Saturday, April 27, 2024

जोशीमठ संघर्ष के सौ दिन पूरे, पुनर्वास नीति और मुआवजे की मांग को लेकर लोगों ने दिया धरना

उत्तराखंड। सौ दिन पहले हर अखबार, टीवी चैनल जोशीमठ धंसाव की खबरों से भरे पड़े थे। जोशीमठ में जो तबाही हुई उससे जोशीमठ के हजारों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सरकार द्वारा 167 लोगों को मुआवजे के रूप में 10 करोड़ रुपये बांट दिये गये हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दो दिन पहले एक कार्यक्रम में यह घोषणा भी कर दी है कि जोशीमठ सुरक्षित है और चार धाम यात्रा के लिए तैयार है।

सरकारी वेबसाईट के अनुसार करीब 11 लाख लोग चार धाम की यात्रा के लिए जोशीमठ से होकर गुजरेंगे। लेकिन ग्राउंड पर जाकर देखा गया तो पता चला है कि लोग बे-घरबार हो गए हैं और भयानक खतरे की आशंका में अपने दिन काट रहे हैं।

जोशीमठ संघर्ष समिति पिछले सौ दिनों से जोशीमठ के लोगों के उचित पुनर्वास एवं विस्थापन के लिए संघर्ष कर रही है। लेकिन उनका कहना है कि सरकार ने उनकी मांगे अनसुनी कर राम भरोसे छोड़ दिया है। दो महीने बाद मानसून आने वाला है जिस कारण लोग भारी तबाही की आशंका से घबराए हुए हैं। इस आंदोलन के समर्थन में हिमालयी राज्यों के युवाओं द्वारा गठित ‘यूथ फॉर हिमालय’ भी मैदान में आ डटा है।

इस धरने में कई संगठनों से मिलकर बने समूह की टीम समर्थन देने के लिए आई है जिसने बुधवार को दिन भर घूम कर जोशीमठ के प्रभावितों से बातचीत की। गौरतलब है कि जोशीमठ में भू-धंसाव के मामले दिसंबर से ही आने शुरू हो गए थे। जनवरी की शुरुआत में कई जगहों पर भू-धंसाव की घटनाएं आई थीं। शहर के मनोहर बाग, सुनिल, सिहंधार वार्ड एवं ओली रोड़ में लोगों ने घरों में दरार आने की बातें कही थीं।

नगर क्षेत्र में भू-धंसाव से मकानों के साथ कृषि-भूमि के भी प्रभावित होने की घटनाएं सामने आई थीं। यहां खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ीं और कई जगहों पर तो खेतों की दरारें एक फिट तक चौड़ी हो गईं। धंसाव का सिलसिला दो-तीन जनवरी की रात को सामने आया जब कई मकानों में अचानक बड़ी दरारें आ गईं। इसके बाद तो पूरे नगर में खौफ फैल गया।

मारवाड़ी वार्ड में स्थित जेपी कंपनी की आवासी कॉलोनी के कई मकानों में दरारें आईं। कॉलोनी के पीछे पहाड़ी से रात को ही अचानक मटमैले पानी का रिसाव भी शुरू हो गया था। दरार आने से कॉलोनी का एक पुश्ता भी ढह गया। साथ ही बद्रीनाथ हाईवे पर भी मोटी दरारें आईं। वहीं, तहसील के आवासीय भवनों में भी हल्की दरारें दिखीं। भू-धंसाव से शंकराचार्य मठ परिसर में दरारें आई।

सिंहधार वार्ड नंबर चार की बिसेश्वरी देवी का कहना है कि वह अपनी नाबालिक व बिना बाप की दो पोतियों को लेकर कहां जाएं। वह अपनी गायों को कहां लेकर जाएं। इंसानों के लिए तो कुछ दिन खाने की व्यवस्था सरकार ने की भी थी। जनवारों के लिए हर महीने पंद्रह हजार रुपये देने की बात भी कही थी। लेकिन वह किसी को भी मिले नहीं। हमारे घरों में दरारे आ गयी हैं। उनकी जेठानी, देवरानी का घर पूरी तरह से गिर गया है। हमें एक स्कूल में ठहराया गया है लेकिन अपनी गाय को कहां लेकर जाएं।

बिसेश्वरी आगे बताती हैं कि “जिस खेत में सब्जियां उगा कर हम अपना गुजारा करते थे उस खेत में दरारें हैं वहां कुछ नहीं बोया गया। घर में आते हुए डर लगता है”। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से अपील कि है कि “वोट के समय तो आ जाते हो लेकिन जब हम बेघरबार हो गये हैं तो आकर भी नहीं देखा। हमारे मुख्यमंत्री दो दिन पहले जोशीमठ में आए, मैराथन की लेकिन दो कदम दूर न हमारे धरने पर आए न हमारे घरों को देखने के लिए आए”।

