरुणाचल प्रदेश के लिए तबादला कर दिया गया है।
(यह रिपोर्ट कैलाश
प्रसाद सिंह की पोस्ट पर आधारित है। लेख में लिखी बातों से जनचौक का कोई वास्ता
नहीं है।)
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