चिली में वामपंथी ताकतों की जीत ने साफ किया जनपक्षीय संविधान के निर्माण का रास्ता

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15-16 मई को दक्षिण अमेरिकी देश चिली में संविधान सभा के 155 सदस्यों के चुनाव के लिए मतदान हुआ था। रविवार 16 मई को मतदान खत्म होते ही मतगणना शुरू हुई। सोमवार 17 मई की शाम तक ज्यादातर नतीजे आ गए। इसमें सत्तासीन दक्षिणपंथी दलों के गठबंधन वामोस को 155 में से सिर्फ 36 सीटें मिली हैं। यानी संविधान सभा में अब उनकी ताकत एक चौथाई से भी कम होगी।

उधर, वामपंथी रुझान वाले दो गुटों को मिलाकर 52 सीटें मिली हैं। इनमें वामपंथी और स्वतंत्र विचारधारा वाले दलों के गुट को मिली 24 और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले मोर्चे को मिली 28 सीटें शामिल हैं। 15 अन्य सीटें स्वतंत्र उम्मीदवारों को मिली हैं। संविधान सभा में 17 सीटें मूलवासी समुदाय के लिए आरक्षित रखी गई हैं। नुएवा कॉन्स्टीट्यूशन नाम एक गुट ने 9 सीटें जीती हैं। सीएनएन के मुताबिक संविधान का नया चार्टर बनाने के लिए 12,00 से ज्यादा लोगों ने चुनाव लड़ा था जिनमें एक्टर, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता, टीवी होस्ट और फैशन मॉडल तक शामिल थे। जीतने वालों में फ्रैंचिस्का लिंकोनाओ शामिल हैं। वह मापुशे आदिवासी समुदाय की माची आध्यात्मिक नेता हैं और आतंकवादियों से संपर्कों के आरोपों में उन्हें जेल में डाल दिया गया था। हालांकि बाद में सारे आरोप वापस ले लिए गए।

मतदान में राष्ट्रपति सेबास्टियन पिन्येरा के चिली वामोस गठबंधन के उम्मीदवार बीस प्रतिशत वोट ही ले पाए हैं। जबकि ज्यादातर मत निर्दलीय उम्मीदवारों को मिले हैं। देश का नया संविधान बनाने के लिए चुने जा रहे ये लोग एक अहम काउंसिल बनाएंगे, जिसके प्रस्ताव को पास होने के लिए दो तिहाई मतों की जरूरत होगी। यानी सरकार के पास संविधान परिषद के प्रस्ताव रोकने या पास करवाने के लिए पर्याप्त मत नहीं होंगे।

चिली वामोस के उम्मीदवारों को हाल के दिनों में मेयर, गवर्नर और म्यूनिसिपल चुनावों में करारी हार मिली है। जिसके बाद गठबंधन के लिए नवंबर में होने वाले आम चुनावों की राह मुश्किल हो गई है। देश का नया संविधान बनाने की मांग अक्तूबर 2019 में उठी थी जब जगह-जगह गैर बराबरी के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन हुए थे। ये आंदोलन पिछले साल भी जारी रहा। तब मौजूदा सरकार को ये मांग माननी पड़ी। तब एलान हुआ था कि अगली संसद संविधान सभा के रूप में काम करेगी। अब चुनी गई संविधान सभा आम संसद के रूप में भी काम करेगी। इसलिए अब देश में वामपंथी रुझान वाली सरकार बनने का रास्ता भी साफ हो गया है।

2019 के जन आंदोलन का नेतृत्व चिली की कम्युनिस्ट पार्टी- फ्रंते एम्पलियो ने किया था। उसे और उसके साथ मिल कर चुनाव लड़ने वाली पार्टियों को इस चुनाव में सबसे अधिक सफलता मिली है। उनके अलावा दक्षिणपंथी गुट छोड़ कर जीते ज्यादातर गुट भी नया संविधान बनाने के समर्थक हैं। इसलिए नए सदन में मौजूदा संविधान को पूरी तरह बदल देने के समर्थक सदस्यों का बहुमत होगा। रॉयटर्स के मुताबिक जिन बदलावों को लेकर ज्यादा चर्चा है उनमें जमीन और पानी पर निजी अधिकार और रोजगार कानूनों में फेरबदल शामिल हैं।

मौजूदा संविधान 1973-1990 के बीच ऑगस्टो पिनोशे की तानाशाही के दौरान बनाया गया था और आमतौर पर इसे बड़े व्यापारियों के पक्ष में माना जाता है।

इस बार चुनाव में वामपंथी उम्मीदवारों को बड़ी सफलता मिली है। इसे लैटिन अमेरिका में बदल रहे राजनीतिक मूड का संकेत समझा जा रहा है। चिली लैटिन अमेरिका में वह देश है, जहां 1970 के दशक में सैनिक तख्ता पलट के बाद सबसे पहले नव-उदारवादी आर्थिक नीतियां अपनाई गई थीं। उसी सैनिक शासन के समय जो संविधान बना, वह कमोबेश अब तक लागू है। अब निर्वाचित हुई संविधान सभा देश के लिए नया संविधान बनाएगी। कुल मिलाकर इन चुनाव नतीजों को वामपंथी और नवउदारवाद-विरोधी ताकतों की महत्त्वपूर्ण जीत माना गया है। गौरतलब है कि दक्षिणपंथी पार्टियों ने नया संविधान बनाने की मांग का विरोध किया था। ऐसी संभावना जताई गई थी कि अगर वे जीतीं, तो थोड़े-बहुत बदलाव के साथ पुराने संविधान को बनाए रखेंगी। लेकिन अब एक ऐसा नया संविधान बनने की संभावना है, जिसके मार्गदर्शक सिद्धांतों में बुनियादी बदलाव होगा और जिसके जरिए एक नया सामाजिक- आर्थिक मॉडल देश में अपनाया जाएगा।

देश के उग्र वामपंथी ब्रॉड फ्रंट गठबंधन के नेता गैब्रिएल बोरिस कहते हैं कि चुनाव के नतीजों ने दुनिया के सबसे बड़े तांबा उत्पादक चिली में एक बड़े बदलाव की राह तैयार कर दी है। उन्होंने कहा, “हम अपनी आदिवासी आबादी के लिए एक नए समझौते की उम्मीद कर रहे हैं। हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को वापस चाहते हैं और ऐसा देश बनाना चाहते हैं जिसमें सबके लिए अधिकार सुनिश्चित हों। नया चिली बनाने के लिए हम शून्य से शुरू करने जा रहे हैं।” नया संविधान बनाने के लिए सदस्य अधिकतम एक साल का समय लेंगे और फिर अंतिम प्रस्तावों पर देश के लोग फिर से मतदान करेंगे। अगर ये प्रस्ताव पारित नहीं होते हैं तो मौजूदा संविधान ही लागू रहेगा।

चिली के घटनाक्रम का असर दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों पर भी पड़ सकता है। बोलिविया और वेनेजुएला के चुनावों में वामपंथ की बड़ी जीत के बाद चिली भी अब इस श्रेणी में शामिल हुआ है। अब निगाहें अगले साल ब्राजील में होने वाले चुनाव पर हैं, जिसमें एक बार फिर से लूला नाम से मशहूर पूर्व राष्ट्रपति और लोकप्रिय वामपंथी उम्मीदवार लुइज इनेशियो लूला दा सिल्वा मैदान में उतरेंगे। उनके जीतने की संभावना इस बार उज्ज्वल मानी जा रही है।

(शैलेंद्र चौहान की रिपोर्ट। शैलेंद्र आजकल जयपुर में रहते हैं।)

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