नई दिल्ली। पत्रकार और लेखक कौशलेंद्र प्रपन्न का निधन हो गया है। तकरीबन एक हफ्ते तक अस्पताल के आईसीयू में जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते हुए आज उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आपको बता दें कि टेक महिंद्रा ने उन्हें अपमानित कर के नौकरी से निकाल दिया था। वजह उनके द्वारा शिक्षा पर लिखा गया एक लेख था जिसमें उन्होंने सरकार की कुछ आलोचना की थी। कौशलेंद्र इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके और अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन नियति के क्रूर हाथों ने उन्हें छीन लिया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापक और उनके भाई राघवेंद्र प्रपन्न ने बताया है कि आज शाम को 5 बजे रोहिणी के पास स्थित नाहरपुर श्मशान भूमि में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
उनके निधन पर साहित्यकार और पत्रकार प्रिय दर्शन ने फेसबुक पर एक टिप्पणी की है। पेश है उनकी पूरी टिप्पणी:
कौशलेंद्र नहीं रहे। टेक महिंद्रा निष्कंटक हुआ। अब वह शान से सरकारों और नगर निगमों के साथ समझौता कर निष्प्रयोजन शिक्षा की अपनी दुकान चला सकता है। अब वहां कोई ऐसा आदमी नहीं बचा, जिसकी राय या टिप्पणियां व्यवस्था को असुविधाजनक और इसलिए कंपनी को नियम विरुद्ध लगती हों।

यह अफ़सोस ज़रूर होता है कि कौशलेंद्र इतने कमज़ोर क्यों निकले। जब उन्हें कुछ डरे हुए लोग अपमानित कर रहे थे तो उन्होंने पलट कर जवाब क्यों नहीं दिया। जब उन्हें निकाला जा रहा था तो पलट कर क्यों नहीं कहा कि इससे उनका नहीं, कंपनी का नुक़सान होगा।
शायद बहुत शराफ़त का अभ्यास या बहुत संवेदनशीलता की मजबूरी हमें क्रूर और अशिष्ट होने से रोकते हैं। फिर व्यवस्था हमें असुरक्षित करती चलती है और एक दिन किसी कमज़ोर लम्हे में हम उसके शिकार हो जाते हैं।
कौशलेंद्र को एक कंपनी के व्यवहार से ज़्यादा शायद अकेले पड़ जाने या असुरक्षित हो जाने के एहसास ने मारा।
मैं नहीं जानता, अब हम आगे क्या करेंगे। उस न्याय की शक्ल क्या होगी जो हमें कौशलेंद्र और उन जैसे तमाम संवेदनशील लोगों के लिए- अपने लिए भी- चाहिए। लेकिन कौशलेंद्र की नियति हमारी प्रतीक्षा भी कर रही है- उस नाटकीय तेज़ी से नहीं, तो भी एक धीमी मौत आश्वस्त भाव से हमारी राह देख रही है।
निजी तौर पर मैंने एक ऐसा मित्र और प्रशंसक खो दिया है जो मेरे कुछ भी लिखे हुए को बहुत ध्यान से पढ़ता और सहेजता था। ऐसे पाठक और मित्र नहीं मिलते।