मोदी मंत्रिमंडल के ताजा फेरबदल में किरेन रिजिजू से कानून और न्याय मंत्रालय को छीनकर अर्जुन मेघवाल को दे दिया गया। राष्ट्रपति भवन ने गुरुवार को एक विज्ञप्ति में कहा कि केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू को कानून और न्याय विभाग से हटा दिया गया है और उन्हें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय सौंपा गया है। अर्जुन राम मेघवाल को रिजिजू के स्थान पर उनके मौजूदा विभागों के अलावा कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है।
मंत्रिमंडल में फेरबदल करते हुए केंद्र सरकार की वेबसाइट पर अपलोड की गई प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है:
“भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार, केंद्रीय मंत्रिपरिषद में मंत्रियों के बीच विभागों के निम्नलिखित पुनर्आवंटन का निर्देश देते हैं-
(i) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का पोर्टफोलियो श्री किरेन रिजिजू को सौंपा जाए।
(ii) श्री अर्जुन राम मेघवाल राज्य मंत्री को श्री किरेन रिजिजू के स्थान पर उनके मौजूदा विभागों के अलावा कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में स्वतंत्र प्रभार सौंपा जाए”।
रिजिजू और न्यायपालिका के रिश्ते कभी अच्छे नहीं थे। रिजिजू का न्यायपालिका से खुला टकराव मोदी सरकार की मुसीबतें बढ़ाता गया। रिजिजू ने न्यायपालिका के प्रति खुले तौर पर टकराव वाला रवैया अपनाया था। उन्होंने बार-बार जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को “अपारदर्शी”, “संविधान से अलग” और “दुनिया में एकमात्र प्रणाली जहां जज अपने परिचित लोगों को नियुक्त करते हैं” कहा था।
हालांकि उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच कोई टकराव नहीं है, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि जजों को न्यायिक आदेशों के माध्यम से नियुक्त नहीं किया जा सकता है। और यह सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। दरअसल उन्होंने जोर देकर कहा था कि न्यायिक नियुक्ति न्यायपालिका का कार्य नहीं है और इसकी प्राथमिक भूमिका मामलों को तय करना है।
रिजिजू के बयानों को सरकार समर्थित मीडिया ने इसे हमेशा सरकार बनाम न्यायपालिका की लड़ाई बताकर पेश करती रही है। इस लड़ाई को तार्किक परिणति तक पहुंचाने में रिजिजू की बलि स्वाभाविक है। दरअसल कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के टकराव में सुप्रीम कोर्ट ने ‘देवता’ के साथ संविधान और कानून के शासन को तरजीह दी। नतीजतन एक के बाद एक ऐसे फैसले आए जिससे सरकार की परेशानी बढ़ी और सरकार की किरकिरी हुई।
रिजिजू जजों पर टिप्पणियों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। उन्होंने कॉलेजियम को लेकर भी कहा था कि देश में कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है। रिटायर्ड जजों पर भी बयान देते हुए उन्होंने कहा था कि “कुछ रिटायर्ड जज ‘एंटी इंडिया ग्रुप’ का हिस्सा बन गए हैं”।
सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस ने रिजिजू के बयान को कभी महत्व नहीं दिया लेकिन समय-समय पर विभिन्न मंचों से जमकर करारा जवाब ज़रूर दिया। रिजिजू ने बयानों के जरिए न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश की जिससे मोदी सरकार की घोर बेइज्जती के कई मामले सामने आते हैं। इधर सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले भी सरकार को परेशान करने वाले थे।
सुप्रीम कोर्ट पर अकेले रिजिजू हमलावर नहीं थे बल्कि भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी कई बार न्यायपालिका पर हमला बोला था। आमतौर पर उपराष्ट्रपति जैसे पद पर बैठा शख्स न्यायपालिका के संबंध में हद दर्जे की गिरी हुई बयानबाजी नहीं करता है। लेकिन धनखड़ के बयान न सिर्फ न्यायपालिका, और बार में बल्कि आम लोगों में भी पसंद नहीं किया गया।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दिल दिखाते हुए अभी सोमवार को ही न्यायपालिका और कॉलिजियम प्रणाली पर अपनी विवादास्पद टिप्पणी के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और रिजिजू के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ ‘बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन’ (बीएलए) की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी। हाईकोर्ट में अपनी याचिका में वकीलों की संस्था ने आरोप लगाया कि रिजिजू और धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम के खिलाफ सार्वजनिक रूप से किए गए अपने आचरण और बयानों के माध्यम से संविधान में विश्वास की कमी दिखाते हुए खुद को संवैधानिक पदों पर रखने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया।
‘बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन’ ने पिछले साल रिजिजू और धनखड़ द्वारा दिए गए कई बयानों का हवाला दिया, जो जजों के चयन तंत्र और दोनों के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच चल रहे टकराव को बताते हैं।
धनखड़ ने कॉलिजियम सिस्टम पर भी सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को रिमाइंडर के साथ जवाब दिया कि कॉलिजियम प्रणाली जमीनी कानून है। जिसका पालन सरकार को “टू ए टी” करना चाहिए।
(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार है।)