झारखंड का पारसनाथ पर्वत पिछले कई सालों से सुर्ख़ियों में है। यह पर्वत जैन धर्मावलम्बियों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है, वहीं इस पर्वत की तलहटी में दर्जनों गांवों के हजारों लोग बसे हैं। इनकी जीविका का साधन डोली पर बैठाकर तीर्थयात्रियों को दर्शन कराना है। कुछ लोग यह काम मोटरसाइकिल पर बैठाकर करा रहे हैं, जिसका यहां के डोली मजदूर विरोध कर रहे हैं।
झारखंड के गिरिडीह जिला मुख्यालय से 1350 मीटर (4430 फुट) उंचा पारसनाथ पहाड़ है। इसके तलहटी में बसा है मधुबन, जहां जैनियों के 35-36 संस्थाएं हैं, जो अलग-अलग ट्रस्टों द्वारा संचालित होती हैं। कहना न होगा कि इन ट्रस्टों के ट्रस्टी सिर्फ दिखावे के होते हैं, ट्रस्ट का अध्यक्ष या सचिव इस संस्था के मुख्यत: मालिक होते हैं, जो अपनी संस्था के जरिए काफी पैसा अर्जित करते हैं।
मधुबन में स्थित इन तमाम संस्थाओं में लगभग पांच हजार कर्मी स्थायी व अस्थायी तौर पर काम करते हैं। दरअसल इस पर्वत की चोटी पर जैन धर्मावलम्बियों के सर्वोच्च तीर्थस्थल हैं। यह पर्वत श्री सम्मेद शिखरजी के नाम से जाना जाता है। जैन धर्मावलम्बियों में मान्यता है कि यहां उनके 24 में से 20 तीर्थांकरों (सर्वोच्च जैन गुरूओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की थी।
यहा बताना जरूरी होगा कि पर्वत की तलहटी मधुबन से पर्वत के शिखर तक की दूरी नौ किमी है। शिखर पर ही जैन धर्मावलम्बियों के उक्त 20 तीर्थांकर के मंदिर हैं, जिसके दर्शनार्थ व वंदना के लिए देश-विदेश से लाखों जैन तीर्थयात्री आते हैं, जिन्हें पर्वत पर स्थित मंदिरों की परिक्रमा व वंदना कराने के काम में लगभग 10 हजार डोली मजदूर लगे हुए हैं।

पर्वत की चढ़ाई नौ किलोमीटर, पर्वत पर स्थित मंदिरों की परिक्रमा नौ किलोमीटर और पहाड़ से उतराई नौ किलोमीटर, यानी कुल 27 किलोमीटर की यात्रा को इन डोली मजदूरों द्वारा जैन तीर्थयात्रियों को अपनी डोली पर बैठाकर करवाना पड़ता है। ऐसे में मधुबन के आस-पास के गांवों के लाखों लोगों का जीवनयापन का जरिया इन यात्रियों से जुड़ा हुआ है।
पिछले कुछ सालों से इन डोली मजदूरों की रोजी-रोटी पर ग्रहण सा लगने लगा है। कारण है, इलाके के कुछ दबंगों द्वारा आने वाले जैन तीर्थयात्रियों को मोटरसाइकिल (दोपहिया वाहन) से बिठा कर पर्वत पर स्थित मंदिरों की परिक्रमा व वंदना कराना। जिस पर डोली मजदूरों द्वारा पूरजोर विरोध व आंदोलन के बाद जिला प्रशासन व जिला पुलिस ने प्रतिबंध लगा कर क्षेत्र के कई जगहों पर इस आशय का बोर्ड लगा दिया।
मगर इन दबंगों द्वारा प्रशासन के इस प्रतिबंध और आदेश का कोई असर नहीं हुआ और उनका काम बदस्तूर जारी रहा। इसको लेकर डोली मजदूरों का नेतृत्व कर रही ट्रेड यूनियन झारखण्ड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन द्वारा पिछले छह मार्च को पारसनाथ पर्वत के मुख्य द्वार पर एकदिवसीय धरना दिया गया।
पारसनाथ पर्वत पर यात्रियों को बिठालकर वंदना करवाने का दोपहिया वाहन चालकों का सिलसिला जारी है, जिसे देख डोली मजदूरों के भीतर आक्रोश पनप रहा है। इसी का परिणाम है कि 6 मार्च को सैकड़ों की संख्या में डोली मजदूरों ने पारसनाथ पर्वत के मुख्य द्वार पर एकदिवसीय धरने में बैठ कर अपना आक्रोश व्यक्त किया।