वह सवाल करती हैं क्या हमने इसी के लिए वोट दिये थे। उनकी मांग है कि उन्हें घर के बदले घर दिया जाए, खेत के बदले खेत दिया जाए। पैसा का क्या है, पैसा तो आनी-जानी चीज है। कितने दिन उस पैसे के बल पर हम अपना गुजारा करेंगे। हम घर में बूढ़ा-बूढ़ी ही बचे हैं। मेरे जवान बेटे की मौत हो गयी है। जमीन के बिना हम कैसे अपना गुजारा करेंगे। वह अपने बेटे को याद करते हुए रोने लगती हैं।

जोशीमठ के लोगों का दावा है कि ‘नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन’ (एनटीपीसी) कंपनी ने ‘विष्णुगढ़ हाइ़ड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट’ में एक सुरंग तैयार करने के लिए 39 ब्लास्ट करवाए जिसके कारण धरती के भीतर मौजूद कोई प्राकृतिक जलस्रोत फट गया है। जिसके बाद शहर के कुछ हिस्सों से बेहद तेज कीचड़ वाला पानी लगातार बहने लगा। जिससे शहर तेजी से धंसने लगा।

12 किलोमीटर लंबी सुरंग नदी का पानी ‘पन-बिजली स्टेशन’ के ‘टरबाइन’ तक ले जाएगी जिसके कुछ हिस्से शहरियों के दावे के अनुसार जोशीमठ की ज़मीन के भीतर से गुजार रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ ‘बीआरओ’ जैसी एजेंसिया और अन्य निजी कंपनियां रोड बनाने का काम कर रही हैं। जिसमें ब्लास्टिंग और भारी मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है।

24 दिसंबर 2009 बड़े-बड़े शहरों की धरती के नीचे मेट्रो ट्रेन के लिए चुपचाप सुरंग खोद देने वाली एक बड़ी ‘टनल बोरिंग मशीन’ (TBM) अचानक फंस गई थी। सामने से हजारों लीटर साफ पानी बहने लगा। महीनों बीत गए, लेकिन काबिल से काबिल इंजीनियर न इस पानी को रोक सके और न TBM चालू हुई। दरअसल, इंसानों की बनाई इस मशीन ने प्रकृति के बनाए एक बड़े जल भंडार में छेद कर दिया था। लंबे समय तक रोज 6 से 7 करोड़ लीटर पानी बहता रहता है। धीरे-धीरे ये जल भंडार खाली हो गया।

यह जल भंडार जोशीमठ के ऊपर पास ही बहने वाली अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर खड़े पहाड़ के 3 किलोमीटर अंदर था। ‘TBM मशीन’ से ये सुरंग चमोली जिले के जोशीमठ में बन रहे ‘विष्णुगढ़ हाइ़ड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट’ के लिए खोदी जा रही थी। यह ‘नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन’ यानि NTPC का प्रोजेक्ट है। दरअसल यह काम एक भारतीय कंस्ट्रक्शन कंपनी ‘लार्सन एंड टुब्रो’ (L&T) और एक आस्ट्रेलियाई कंपनी ‘एल्पाइन मेरेडर बाउ’ कर रही थी। लेकिन 2014 में आई भौगोलिक अड़चनों के बाद यह समझौता तोड़ दिया गया।

‘एलएंडटी’ और ‘एलपाइन मेरेडर बाउ’ के बीच ‘एनटीपीसी’ की इस टनल के लिए समझौता नवंबर 2006 में हुआ था। यह समझौता 456 करोड़ रुपये का था। इस कंपनी को 11.5 किलोमीटर की टनल का निर्माण करना था।

इसके अलावा अगले काम के लिए अक्तूबर 2007 में ठेका मिला हुआ था ‘पटेल इंजीनियरिंग कंपनी’ को। इस ठेके की रकम इससे अधिक यानी 107 मिलियन अमेरिकी डालर थी। जबकि पहली कंपनियों को 102 मिलियन डालर का ठेका मिला था। ‘पटेल इंजीनियरिंग कंपनी’ को इसके लिए ‘प्रेसर शाफ्ट’, ‘पेन-स्टाक’, ‘टेल रेस टनल’, ‘स्विच यार्ड’ और ‘पावर हाउस’ बनाना था।

