खबर का असर: स्थानीय प्रशासन दो महीने का राशन देने को तैयार लेकिन लाभुकों ने लेने से किया इंकार

Estimated read time 4 min read

गढ़वा। पिछले 27 दिसंबर 2024 को जनचौक में झारखंड की एक रिपोर्ट आई “गढ़वा के 45 परिवारों को नहीं मिला एक साल से राशन, 248 लोग भुखमरी के शिकार” इस रिपोर्ट में बताया गया था कि गढ़वा जिला अंतर्गत भंडरिया प्रखंड के बिजका पंचायत के बिजका गांव निवासी दलित-आदिवासी समुदाय जो गुलाबी कार्डधारी (PH कार्ड) हैं को पिछले एक साल से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के तहत मिलने वाला राशन, नहीं मिलने के कारण 45 परिवार के 248 लोग भुखमरी से बेहाल हैं।

वहीं 11 वर्षीय एक ऐसी अनाथ बच्ची जमदीरिया कुमारी का जिक्र था जिसकी राशन के अभाव में सबसे खराब हालत थी। जमदीरिया कुमारी के माता-पिता की मृत्यु के बाद वह अकेली रह गई है। क्योंकि उसकी बड़ी बहन, सीमा कुमारी (उम्र 16 वर्ष), भुखमरी और घर के बोझ से टूटकर घर छोड़कर कहीं चली गई है, अबतक उसकी कोई खबर नहीं है।

जमदीरिया कुमारी बिजका गांव के अभियान विद्यालय में पढ़ाई करती है, उसका राशन कार्ड नंबर 202000202973 पर पिछले 12 महीनों से उसे भी राशन नहीं मिला है, जिसके कारण वह भुखमरी की शिकार है। वह दूसरों के घरों से भोजन मांगकर किसी तरह जीवित है। क्योंकि रोज व रोज लोग उसे खाना नहीं दे पाते हैं।

इस खबर का त्वरित असर यह हुआ कि 2025 के पहले दिन यानी 1 जनवरी को बाल कल्याण समिति, बाल संरक्षण समिति के पदाधिकारियों ने आकर अनाथ बच्ची को सहयोग किया और आगे की योजना का लाभ सुनिश्चित कराने को लेकर संवेदनशील हुए।

वहीं 3 जनवरी को प्रखंड के बिचका पंचायत के बिचका गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय के परिसर में क्षेत्र के अधिकारियों की एक बैठक आयोजित की गई। इस बैठक की अध्यक्षता प्रखंड विकास पदाधिकारी सह प्रभारी खाद्य आपूर्ति पदाधिकारी, भण्डरिया अमित कुमार ने की।

बैठक में प्रखंड भण्डरिया के गोदाम प्रभारी मोजेस किस्पोट्टा, डीलर ईश्वर दयाल यादव, डीलर जंगी सिंह, ग्राम प्रधान, वार्ड सदस्य और 12 महीने से राशन से वंचित 45 लाभुक शामिल थे।

बैठक के दौरान प्रखंड विकास पदाधिकारी अमित कुमार ने उपस्थित लाभुकों पर दबाव डाला कि वे सभी 45 लाभुक दो-दो महीने का राशन लेने के लिए पंचिंग मशीन में अंगूठा लगाएं। साथ ही डीलर भी लाभुकों पर दबाव डाल रहे थे कि अंगूठा लगाने पर राशन दिया जाएगा।

हालांकि, लाभुकों ने दो-दो महीने का राशन लेने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि जब तक उन्हें पूरे 12 महीने का राशन नहीं मिलेगा, तब तक वे राशन नहीं लेंगे। प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा कि वे केवल दो महीने का राशन ही दे सकते हैं और बाकी 10 महीने के राशन की जिम्मेदारी उनकी नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि सभी लाभुकों के राशन कार्ड पर लाल कलम से निशान लगाकर उनका राशन काट दिया जाएगा। यह सुनकर लाभुक भड़क गए, तो महिला लाभुकों को धमकाया गया और उन्हें दबाव में लाने की कोशिश की गई। लेकिन लाभुक दो महीने का राशन लेने को कतई तैयार नहीं हुए।

बताते चलें कि राशन नहीं मिलने से इन 45 परिवारों की स्थिति कुछ बानगी के तौर पर समझा जा सकता है, जैसे – गांव की सरोज देवी को खाना जुटाना बेहद कठिन हो गया है, राशन न मिलने के कारण परिवार को भूखे रहना पड़ रहा है। विधवा फुलमनिया कुंवर जंगल से लासा लाकर बेचती है तब जाकर बच्चों के लिए खाना जुटा पाती है।

विधवा घुमनी कुंवर की स्थिति भी वही है। एक साल से अनाज का एक दाना भी नहीं मिला है, ऐसे में जैसे-तैसे खाने की व्यवस्था करनी पड़ती है।

पार्वती कुंवर को चार बेटियों को पालने के लिए मजदूरी करना पड़ रहा है। वहीं उधार या मायके से मदद लेनी पड़ती है। काफी वृद्ध हो चुकी चिंता देवी को बुढ़ापे में भी खाने को लेकर काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। लोभनी कुंवर को भी बच्चों को खाना खिलाने में बेहद परेशानी है।

पार्वती कुंवर खेतों में मजदूरी करती हैं, उसकी चार लड़कियां हैं। राशन न मिलने से दूसरों के खेतों में मजदूरी कर किसी तरह उनका पेट पालती है।

ऐसी स्थिति में जहां गांव के कुछ लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं, वहीं बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह बाधित है। क्योंकि उनके साथ पूरा परिवार पलायन करता है। दरअसल वे लोग दूसरे राज्यों में ईंट-भट्ठों में काम करते हैं जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल रहते हैं।

कहना ना होगा कि इस तरह का मामला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 3(1) और झारखंड लक्षित जन वितरण प्रणाली नियंत्रण आदेश, 2019 का स्पष्ट उल्लंघन है। फिर भी जिला व प्रखंड के पदाधिकारी चुप्पी साधे हुए है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author