Saturday, April 20, 2024

निकाय चुनाव: योगी के गढ़ में भाजपा को मात, सत्ता से बढ़ी नाराजगी तो निर्दलियों पर जताया विश्वास


उत्तर प्रदेश। यूपी निकाय चुनाव के नतीजों से एक बात साफ हो चुकी है कि भाजपा के लिए आगे की राह आसान नहीं है। योगी के गढ़ में भी भाजपा को मात मिली है। सत्ता के प्रति अविश्वास बढ़ा तो निकाय चुनाव में निर्दलियों पर मतदाताओं ने अपना विश्वास जताकर एक संदेश देने का काम किया। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव का प्रतिबिम्ब निकाय चुनाव में देखने वाले चुनावी समीक्षक आंकड़ों में यह पाते हैं कि भाजपा को अपने गढ़ों में ही उनके प्रति़द्वंदियों ने पटखनी दी है, तो कहीं जीत के लिए एक एक वोट खातिर जूझना पड़ा है।

भाजपा के लिए यूपी के निकाय चुनाव का परिणाम प्रतिद्वंदियों के मुकाबले सीटों के लिहाज से बेहतर माना जा सकता है, पर असली बात कुछ और ही है। विधानसभा चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद दल के तरफ से यह दावे किए जाते रहे हैं कि यूपी देश में नंबर वन की तरफ बढ़ रहा है। बसपा के लगातार संगठनात्मक व राजनीतिक कार्यक्रमों के प्रति शिथिलता को देख यह कहा जाने लगा कि यह अपने अंत की ओर चल पड़ी है।

दूसरी तरफ राज्य की दूसरी बड़ी राजनीतिक ताकत सपा की तरफ से राजनीतिक सक्रियता कम होने से कार्यकर्ताओं में उदासीनता बढ़ी है। इन सबके इतर सत्ताधारी दल भाजपा का संगठनात्मक अभियान लगातार जारी है। पक्ष व विपक्ष की मौजूदा स्थितियों व निकाय चुनाव के परिणाम को देखकर यह कहा जा सकता है कि पब्लिक का मूड सत्ता के प्रति ठीक नहीं है। विरोधी दलों की शिथिलता के चलते मतदाताओं ने निकाय चुनाव में निर्दलियों की तरफ अधिक रुख किया।

निकाय चुनाव के घोषित परिणाम के मुताबिक राज्य के 75 जिलों में 760 निकायों में चुनाव हुए। जिनमें 17 निगमों ने अपने महापौर के अलावा 1420 पार्षदों का चुनाव किया। इसके अलावा नगर पालिका परिषद के 199 अध्यक्ष व 5,327 सभासदों का निर्वाचन हुआ। उपनगरों में नगर पंचायत के 544 अध्यक्ष व इनके 7,177 सदस्यों का मतदाताओं ने चुनाव किया।

इनमें भाजपा के लिए बड़ी उपलब्धि यह रही कि महापौर की सभी सीटों पर कब्जा करने में वो कामायाब रही। दूसरी तरफ प्रतिशत में पार्षदों के जीत का प्रतिशत 57.25, नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष में जीत का प्रतिशत 44.72 तथा नगर पालिका परिषद के सदस्यों में जीत का प्रतिशत 25.53 रहा है। इसके अलावा नगर पंचायत अध्यक्ष की सीटों में से 35.11 प्रतिशत तथा नगर पंचायत सदस्य की कुल सीटों में से 19.55 प्रतिशत ही रहा है। ऐसे में यह तस्वीर बन रही है कि निकायों में भाजपा के लिए सब एकतरफा नहीं है।

15 प्रतिशत मत पाकर बन गए प्रथम नागरिक

मतदाताओं की उदासीनता इस कदर देखने को मिली कि 15 प्रतिशत मत पाकर नगर के प्रथम नागरिक बन गए। प्रयागराज के मेयर की जीत मात्र 15 फीसद मतदाताओं ने ही तय कर दी। इसी तरह झांसी में 27 प्रतिशत, गोरखपुर में 17.22 प्रतिशत, फिरोजाबाद में 17.99 प्रतिशत, मुरादाबाद में 18.02 प्रतिशत, वाराणसी में 18.15 प्रतिशत, आगरा में 18.25 प्रतिशत, मेरठ में 18.76 प्रतिशत, बरेली में 19.74 प्रतिशत, कानपुर में 19.86 प्रतिशत, वृंदावन-मथुरा में 20.18 प्रतिशत, अलीगढ़ में 21.51 प्रतिशत, अयोध्या में 23.32 प्रतिशत, शाहजहांपुर में 24.66 प्रतिशत, सहारनपुर में 25.01 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने महापौर का चुनाव कर दिया।

