केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को लगातार मिलते समर्थन के बीच महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने भी समर्थन देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। यह पत्र उन्होंने किसानों के भारत बंद के एक दिन बाद 9 दिसंबर को लिखा है।
महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले ने प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र के आरंभ में मोटे अक्षरों में लिखा है– ‘मैं भी किसान हूं’।
इसके बाद आगे उन्होंने पत्र को विस्तार देते हुए लिखा है कि किसानों का जो आंदोलन शुरू हुआ है वह जायज है और यह न केवल उनकी आत्मसम्मान की लड़ाई है बल्कि यह उनके अधिकारों की लड़ाई है, इसलिए देश के अन्नदाता ठंड और कोरोना की परवाह न करते हुए आज आपके बनाए इन कानूनों के विरोध में सड़कों पर हैं।
आपके बनाये नये कृषि कानून किसान विरोधी हैं, इसलिए लाखों किसान आज इसके विरोध में उतरे हैं, इसलिए उम्मीद है कि आप यह कानून वापस लेंगे। नाना पटोले ने अपने पत्र के अंत में लिखा है कि यदि आप यह कानून वापस नहीं लेते हैं तो संवैधानिक पद पर होते हुए भी मुझे अन्नदाताओं की लड़ाई में शामिल होना पड़ेगा।
गौरतलब है कि इससे पहले कई राष्ट्रीय और देश के अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पदक विजेता खिलाड़ियों, पूर्व सैन्य अधिकारियों, लेखक, बुद्धिजीवियों और तमाम ट्रेड और ट्रांसपोर्टर यूनियन किसानों के आंदोलन को समर्थन देने का एलान कर चुके हैं। हाल ही में पंजाब के डीआईजी (जेल) ने भी किसानों के समर्थन में अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था।
डीआईजी लखविंदर सिंह जाखड़ ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए कहा था, “मैं इस पद पर रहते हुए किसान आंदोलन का समर्थन नहीं कर सकता, इसलिए मैंने राज्य के मुख्य सचिव को अपना इस्तीफा भेज दिया।” जाखड़ ने कहा कि उन्होंने किसानों के साथ खड़े होने के लिए यह निर्णय लिया है।
इससे पहले एम्स रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के पूर्व प्रेसिडेंट हरजीत सिंह भट्टी ने भी किसानों के आंदोलन को समर्थन देने की अपील करते हुए ट्वीट किया था।
उन्होंने लिखा था, “किसान 6 माह का राशन लेकर आए हैं तो हम डॉक्टर्ज़ ने भी एक साल की दवाई इकट्ठी कर ली है। जब तक किसानों का संघर्ष चलेगा और काले क़ानून वापस नहीं हो जाते हम उनके साथ हैं। आज किसान आंदोलन के समर्थन में शहीद भगत सिंह पार्क, ITO के सामने प्रदर्शन किया।”
एक दूसरे ट्वीट में एक सिख किसान की तस्वीर साझा कर भट्टी ने लिखा, “अगर इस तस्वीर को देखने के बाद भी आप किसानों को आतंकवादी कहते हैं तो आप इंसान नहीं हैवान हैं। आप समझने की कोशिश करें कि किसान कितना परेशान होगा जो इस बीमारी की हालत में भी सड़कों पर उतरा है।” #काले_क़ानून_वापिस_लो।
गौरतलब है कि इससे पूर्व दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष किसानों के आंदोलन को समर्थन देने की बात कह चुके हैं।
बावजूद इसके सरकार और बीजेपी के नेता लगातार किसानों को खालिस्तानी, नक्सली, टुकड़े-टुकड़े गैंग, देशद्रोही बता रहे हैं!
इस बीच भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (ASSOCHAM) ने किसानों की समस्या को जल्द सुलझाने की अपील की है। एसोचैम ने कहा है कि किसानों के आंदोलन की वजह से व्यापार को रोज 3500 करोड़ का नुकसान हो रहा है।
देश के प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम (ASSOCHAM) ने सरकार और किसान संगठनों से किसानों के मुद्दों का शीघ्र समाधान करने का अनुरोध किया है। एसोचैम ने कहा कि किसानों के विरोध प्रदर्शन और आंदोलन के चलते हर दिन 3500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। एसोचैम ने कहा कि मौजूदा विरोध प्रदर्शनों से पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश क्षेत्र की परस्पर अर्थव्यवस्थाओं को बड़ा नुकसान हो रहा है।
एसोचैम ने कहा है कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की संयुक्त अर्थव्यवस्था का आकार करीब 18 लाख करोड़ रुपये है। किसानों के मौजूदा विरोध प्रदर्शन और रोड, टोल प्लाजा और रेलवे का चक्का-जाम करने से आर्थिक गतिविधियों को बड़ी क्षति पहुंची है।
इस बीच सरकार ने सिंघू बॉर्डर पर रैपिड एक्शन फ़ोर्स तैनात कर दी है।
कल के नेशनल हेराल्ड में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मोदी सरकार किसानों को हटाने के लिए बल प्रयोग का रास्ता अपना सकती है, जिनमें लाठीचार्ज, भीमा कोरेगांव की तर्ज पर चुनिंदा किसान नेताओं की गिरफ़्तारी भी शामिल है।
नेशनल हैराल्ड ने इस रिपोर्ट में लिखा है, किसान आंदोलन को लेकर वैश्विक स्तर पर आलोचना की परवाह किए बिना मोदी सरकार आने वाले दिनों में आंदोलन को खत्म करने के लिए बल प्रयोग का रास्ता अपना सकती है। किसान नेता और सरकार के बीच बातचीत में शामिल लोगों के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ नेताओं की चुनिंदा गिरफ़्तारी (टार्गेटेड अरेस्ट) विशेषकर वाम संगठनों से जुड़े नेताओं की गिरफ़्तारी हो सकती है। गौरतलब है कि हाल ही में किसान नेताओं की वार्ता में शामिल रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी किसानों के आंदोलन को वामपंथी संगठनों द्वारा एजेंडा करार दिया है।
(वरिष्ठ पत्रकार नित्यानंद गायेन की रिपोर्ट।)
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