2010 में जब टनल से पानी रिसना शुरू हुआ तो स्थानीय लोगों ने विरोध किया था। लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। परियोजना जोशी मठ से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूरी पर चल रही है। ‘एबबी कंपनी’ को ट्रांसफार्मर सप्लाई का ठेका मिला। ‘रित्विक प्रोजेक्ट्स’ को बैराज बनाने का ठेका मिला। ‘Geoconsult’ नामक कंपनी को कंस्लटेशन की जिम्मेदारी मिली और इसका मुख्य वित्त पोषक बना ‘एशियन डेवलपमेंट बैंक’ यानी एडीबी।

वर्तमान में ‘हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी’ इस टनल पर काम कर रही है जिसको 96 मिलियन डालर का ठेका मिला हुआ है। समय-समय पर अलग-अलग विशेषज्ञों ने इस तरह के घटनाक्रम होने की चेतावनियां दी थीं। 2003 से ही सामाजिक कार्यकर्ताओं, छोटे-छोटे आंदोलनों ने दोनों ही राज्यों में इस तरह के घटनाक्रमों को सरकार के दरवाजे तक पहुंचाने की लगातार कोशिश की है। जोशीमठ की स्थिति की चेतावनी तो 46 साल पहले 1976 में ही 18 सदस्यों वाली एमसी मिश्रा समिति ने अपनी रिपोर्ट में दे दी थी।

समिति की रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ पुराने लैंडस्लाइड जोन पर बसा है, जिसके नीचे चट्टान नहीं, बल्कि रेत और पत्थर हैं। अलकनंदा नदी और धौली गंगा के बहाव से नदी और पहाड़ के किनारों पर लैंडस्लाइड होती रही है। रिपोर्ट का कहना था कि ज्यादा कन्स्ट्रक्शन ऐक्टिविटी और बढ़ती आबादी से लैंडस्लाइड और ज्यादा बढ़ेंगे ही। रिपोर्ट ने सीधे शब्दों में सड़क कि मरम्मत, हैवी कन्स्ट्रक्शन, पहाड़ खोदने और ब्लास्टिंग पर सख्त रोक के लिए सुझाव दिया था।

इसके बाद ‘वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी’ समेत कई अन्य बड़े संस्थानों ने लगातार चेतावनियां दीं। हालांकि, सरकार या प्रशासन ने इन्हें कितना सुना या माना ये आज सबके सामने है। साल 2006 में वैज्ञानिकों की एक टीम ने ‘जोशीमठ लोकलाइज्ड सब्सिडेंस एंड एक्टिव इरोजन ऑफ द एटी वाला’ नाम से रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें साफ बताया गया था कि जोशीमठ शहर और आस-पास के इलाके जैसे रवि ग्राम वार्ड, कामेट और सेमा हर साल एक सेंटीमीटर खिसक रहे हैं।

इसके बाद साल 2020 में जियोलॉजिस्ट और ‘उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर’ के निदेशक प्रोफेसर एम.पी.एस बिष्ट और पीयूष रौतेला ने भी जोशीमठ इलाके पर एक स्टडी की थी, जो ‘करेंट साइंस’ में छपी थी। इसमें कहा गया था कि जोशीमठ और तपोवन इलाके भूगोल, पर्यावरण के हिसाब से संवेदनशील है। इसके बावजूद इस पूरे इलाके के आसपास ‘हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं’ को मंजूरी दी गई है। विष्णुगढ़ भी ऐसी ही एक परियोजना है।

धंसाव से कुछ दिन पहले रोपड़ आईआईटी के वैज्ञानिक भी निरीक्षण के लिए आए थे उन्होंने भी कहा था कि यहां पूरे शहर को खतरा है लेकिन प्रशासन ने पहले से कोई इंतजाम नहीं किये हैं। पहली नजर में ही जोशीमठ में हुए इस आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदार केंद्र और राज्य सरकारें हैं। जिन्होंने ऐसी परियोजनाओं को मंजूरी दी। और उसके बाद वह कंपनियां, कंपनियों के अधिकारी, यूनिवर्सिटियों के प्रोफेसर और उनके शागिर्द जिन्होंने कंपनियों के हितों में पर्यावरण प्रभाव और सामाजिक प्रभाव जैसी रिपोर्टें तैयार की।

वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत अपने लेख में लिखते हैं कि “पन बिजली संयत्रों, ‘आल वेदर रोड’ आदि विकास के नाम पर सुरंग आधारित परियोजनाओं के निर्माण से इस हिमालयी राज्य में ऐसी स्थितियां पैदा की जा रही हैं जो यहां के जंगल, जमीन की नमी को तो बर्बाद करेंगी ही, बर्फ भी नहीं टिक पाएगी और नदियां सूख जाएंगी। जल स्रोतों का सूखना भावी आपदा का संकेत तो दे ही रहे हैं। उस स्थिति में जबकि राज्य में तकरीबन सैकड़ों सुरंग आधारित परियोजनाओं पर काम जारी है।

