भाजपा शासन के आने के बाद देश भर में विशेष रूप से भाजपा शासित हिन्दी प्रदेशों में बुलडोज़र न्याय चल रहा है, इसका अर्थ यह है कि ‘बिना किसी नोटिस के या फ़िर कोर्ट के आदेश की अवहेलना करके फटाफट बुलडोज़रों से लोगों के घर गिरा दिए जाते हैं।’
पहले यह काम उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने शुरू किया। उनके प्रशंसक उनका ‘बुलडोज़र बाबा’ के नाम से महिमामंडन करने लगे, बाद में यह प्रवृत्ति अन्य भाजपा शासित राज्यों जैसे:- मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों तक फैल गई। सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावज़ूद ये चीज़ें बदस्तूर आज भी जारी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले दो सालों में 1,52,830 से अधिक घरों को ज़मींदोज कर दिया गया और लगभग 7 लाख 40 हज़ार लोग बेघर करके सड़कों पर रात गुज़ारने के लिए मजबूर कर दिए गए। मलबे के ढेर में तब्दील की गई बस्तियां ज़्यादातर भाजपा शासित राज्यों की हैं।
इस बुलडोज़र राज के तहत मुसलमानों के घर-बस्तियों को ख़ासतौर पर निशाना बनाया गया है, जो भारत के हुक्मरानों के सांप्रदायिक चरित्र को स्पष्ट दर्शाता है। गिराए गए कुल घरों में से लगभग 40 प्रतिशत घर मुसलमानों के थे।
पिछले समय में बुलडोज़र अभियान के तहत तोड़ी गई बस्तियों को पहले हाई कोर्ट या अलग-अलग राज्यों की सरकारों द्वारा ग़ैर-क़ानूनी घोषित किया गया। इनमें से कुछ बस्तियों के बारे में आगे ज़िक्र किया गया है। पिछले सात सालों में घर तोड़ने की सबसे बड़ी कार्रवाई दिल्ली के तुग़लक़ाबाद में की गई।
6 से 10 सितंबर 2023 की जी-20 मीटिंग की मेज़बानी भारत ने की थी, जिसके तहत दिल्ली के नवीनीकरण-सौंदर्यीकरण को लेकर जी-20 मीटिंग वाली जगह के आस-पास की ग़रीब बस्तियों को ग़ैर-क़ानूनी बताया कर तोड़ दिया गया।
24 अप्रैल 2023 को इस बस्ती को दिल्ली हाई कोर्ट ने ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया था और चार हफ़्तों में ख़ाली करने का आदेश दे दिया था।
सी.आर.पी.एफ़. की 12 से अधिक कंपनियां लगाकर लोगों को घर ख़ाली करने के लिए कुछ घंटों की मोहलत दी गई। लोगों का कहना था कि उन्हें घरों में से कुछ ज़रूरी सामान भी नहीं निकालने दिया गया।
दिल्ली के तुग़लक़ाबाद के चूड़ियां मोहल्ले के एक निवासी; जो कि पेशे से पेंटर का काम करता है, उनका कहना है कि “हमारे पास कुछ भी नहीं बचा। हमने एक-एक पाई जोड़कर घर बनाया था, पर अब हमसे वह भी छीन लिया है।”
इस इलाक़े में रहने वाली शबनम, जो घरों में साफ़-सफ़ाई का काम करती है, उसने कहा–“क़ानूनी किताब के मुताबिक़ अगर यह बस्ती ग़ैर- क़ानूनी थी,तो सरकार ने यहां के क़ानूनी दस्तावेज़–आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर कार्ड आदि क्यों बनाए?”
