भारतीय रेल मंत्रालय दुर्घटना मंत्रालय में बदल रहा है

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बीती रात जब हम सभी नींद में सो रहे थे, कानपुर के निकट साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के डिब्बे पटरियों से उतर रहे थे। यह एक ऐसा हादसा है जिसके बारे में रेलवे ने बताया है कि अभी तक इसमें कोई मारा नहीं गया है। कुछ लोग घायल जरूर हुए हैं। यह इस साल की संभवतः ट्रेन की पटरी से उतर जाने वाली 20वीं दुर्घटना है।

1 अगस्त तक पटरी से उतरने वाली दुर्घटनाएं 19 हो चुकी थीं। साबरमती एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने के पीछे का कारण पटरी पर कोई बोल्डर आ जाने की वजह से इंजन के दुर्घटनाग्रस्त होने से हुआ। कोई भी ट्रेन पटरी से उतरती है तब कोई न कोई कारण होता ही है। कभी उचित तरीके से फिश प्लेट न जोड़े जाने के कारण, कभी पटरियों के फैल जाने के कारण और कभी पटरी के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण ट्रेनें पटरी से उतरती हैं। ट्रेन पटरी पर चलती है तो एक बड़ा कारण पटरी होगी ही। दूसरे कारणों में सिग्नल व्यवस्था होगी। तीसरी, कोच का रखरखाव होगा।

इन दोनों के बिगड़ने से गाड़ियों के लड़ने और आग लगने की घटनाएं होती हैं। वर्तमान रेलवे मंत्री के कार्यकाल के दौरान इन दोनों तरह की भीषण दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। रेलवे के परिचालन का पूरा सिस्टम बिगड़ता हुआ दिख रहा है, लेकिन रेलवे मंत्री के लिए छोटी दुर्घटनाओं को ‘बड़ा करके दिखाया’ जा रहा है।

बीते संसद सत्र में जब कांग्रेस ने रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव को ‘रील मंत्री’ कहा तब वह आग बबूला हो गये थे। जबकि कुल रेल दुर्घनाओं के संख्या में तेजी से इजाफा होते हुए दिख रहा है। यहां हम सिर्फ पटरी से उतरती गाड़ियों के कारणों को खोजना शुरू करें, तब इसके पीछे कोई रहस्य छुपा हुआ नहीं दिखेगा। इसमें रेलवे के लिए अपनाई गई नीति सामने आएगी।

बिजनेस लाइन के 1 अगस्त, 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022-23 में रेलवे का कुल राजस्व 1.2 लाख करोड़ रुपया था जिसका 13.5 प्रतिशत हिस्सा रेलवे ट्रैक के नवीनीकरण में लगाया गया। वर्ष 2024 के पुनर्संयोजित अनुमान के तहत रेलवे का राजस्व 1.5 लाख करोड़ रुपया हो गया। लेकिन, नवीनीकरण में सिर्फ इसका 11 प्रतिशत ही खर्च करना तय हुआ। बीते संसद सत्र के दौरान पेश किये बजट में रेलवे का कुल राजस्व 1.8 लाख करोड़ बताया गया जबकि पटरियों के नवीनीकरण के लिए 9.7 करोड़ रुपया खर्च करने की घोषणा की गई। वित्तीय वर्ष 2016 में रेलवे के कुल राजस्व का 16 प्रतिशत हिस्सा पटरियों के नवीनीकरण पर खर्च हो रहा था, वह घटते हुए अब 7 प्रतिशत पर आ चुका है। सीएजी द्वारा जारी रिपोर्ट में 2017-18 से 2020-21 के बीच 1,129 ट्रेनें पटरी से उतरीं जिनका 26 प्रति हिस्सा ट्रैक के नवीनीकरण से जुड़ा हुआ है।

2014-15 से 2023-24 के बीच लगभग 27057.7 किमी रेलवे ट्रैक का निर्माण हुआ। औसतन लगभग 7.41 किमी प्रतिदिन के हिसाब से, जिसमें नये ट्रैक का निर्माण भी शामिल है, के विकास का दावा किया गया। इस साल की फरवरी में रेल भवन में एक प्रेस सम्मेलन के दौरान अश्विनी वैष्णव ने रेलवे विकास पर वजन देते हुए कहा था कि ‘पिछले साल रेलवे ने 5200 किमी नया ट्रैक बनाया जो स्विटजरलैंड के पूरे नेटवर्क के बराबर है। इस साल हम 5500 किमी और इसमें जोड़ने जा रहे हैं। हम 2014 में 4 किमी प्रति दिन से अब 15 किमी प्रतिदिन नयी पटरीयों का निर्माण करने जा रहे हैं।’

