Friday, March 29, 2024

जोशीमठ: खजाना बचाना ज्यादा जरूरी है कि लोगों की जान 

 

कुछ ही दिन पहले नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथाॅरिटी ने एक आदेश जारी करके जोशीमठ में जांच और अन्य कार्य कर रही सरकारी संस्थाओं और अधिकारियों को जोशीमठ की घटनाओं के बारे में मीडिया और सोशल मीडिया को किसी भी तरह की कोई जानकारी न देने के लिए कहा था। इस आदेश के बाद इसरो ने अपनी वह रिपोर्ट वेबसाइट से हटा दी, जिसमें यह तथ्य उजागर किया गया था कि जोशीमठ पिछले 12 दिनों में 5.4 सेमी खिसक गया है और इससे पहले 7 महीने में 9 सेमी खिसका था। इस आदेश और इस रिपोर्ट को हटाने का कारण यह बताया गया कि इससे लोगों में दहशत होती है। फौरी तौर पर यह तर्क सही भी लगता है। क्योंकि लगातार दरकते घरों के कारण मानसिक तनाव झेल रहे जोशीमठ के लोग इस तरह की सूचनाओं से ज्यादा डर जाएंगे।

लेकिन, हाल ही में एक खबर मीडिया में खूब चली। खबर में कहा गया है कि जोशीमठ स्थित बैंक यहां बढ़ रहे खतरे को देखते हुए अपनी नकदी आसपास के नगरों में स्थित बैंक शाखाओं में शिफ्ट कर रहे हैं। इसके साथ ही यह खबर भी खूब चलाई गई कि जोशीमठ में रखे गये बदरीनाथ के खजाने को पीपलकोटी स्थित बदरीकेदार मंदिर समिति के गेस्ट हाउस में ले जाया जा रहा है। मंदिर समिति के एक पदाधिकारी को बाकायद स्क्रीन पर यह कहते देखा गया कि हमारा जो खजाना जोशीमठ में है, उसे पीपलकोटी ले जाने के लिए हमने कार्य योजना तैयार की है और जल्दी ही इस खजाने को शिफ्ट कर दिया जाएगा।

अब एक और खबर… देहरादून में जोशीमठ की स्थिति पर हुई बैठक के बाद आपदा प्रबंधन सचिव ने बताया कि अब जोशीमठ की दरारें नहीं बढ़ रही हैं। वहां जो क्रेकोमीटर लगाये गये थे, उनसे यह बात साफ हो गई हैं कि दरारें अब स्थिर हैं। एक खबर यह भी बताती है कि नेशनल जियोग्राफिकल रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों ने जोशीमठ से लौटकर यह बताया है कि अब कुछ दिन बाद जोशीमठ में स्थिति सामान्य हो जाएगी। वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी इस तरह की खबर को प्लांटेड खबर बताते हैं, जो लोगों को बरगलाने के लिए गढ़ी गई हैं। वे कहते हैं कि इस खबर में कहीं भी उस वैज्ञानिक का नाम नहीं है, जिसने यह जानकारी दी है। खबर में रिपोर्टर का नाम भी नहीं है।

इस तरह की खबरें कई सवाल पैदा करती हैं। पहला सवाल यह कि जब सरकारी अधिकारियों की ओर से जोशीमठ के हालात को लेकर कोई वैज्ञानिक और अन्य तरह की जानकारी देने से दहशत और डर का माहौल बनने की आशंका है तो बैंकों की द्वारा अपनी नकदी दूसरे शहरों के बैंकों में शिफ्ट करने की खबर से क्या दहशत नहीं फैलेगी? इससे क्या लोगों पर मनोवैज्ञानिक असर नहीं पड़ेगा? एक तरफ तो दरारें चौड़ी न होने का आश्वासन देकर यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि जोशीमठ में अब डरने की कोई बात नहीं है और दूसरी तरफ नगर में रखे गये बदरीनाथ के खजाने को पीपलकोटी शिफ्ट करने का ऐलान जोर-शोर से किया जा रहा है। एक सवाल यह भी उठता है कि क्या खजाना और नकदी जोशीमठ के लोगों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं? बैंकों की नकदी और मंदिर समिति का खजाना शिफ्ट करने के लिए तो आपने कार्य योजना तैयार कर ली। मीडिया में इसका ऐलान भी कर दिया, लेकिन जोशीमठ के लोगों को शिफ्ट करने के लिए आप क्या कर रहे हैं? 