शबनम का ग़ुस्से में कहना था कि “सारी पार्टियों के लीडर वोट मांगने यहां आते रहे, तब अदालत ने इन्हें क्यों नहीं रोका?” दरअसल ग़रीब बस्तियां ही ग़ैर-क़ानूनी क़रार देकर सबसे पहले तोड़ी जाती हैं। देश के बड़े-बड़े धनवान पूंजीपति जो क़ानून और क़ानून बनाने वालों को जेबों में लेकर घूमते हैं, उन पर कभी काईवाई नहीं होती।
इस बुलडोज़र अभियान के तहत मुसलमानों के घरों और बस्तियों को ख़ास निशाना बनाया गया है। जी-20 मीटिंग के दौरान जब विदेशी डेलीगेट मीटिंग में पहुंच रहे थे, सड़क के आस-पास की बस्तियों, झुग्गियों को ढंकने के लिए मोदी सरकार ने हरी चादर भी लगवा दी थी।
दिल्ली के एक इलाक़े में जून 2022 में हनुमान जयंती के मौक़े पर सांप्रदायिक तत्वों द्वारा मुसलमान बस्तियों में भड़काऊ सभा का आयोजन किया गया, जिसके कारण हिंसा भड़क गई। मुसलमानों को ही दोषी ठहराते हुए काफ़ी लोगों के घरों पर बुलडोज़र चढ़ा दिया गया।
ऐसी ही घटना 16 जून 2023 को हुई जब हरियाणा के नूह में हनुमान जयंती के मौक़े पर शोभा यात्रा निकाली जा रही थी, तो प्रशासन की मिलीभगत के साथ जान-बूझकर मुस्लिम इलाक़ों में से भड़काऊ यात्रा निकाली गई।
सांप्रदायिक तत्वों द्वारा भड़काई हिंसा के बाद दोष मुसलमानों पर ही डाल दिया गया और प्रशासन द्वारा मुसलमानों की 128 के क़रीब दुकानें और घर तोड़ दिए गए।
एक संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक़ बुलडोज़र राज के तहत तोड़े गए घरों में से 44 प्रतिशत मुसलमानों के घर थे,17 प्रतिशत अन्य पिछड़ी श्रेणियों से और 5 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। पिछले सिर्फ़ दो सालों में 7 लाख 40 हज़ार लोग बेघर हुए हैं।
हाल ही में 19 जून को लखनऊ की एक बस्ती को ग़ैर-क़ानूनी घोषित करके 1,800 से अधिक दुकानों और 1,000 से अधिक घरों को बुलडोज़र चलाकर तोड़ दिया गया। बस्ती वालों का कहना था कि सरकार रिवरफ़्रंट और इकोटूरिज़्म हब के नाम पर उन्हें उजाड़ रही है और उनके रहने का कोई विकल्प भी सरकार ने नहीं दिया।
लोगों का सरकार से तीखा सवाल था कि “चुनाव के समय हम इन नेताओं को अपने लगते हैं, पर उसके बाद आज जब हम बिना छत के आसमान के नीचे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, कोई भी नेता हमारा हाल पूछने नहीं आया।”
पिछले सात सालों में चलाए गए बुलडोज़र अभियान के तहत लगभग 16.80 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।
घर और ज़मीन अधिकार नेटवर्क-2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2023 में सबसे ज़्यादा लोगों को बेघर किया गया। साल 2019 में एक लाख लोगों को, 2022 में 2,22,636 और साल 2023 में 5,15,752 लोगों को खुले आसमान के नीचे रातें काटने के लिए मजबूर किया गया।
तोड़ी गई कुल बस्तियों में से लगभग 59 प्रतिशत बस्तियों में से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग थे।
सरकार और अदालतों ने तर्क दिया है कि शहर की सुंदरता और शहर के आधुनिकीकरण के तहत यह ज़रूरी है।
सोचने की बात यह है कि एक तरफ़ तो देश की सरकार द्वारा विश्वगुरु होने का डंका बजाया जा रहा है, वहीं इस देश में करोड़ों की आबादी झुगियों-झोंपड़ियों और यहां तक कि फ़ुटपाथों और पुलों के नीचे ज़िंदगी गुज़ारने के लिए मजबूर हैं।
भाजपा के दमनकारी बुलडोज़र राज की मुहिम यहीं रुकने वाली नहीं। एक सरकारी बयान के मुताबिक़ अभी भी ग़ैर-क़ानूनी बस्तियों में रहने वाले लगभग 70 लाख लोगों को बेघर किया जाना है।
2014 में ग़रीबी हटाने की लोकलुभावन बातें करते हुए सत्ता पर क़ाबिज़ हुई भाजपा की मोदी सरकार अब ग़रीबों को हटाने में लगी हुई है।
आज भी ग़रीबी में जीने वाले देश में करोड़ों लोग हैं, जिन्हें दो वक़्त की रोटी नहीं नसीब होती, पर घर लेना उनके लिए बड़ी बात है। वैसे तो सरकार पूंजीपतियों का पिछले दस सालों में 15.80 करोड़ का क़र्ज़ माफ़ कर चुकी है। इतने पैसों से इन बेसहारा ग़रीब लोगों को राशन-पानी के अलावा घर, स्कूल, अस्पताल, इलाज आदि सुविधाएं भी मुहैया करवाई जा सकती हैं।
लेकिन आम लोगों की बजाए भाजपा को पूंजीपति प्यारे हैं। दूसरी ओर मेहनत मज़दूरी करके, तिनका-तिनका जोड़कर छोटा-सा घर बनाने वाले ग़रीब लोगों पर बुलडोज़र चलाने से पहले एक बार भी नहीं सोचा जाता।
दरअसल यह सारा सरकारी तंत्र बड़े पूंजीपतियों, धनवानों की सेवा करने में ही लगा हुआ है।
(स्वदेश कुमार सिन्हा लेखक एवं टिप्पणीकार हैं)
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