डोली मजदूरों का नेतृत्व कर रही यूनियन के पदाधिकारियों द्वारा दोपहिया वाहन चालकों को चेतावनी देते हुए साफ कहा गया है कि डोली मजदूरों के साथ अन्याय को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मोटरसाइकिल द्वारा तीर्थयात्रियों को पर्वत पर लाने ले जाने का काम कर रहे दोपहिया वाहन के चालक तीर्थयात्री को मोटरसाइकिल पर ढोना बन्द करें, अन्यथा इसका परिणाम बुरा होगा।
पदाधिकारियों ने अपने वक्तव्य में बताया कि स्थानीय प्रशासन के रोक लगाने के बावजूद मोटरसाइकिल चालक बाज नहीं आ रहे हैं। प्रशासन द्वारा पर्वत के मुख्य द्वार पर सूचना पट्ट लगाया गया है, जिसमें पर्वत के ऊपर तीर्थयात्री को बिठालकर ले जाना कानून अपराध है। बावजूद मोटरसाइकिल चालक मानने को तैयार नहीं हैं और लुक छिप कर पर्वत पर वाहन लेकर चढ़ जाते हैं।
पारसनाथ पर्वत पर डोली मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले मजदूर रात भर जाग कर यात्री का इंतजार करते हैं और सुबह यात्री दोपहिया वाहन में बैठ कर पर्वत की ओर निकल पड़ते हैं, वहीं डोली मजदूर को बैरंग खाली लौटना पड़ता है, यही वजह है कि अपनी रोजी-रोटी के लिए यह डोली मजदूर न्याय की गुहार लेकर झारखण्ड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के पास गए, जहां से उनकी समस्या को गंभीरतापूर्वक लेते हुए यूनियन द्वारा आंदोलन की रूप रेखा तैयार करते हुए शनिवार को एकदिवसीय धरना दिया गया।
इस बाबत झारखण्ड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के पदाधिकारी बताते हैं कि झारखण्ड के गिरिडीह जिला अंतर्गत मधुबन के पारसनाथ पहाड़ पर जैन धर्मावलंबियों को दर्शनार्थ के लिए शुरुआती दौर से ही डोली मजदूरों के द्वारा पारसनाथ पहाड़ पर 27 किलोमीटर की परिक्रमा कराई जाती रही है, लेकिन करीब दो साल से पुलिस-प्रशासन के सहयोग से डोली मजदूरों की जगह सैकड़ों मोटरसाइकिल चलवाई जा रही है, जिससे हजारों डोली मजदूर बेरोजगार हो गए हैं।

इस संदर्भ में गिरिडीह उपायुक्त, एसपी एवं मधुबन थाना को लिखित ज्ञापन भी दिया गया था, जिसके उपरांत पुलिस-प्रशासन ने यह आश्वासन भी दिया था कि पारसनाथ पहाड़ पर यात्रियों को परिक्रमा कराने के लिए डोली मजदूर ही जाएंगे तथा पहाड़ के नीचे प्रशासन ने एक बोर्ड भी लगा रखा है, जिसमें लिखा हुआ है ‘पारसनाथ पर्वत पर दो पहिया वाहन चलाना वर्जित है’ परन्तु प्रशासन की बात भी झूठी निकली और पहाड़ में धरल्ले से मोटरसाइकिल चलाई जा रही है।
इसके कारण डोली मजदूरों के बीच भुखमरी की स्थिति बन गई है। हालांकि डोली मजदूरों ने बार-बार प्रशासन को आगाह करते हुए अपना विरोध दर्शाया है, और उसी संदर्भ में 6 मार्च को सैकड़ों डोली मजदूरों ने झारखण्ड क्रांतिकारी मजदूर यूनियन के बैनर तले दो पहिया वाहन के साथ-साथ पुलिस-प्रशासन के खिलाफ धरना प्रदर्शन एवं आमसभा की।
(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)