दरअसल इस तरह के आदेश और इस तरह के बयान बताते हैं कि केन्द्र और राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन में कई छेद हैं। उत्तराखंड को स्थाई आपदाओं का प्रदेश कहा जाता है। यहां आपदा प्रबंधन के नाम मंत्रालय है, प्राधिकरण है, डिजास्टर मिटिगेशन सेंटर है, सचिवालय से लेकर जिला मुख्यालयों तक अधिकारियों की फौज भी है, बेशक ज्यादातर अधिकारी संविदा पर ही हैं। इसके बाद भी आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन की स्थिति यह है कि सरकार और उसके नुमाइंदे यह भी समझ पा रहे हैं कि उनके बयानों से आपदा से जूझ रहे लोगों पर कितना और कैसा मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ सकता है।

ज्यादातर लोगों की मनोदशा ठीक नहीं

जनचौक की ओर से मैं चार दिन तक जोशीमठ में रहा। इस दौरान मैंने शहर के सभी इलाकों का रियलिटी चेक किया और लोगों से बातचीत की। इस बातचीत में यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि यह रहने वाले ज्यादातर लोगों की मनोदशा ठीक नहीं है। वे बेहद तनाव में हैं। कुछ लोग ऐसे भी मिले जो इन दिनों चिड़चिड़े हो गये हैं, जबकि कुछ लोग चीजें भूल रहे हैं। बच्चे से लेकर बूढ़े तक मानसिक तनाव में हैं। जोशीमठ के ठीक ऊपर नोग गांव में मैं अपने मित्र प्रकाश रावत के घर पर गया। उनका तीन वर्ष का बच्चा अपनी तोतली आवाज में मुझे अपने घर के कमरे की दरारें दिखा कर बताने लगा कि ये दरार यहां से ऊपर तक जा रही है। सुनील गांव में 50 वर्षीय दुर्गा प्रसाद सकलानी मिले। वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करना है। उनका घर डेढ़ वर्ष पहले से दरक रहा था। अधिकारियों से मिले तो कहा गया कि बुनियाद कच्ची डाली होगी। अब जब पूरे जोशीमठ के साथ सकलानी जी और उनके दो अन्य भाइयों का घर भी 

ज्यादा धंसने लगा तो तीन परिवारों के 14 लोगों को तुरंत अपना सामान निकालकर होटल में जाने के लिए कहा गया। रात को सभी लोग होटल में जा रहे हैं, दिन में टूटे हुए घर पर आ जाते हैं। लेकिन, थोड़ी-थोड़ी देर में कोई अधिकारी या पुलिसकर्मी आकर घर से चले जाने के आदेश सुना जाता है। मैंने नोट किया श्री सकलानी हर बात पर झुंझला रहे हैं। यहां तक कि मोबाइल की बेल बजने पर भी वे झुुंझला जाते हैं। श्री सकलानी की 22 वर्षीय बेटी काॅलेज में पढ़ रही है। कहती है, घर टूटने की टेंशन के साथ ही ये जो बार-बार अधिकारी आकर धमकी की भाषा में घर से चले जाने के लिए कह रहे हैं, उससे हम लोग बेहद परेशान हो गये हैं। 

जोशीमठ के छावनी बाजार में मैं भवानी लाल से मिला। वे मुझे पिछले वर्ष मई में भी मिले थे, जब इस इलाके में सबसे पहले घरों में दरारें आई थी। मई महीनें में भवानी लाल लगातार इस स्थिति को लेकर अधिकारियों से मिल रहे थे। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती के साथ वे हर मोर्चे पर खड़े थे। लेकिन इस बार वे तनाव में थे। एक तो घर की दीवारें दरक रही थी। ऊपर से उन्हें जबरन होटल में भेजा जा रहा था। भवानी लाल ने कहा कि यह क्या बात है कि अपने छोटे-छोटे घरों से निकलकर कई मंजिलों में चले जाओ, उन होटलों में जो खुद भी कभी भी दरक सकते हैं। वे कहते हैं कि घर यदि टूट भी गया तो वे शायद इधर-उधर भागकर बचाव कर सकते हैं, लेकिन यदि होटल गिर गया तो कहां जाएंगे, उन्हें तो वहां से भागने के रास्ते भी ठीक से पता नहीं हैं।

जोशीमठ में मैं सिंहधार में स्थिति काफल होमस्टे में ठहरा। इसे चलाने वाले शिवराम सिंह मेरे जानकार हैं। इस सीजन में बर्फबारी देखने वाले लगातार जोशीमठ आते थे और सभी कमरे बुक होते थे। इस बार सब खाली है। होमस्टे बेशक अब तक सही सलामत है, लेकिन वहां तक पहुंचने की सड़क एक जगह दरक गई है। जब भी मैं जोशीमठ के अलग-अलग हिस्सों को देखकर होमस्टे लौटा या जब भी उनसे आमना-सामना हुआ, उन्होंने एक सवाल हर बार पूछा, बच जाएगा जोशीमठ? मेरे पास एक ऐसा आश्वासन देने के अलावा कुछ नहीं था, जिस आश्वासन से मैं खुद आश्वस्त नहीं था। मुझे सुबह 5 बजे शिवराम सिंह टाॅर्च की रोशनी से घर की दीवारों का मुआयना करते दिखे, इस अंदेशे से कि कहीं रात को दीवारें फट तो नहीं गई हैं। जोशीमठ में जो घर दरक चुके हैं, वे लोग तो मानसिक तनाव में हैं ही, जिन घरों में अब तक दरारें नहीं आई हैं, वे भी भारी मानसिक दबाव का सामना कर रहे हैं। 

( त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं। देहरादून में रहते हैं।)

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