पिछले साल के अगस्त में रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव में संसद में बताया था कि रेलवे में करीब 2.5 लाख पोस्ट खाली हैं। इस पर कोई नियुक्ति नहीं हुई है। इसमें से समूह ए और बी की 2070 सीटें खाली हैं। निश्चित ही बाकी सीटें समूह सी से जुड़ी हुई हैं। रेलवे, 2023 के आंकड़ों के हिसाब से 11.75 लाख लोगों को रोजगार पर रखता है। इसमें से करीब 2.5 लाख लोगों को नौकरी पर न होना रेलवे परिचालन को किस तरह प्रभावित कर रहा है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है और पिछले दो सालों में तेजी से बढ़ रही रेल दुर्घटनाओं के मद्देनजर आसानी से समझा जा सकता है। जनवरी, 2024 में रेलवे मंत्री ने एक बयान में बताया कि अब तब हमने 1.5 लाख पोस्ट को भर दिया है जिसमें लोको पायलट की भर्ती भी शामिल है।

रेल को दुर्घटना से बचाने के लिए रेलवे मंत्री और इस सरकार का जितना जोर ‘कवच’ ऑटोमेटिक ब्रेक सिस्टम को लेकर है, वह काफी हैरान करने वाला है। एक लंबे समय से इसे लेकर दावे किये जा रहे हैं लेकिन इस दिशा में बहुत कम ही बढ़ा गया है। इस नये सत्र में ‘कवच 4.0’ के लिए 1.08 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस कुल खर्च में ट्रैक नवीनीकरण, सिग्नल और ब्रेक सिस्टम तीनों ही शामिल हैं। हमने नवीनीकरण का खर्च ऊपर देखा है। बाकी दो व्यवस्थाओं को ऑटो सिस्टम में बदलने की प्रक्रिया पिछले 20 सालों से चल रही है जिसमें कम श्रम लागत से सर्वोत्तम सुरक्षा तक जाने का दावा एक नारे की तरह अब तक चलता चला आ रहा है।

इसी तरह नये ऑटो ब्रेक सिस्टम को लागू करने के लिए इंजन और बोगियों का निर्माण और रखरखाव को एक नये सिरे से पुनर्संयोजित करने की ओर ले जाया गया। इसके लिए देश में बनने वाले कोच उत्पादन केंद्र और लोको कारखान व्यवस्था को खत्म करने की ओर ले जाया गया। सिग्नल, इंजन और बोगी ये वे तीन व्यवस्थाएं थी जिसके रास्ते नीजीकरण ने अपना रास्ता बनाया और रेलवे को मुनाफा कमाने की एक मशीन में बदलना शुरू किया। लगभग 2 करोड़ लोगों को प्रतिदिन यात्रा की सुविधा देने वाली रेलवे में मुनाफे का खेल जहां खेला जा रहा है, वहां इतने ही बड़े पैमाने पर उनकी जिंदगी के साथ भी खेला जा रहा है।

हम कुछ सालों में रेलवे कोच, रेलवे ट्रैक और सिग्नल व्यवस्था की खामियों से होने वाली दुर्घटनाओं को देख रहे हैं। कहा जाता है कि रेलवे किसी देश की अर्थव्यवस्था के शरीर में बहने वाली धमनियों की तरह होती है। भारत में यह रोजमर्रा की जिंदगी का एक ऐसा अहम हिस्सा है जिसके बिना जिंदगी थम सी जाती है। हमने कोविड महामारी के दौरान रेलवे को बंद कर देने का भयावह नतीजा देखा है।

रेलवे सार्वजनिक जीवन का सबसे अहम हिस्सा है। इसे इतने लापरवाह तरीके से देखना और चलाना आम जिंदगी को भयावह तरीके से प्रभावित करना होगा। जो दुर्घटनाएं हो रही हैं, वे एक खास पैटर्न पर हैं और ये सीधे रेलवे को लेकर बनाई गई नीतियों का परिणाम हैं। यह नीतियों की असफलता है जो लोगों की जान लेकर उसके कारणों को रेखांकित करने और उसे तुरंत ठीक करने की मांग कर रही हैं। निश्चित ही इस असफलता की जिम्मेवारी रेलवे मंत्री और इस सरकार की है। उसे इसकी न सिर्फ जिम्मेदारी लेनी होगी, इसकी असफलताओं के बारे में लोगों को बताना भी होगा और उसे ठीक करने, जनता के प्रति जिम्मेवार होना होगा।

(अंजनी कुमार स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं)

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