600 से अधिक सुरंग आधारित बांध प्रस्तावित हैं। जिसके लिए हजारों किलोमीटर लम्बी सुरंगे बनेंगी। इसके चलते तकरीबन 500 से ज्यादा गांव तबाह हो जाएंगे। बांधों के लिए किए जाने वाले विस्फोटों से जहां पहाड़ों के टुकड़े होंगे वहीं उनका मलबा नदियों में जाएगा जो बाढ़ की भयावहता में बढ़ोतरी करेगा।

‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ के संयोजक अतुल सती द्वारा दो महीने पहले एक स्टेटमेंट जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि “यह साबित हो गया है कि जोशीमठ के विनाश का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ एनटीपीसी की ‘तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना’ है” जैसा कि हम भी वर्षों से कहते आ रहे थे।

इन तथ्यों के मद्देनजर अब यह जरूरी हो गया है कि जोशीमठ के विनाश का हर्जाना एनटीपीसी से वसूला जाए। ठीक ‘चाईं’ की तर्ज पर ही एनटीपीसी हमारे नुकसान की भरपाई करे। उनकी कुल परियोजना लागत का दोगुना वह जोशीमठ वासियों को दे। इस तरह प्रत्येक परिवार के हर व्यक्ति के हिस्से में एक करोड़ रुपया आता है। परियोजना जो कभी 3200 करोड़ की थी अब 10 हजार करोड़ से ज्यादा की हो चुकी है।

एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक मानवता की धरोहर नगरी को नष्ट करने की वैसे तो कोई कीमत नहीं हो सकती। एनटीपीसी प्रत्येक परिवार व व्यक्ति की हानि के लिए दोषी है। एनटीपीसी हरेक व्यक्ति एवं परिवार को एक-एक करोड़ रुपये दे। सरकार इसके लिये एनटीपीसी को निर्देशित करे। केंद्र सरकार हमारे घर के बदले घर व जमीन के बदले जमीन देते हुए नए व अत्याधुनिक जोशीमठ के समयबद्ध नव निर्माण के लिये एक उच्च स्तरीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करे।

सेना के जनरल व इसरो के वैज्ञानिकों के बयान के बाद अब बहुत कुछ कहने को नहीं है। स्थितियां स्पष्ट हैं। बस वक़्त का इंतजार है। सेना द्वारा अधिग्रहित व कब्जा की गई हमारी भूमि का भी तत्काल सरकार हिसाब करे। क्योंकि आपदा के बाद यह सवाल ही फाइलों में दब जाएगा। हमारी बेनाप भूमि जिस पर हम वर्षों से काश्तकारी करते आ रहे हैं और सरकार की लापरवाही के कारण बंदोबस्ती न होने के चलते वह काश्तकारों के नाम पर नहीं हो पाई है, उसको भी हमारे खातों में दर्ज किया जाए। जिससे भूमि के बदले मिलने वाली भूमि अथवा मूल्य हमें मिल सके।

 ‘यूथ फॉर हिमालय’ का मानना है कि जिस तरह की गंभीर त्रासदी जोशीमठ में हुई है उसके लिए सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर जरूरी प्रतिक्रिया जताए जाने की जरूरत थी। पिछले तीन महीनों से जोशीमठ की जनता इसके लिए संघर्ष कर रही है, जो कि पूरे हिमालय क्षेत्र की जनता के लिए चिंता का मुख्य कारण बना हुआ है, इस संकट ने हिमालय के भविष्य को चिंता में डाल दिया है। समस्त हिमालय में बनाई जा रही तमाम विद्युत परियोजनाओं, सड़क परियोजनाओं, रेल परियोजनाओं, बांध परियोजनाओं पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए।

वनों पर आश्रित समुदायों जैसे घुमंतुओं, दलितों व आदिवासी जनता के जंगलों व संसाधनों पर उनके अधिकारों को मजबूत करने वाले कानूनों को शक्तिशाली बनाया जाए और लागू किया जाए। हिमालय क्षेत्र में आपदा प्रभावित जनता का तेज गति के साथ पुनर्वास किया जाए। और भविष्य में इस तरह से जनता परेशान न हो इसके लिए ठोस कार्य योजना बनाई जाए।

(स्वतंत्र पत्रकार गगनदीप सिंह की रिपोर्ट)

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