ऐसे में 85 प्रतिशत मतदाताओं की उनके जीत में भले ही भागीदारी नहीं रही, पर वे नगर के प्रथम नागरिक बन गए। ये सब व्यवस्था के प्रति नाराजगी का एक हिस्सा है।

भाजपा के गढ़ में मंत्री व विधायक नहीं जीता सके अपने प्रतिनिधि

गोरखपुर-बस्ती मंडल के 7 जिलों में 81 निकायों के लिए मतदान हुए। जिनमें से भाजपा को 38 सीटों पर ही जीत मिली। इसके बाद सबसे अधिक 18 निर्दलियों ने बाजी मारी। जबकि सपा को 14 व बसपा को 9 निकायों के अध्यक्षों के पद पर जीत हासिल हुई। देवरिया जिले के 17 नगर निकायों में से 7 पर ही भाजपा सिमट गई।

प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही विधान सभा क्षेत्र पथरदेवा से सदन में प्रतिनिधित्व करते हैं। पथरदेवा नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट सपा के झोली में चली गई। लगातार भाटपार रानी से जीतकर विधान सभा पहुंचने वाले सपा के डा.आशुतोष उपाध्याय को पिछले चुनाव में भाजपा से हार मिली थी। लेकिन नगर पंचायत भाटपार रानी के अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा को हार मिली तथा सपा ने यह सीट जीत ली। पहली बार गठित नगर पंचायत बरियारपुर में अध्यक्ष पद बसपा की झोली में चला गया।

पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद मिश्र के विधायक पुत्र दीपक मिश्र नगर पालिका बरहज के अध्यक्ष की सीट पर भाजपा के उम्मीदवार को जीत नहीं दिला सके। यह सीट भी बसपा की झोली में चली गई। इसी विधानसभा क्षेत्र में आने वाले नगर पंचायत भुलुवनी के अध्यक्ष पद पर सपा को जीत मिली। इसके अलावा नगर पंचायत मदनपुर में सपा के उम्मीदवार विजयी रहे।

प्रदेश सरकार में मंत्री विजय लक्ष्मी गौतम के विधान सभा क्षेत्र सलेमपुर के नगर पंचायत सलेमपुर, लार व मझौलीराज में निर्दलीय विजयी रहे। नगर पंचायत भटनी भी निर्दलीय के हिस्से में गया। नगर पालिका देवरिया के अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा के उम्मीदवार को जीत की हैट्रिक मिली।

हालांकि खास बात यह रही कि एक माह में मुख्यमंत्री के दो बार देवरिया में जनसभा करने के बावजूद जीत का अंतर बहुत ही कम रहा। निर्दलीय ने यहां जोरदार टक्कर दी। इसको लेकर निकटतम प्रतिद्धंदी ने मतगणना में गड़बडी की शिकायत करते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का मन बनाया है।

इसके अलावा कुशीनगर में 13 निकायों में से 7 सीट पर भाजपा को हार मिली। महराजगंज जिले में निकाय की 10 सीटों में से मात्र 3 में भाजपा को जीत मिली। बस्ती जिले के 10 में से आधी सीटों पर भाजपा को पराजय हासिल हुई। सि़र्द्धाथनगर में 5 सीटों पर तथा संतकबीर नगर में 6 सीटों पर भाजपा को पराजय मिली। प्रदेश में चंदौली जिले के नगर पालिका परिषद पं. दीनदयाल उपाध्याय के अध्यक्ष की कुर्सी किन्नर के कब्जे में चली गई। पुनर्मतगणना में इसका परिणाम घोषित किया गया।

जानकारों के मुताबिक प्रदेश में भाजपा का भले ही सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। लेकिन आने वाले संसदीय चुनाव में इसके लिए मैदान एकतरफा नजर नहीं आ रहा है। राजनीतिक विरोधी, संगठन व सत्ता की ताकत के बदौलत भाजपा को जीत मिलने की बात कह रहे हैं। ऐसे वक्त में जब कर्नाटक में भाजपा को शर्मनाक हार मिली हो। इस वर्ष राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलांगना में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं। हिमाचल प्रदेश के बाद निकाय चुनाव व कर्नाटक के परिणाम यह संकेत देने लगे हैं कि भाजपा अभेद्य दुर्ग नहीं है।

(जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट)

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