आजमगढ़: मनरेगा काम में जेसीबी के इस्तेमाल पर सवाल उठाने वाले प्रवासी मजदूर के खिलाफ प्रधान ने दर्ज कराया मुकदमा

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आज़मगढ़/लखनऊ। लॉकडाउन और कोरोना महामारी के महासंकट के दौर में मनरेगा को गरीबों और मजदूरों की आजीविका के लिए सबसे बड़े सहारे के तौर पर देखा जा रहा था। इस मामले में सरकार ने भी अपनी तरह से इस पर जोर दिया है। देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने गांव पहुंचे बेरोजगार मजदूरों के लिए इसे एक बड़ा आसरा माना जा रहा था। लेकिन जमीनी स्तर से आने वाली रिपोर्टें तस्वीर का एक दूसरा ही रुख पेश करती दिख रही हैं। जिसमें मजदूरों के बजाय मनरेगा के काम में मशीनों का सहारा लिया जा रहा है।

जबकि यह मनरेगा के घोषित प्रावधानों के खिलाफ है। इसी तरह का एक मामला आजमगढ़ से सामने आया है जिसमें एक प्रधान मनरेगा का काम जेसीबी से करा रहा था। और जब एक प्रवासी मजदूर ने उसकी शिकायत की तो उल्टे प्रधान ने ही उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। आपको बता दें कि मरनेगा योजनाओं में सारा ही काम शारीरिक श्रम के जरिये होना है उसमें किसी भी तरीके की मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। 

रिहाई मंच ने इस मामले को उठाया है। उसने दोषी प्रधान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आजमगढ़ के जिलाधिकारी से गुहार लगायी है। उसने कहा कि इस मामले के वीडियो और फोटो बताते हैं कि मनरेगा के नाम पर भ्रष्टाचार हो रहा है। उसने जिलाधिकारी आजमगढ़ के अलावा ग्रामीण विकास मंत्रालय, आयुक्त आजमगढ़़, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, नई दिल्ली, श्रम एवं सेवा योजन मंत्रालय, उत्तर प्रदेश, मुख्य विकास अधिकारी आजमगढ़, डीसी मनरेगा आजमगढ़, उपायुक्त श्रम रोजगार आजमगढ़ को पत्र भेजा है।

संगठन के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मेंहनगर के शेखूपुर गांव के प्रवासी मजदूर रिंकू यादव ने उनको बताया कि 29 मई को गांव के कलोरा पोखरे में सुबह 10-11 बजे के करीब जेसीबी के द्वारा खुदाई का काम चल रहा था पूछने पर मालूम चला कि मिट्टी निकाली जा रही है। रिंकू ने पूछा कि क्या मनरेगा के तहत यह मिट्टी निकाली जा रही है। अगर ऐसा है तो गलत है। क्योंकि मजदूरों द्वारा निकाले जाने का कानून है। जिस पर जेसीबी हटवा दी गई। दो दिन बाद 1 जून को गांव के ही ढेकही पोखरे में रात लगभग 10 बजे के करीब जेसीबी द्वारा मिट्टी निकाले जाने का कार्य हो रहा था। जिसका गांव के लोगों ने विरोध किया तो जेसीबी चली गई। इसके पहले भी गांव में नदी के बांध का कार्य जेसीबी से करवाया गया था।

4 जून को शाम को पुलिस रिंकू के घर आई और सुबह थाने आने को बोला। जब वे थाने गए तो थानाध्यक्ष ने पर्यावरण दिवस के चलते दूसरे दिन आने को कहा। 6 जून को समाचार पत्र में प्रधान से मांगी 50 हजार की रंगदारी खबर छपी। सुबह 10 बजे जब वे थाने गए तो 12 बजे प्रधान राजराम यादव आए। थानाध्यक्ष ने दोनों पक्षों को बातचीत से मामले को हल करने को कहा। प्रधान नहीं माने तो थानाध्यक्ष ने रिंकू को कहा कि अंदर जाकर बैठ जाओ। दो घंटे बाद रिंकू और संजय यादव का पुलिस 107, 111, 116, 151 में चलान कर दिया। वहां से ले जाकर मेडिकल करवाया गया और फिर तहसील से उसी दिन उनको जमानत मिल गई।

राजीव ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में मनरेगा के तहत प्रवासियों व जाॅब कार्ड धारक पंजीकृत श्रमिकों को काम देने में उत्तर प्रदेश के टाॅप तीन में आजमगढ़ का शामिल होना बताया जा रहा। जिलाधिकारी द्वारा 15 जुलाई से 2 लाख श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में जेसीबी से खुदाई का यह मामला मजदूरों के हक पर डाका है। प्रवासी मजदूरों को लेकर पूरे देश में चिंता का माहौल है पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को निर्देशित किया है। कोरोना महामारी के दौर में मनरेगा प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार की आस बनकर उभरा है।

बांकेलाल और विनोद यादव ने बताया कि रिंकू यादव बंगलुरु में 2003 से बढ़ई का काम करते हैं। वो और उनका भाई सतीश यादव लाॅक डाउन में बंगलुरु में फंस गए थे। माता-पिता और पूरा परिवार आजमगढ़ में था ऐसे में रिंकू अपने साथियों के साथ बाइक से 29 अप्रैल को निकले थे। 30 अप्रैल को हैदराबाद में पुलिस ने उन्हें पकड़कर गाड़ी का चलान कर दिया। चार दिनों बाद मुश्किल से उन लोगों को छोड़ा पर गाड़ी नहीं छोड़ी। फिर वहां से वो और उनके साथी विजय कुमार 600-600 रुपए देकर ट्रक से नागपुर आए।

वहां किसी सामाजिक व्यक्ति द्वारा उनका मेडिकल करवाकर बस से 5 मई को मध्य प्रदेश की सीमा पर छोड़ा गया। वहां से फिर ट्रक से 800-800 रुपए देकर यूपी बार्डर आए। इलाहाबाद से ट्रक से 7 मई को आजमगढ़ आए और पीजीआई चक्रपानपुर में मेडिकल करवाकर 21 दिन घर में क्वारंटाइन रहे। किसी तरह की सरकारी मदद के बारे में पूछने पर वे कहते हैं कि कोटेदार ने पांच किलो अनाज दिया था और आशा कर्मी नाम नोट कर ले गईं हैं और बताया है कि उनका प्रवासी मजदूर के बतौर पंजीयन हो गया है।

गौरतलब है कि बड़े पैमाने पर अपने घर-परिवार को छोड़कर गया प्रवासी मजदूर सिर्फ रोजी-रोटी के लिए महानगरों को गया था। वहां सामाजिक सुरक्षा न मिलने के चलते उसे लौटना पड़ा जिसको लेकर प्रदेश सरकार ने भी तल्ख टिप्पणी की। रिंकू यादव तीन भाई दो बहन वाले परिवार में माता-पिता और पत्नी-बच्चों वाले इस परिवार के पास करीब चार बीघा जमीन है। ऐसे में रोजगार की इनकी चिंता स्वाभाविक है।

रिहाई मंच ने कहा कि प्रवासी मजदूरों को दी गई मदद के रूप में रिंकू को सिर्फ कोटेदार से पांच किलो अनाज की बात सामने आई जो कि एक गंभीर सवाल है। क्या सिर्फ यही मदद सरकार कर रही है। अगर नहीं तो आखिर प्रवासी मजदूरों का हक क्यों उनको नहीं मिल पा रहा। ऐसे में एक प्रवासी मजदूर अगर अपने रोजगार और वह भी मनरेगा को लेकर जागरुक है तो उसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। रिंकू यादव और संजय यादव की सुरक्षा की गांरटी करते हुए इनके आरोपों को संज्ञान में लेकर झूठा मुकदमा करने वाले प्रधान राजाराम यादव द्वारा गांव में जेसीबी के कराए जा रहे कार्यों की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।

यह मनरेगा जैसी बहुउद्देशीय परियोजना में भ्रष्टाचार का मामला है। इस मामले में रिंकू यादव द्वारा उपलब्ध कराए गए वीडियो और फोटो दोनों साक्ष्य के तौर पर मौजूद हैं। उपायुक्त श्रम रोजगार के अनुसार 22 विकास खंडों की 1871 ग्राम पंचायतों में काम चल रहा है। जिसमें 1765 ग्राम पंचायतों में कार्य प्रगति पर है। अब तक 117573 श्रमिकों को काम दिया जा चुका है। ऐसे में यह गंभीर सवाल है कि क्या मानकों के अनुरुप कार्य हो रहा है। इस घटना के आलोक में पूरे जिले में मनरेगा के तहत किए जा रहे कार्यों को संज्ञान में लिया जाए जिससे प्रवासी मजदूरों को रोजगार की गारंटी हो सके। 

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