Friday, April 26, 2024

नियुक्ति घोटाला:ममता के मंत्री सीबीआई के घेरे में 

कोलकाता। सरकारी स्कूलों और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में ग्रुप सी, ग्रुप डी और सहायक शिक्षकों के पद पर नियुक्ति के मामले में भारी घोटाला हुआ है। हाईकोर्ट ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है। ममता बनर्जी की सरकार के वरिष्ठ मंत्री और एक राज्य मंत्री सीबीआई के घेरे में आ गए हैं। सीबीआई के अफसर उनसे कई चरणों में घंटों पूछताछ कर चुके हैं। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। मामले की सुनवाई कर रहे हाई कोर्ट के जज ने आशंका जताई है कि इस घोटाले में करीब 500 करोड़ रुपए का लेनदेन हुआ है।

इस घोटाले में शक की सुई मौजूदा उद्योग मंत्री और तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी पर टिकी हुई है। इसीलिए सीबीआई ने सबसे पहले उन्हीं से पूछताछ की। पर आगे बढ़ने से पहले मौजूदा शिक्षा राज्य मंत्री परेश अधिकारी का किस्सा बयान करते हैं। उनकी बेटी अंकिता अधिकारी को सहायक अध्यापिका की नौकरी मिली है। हाई कोर्ट के आदेश पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। अभी तक तनख्वाह के रूप में मिली रकम वापस करनी पड़ी है। सीबीआई ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।

सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के लिए एक पैनल बना था और उसमें अंकिता अधिकारी का नाम कहीं नहीं था। अचानक पैनल बदल जाता है और बीसवें स्थान पर रहीं बबिता सरकार का नाम गायब हो जाता है। अंकिता अधिकारी का नाम पैनल में सबसे ऊपर आ जाता है। हाई कोर्ट में रिट दायर करने के बाद खुलासा होता है कि मंत्री की बेटी को 61 और बबिता को 77 अंक मिले थे। इसके बावजूद मंत्री की बेटी पैनल में पहले स्थान पर आ गई। हाई कोर्ट के जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने उसी दिन सीबीआई को परेश अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और पूछताछ करने का आदेश दिया।

दरअसल इस घोटाले की रूपरेखा बेहद शातिर अंदाज में 2020 में रची गई थी। पर उन्हें क्या खबर थी की घने अंधेरे में भी इस घोटाले का सूरज निकल आएगा और पूरे राज्य में इसके चेहरे का खुलासा हो जाएगा। सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में ग्रुप सी, ग्रुप डी और सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के लिए 2016 में स्कूल लेवल सिलेक्शन टेस्ट का आयोजन किया गया था। इसकी नियुक्ति प्रक्रिया 2019 के मार्च में समाप्त हो गई थी। अब 2020 में इन पदों पर नियुक्ति करने के लिए साजिश रची गई। इसे अंजाम देने के लिए तत्कालीन शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के आदेश पर शिक्षा विभाग के उप सचिव ने एक सलाहकार समिति बनाई थी और डॉक्टर शांति प्रसाद सिन्हा को कन्वेनर बनाया गया था। तत्कालीन शिक्षा मंत्री के निजी सचिव एस आचार्य, मंत्री के ओएसडी पीके बंदोपाध्याय, शिक्षा विभाग के उपनिदेशक एके सरकार और विधि अधिकारी टी पंजा इसके सदस्य बनाए गए थे।।

शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के आदेश के आधार पर उप शिक्षा सचिव ने इस कमेटी का गठन किया था। यहां गौरतलब है कि डॉ शांति प्रसाद सिन्हा का शिक्षा विभाग या स्कूल सर्विस कमीशन से कभी कोई सरोकार नहीं रहा था। जस्टिस सुब्रत तालुकदार की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि कक्षा 9 और 10 के लिए सहायक अध्यापकों और ग्रुप सी एवं ग्रुप डी पदों पर नियुक्तियों में सार्वजनिक घोटाला हुआ है। इस घोटाले में शामिल लोग एसएससी और शिक्षा विभाग के बड़े अफसर हैं। तत्कालीन शिक्षा मंत्री द्वारा गठित सुपर कमेटी और इसके सलाहकार शांति प्रसाद सिन्हा ने इस घोटाले में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।

अब आइए इस बात पर गौर करते हैं कि इस घोटाले का खुलासा कैसे हुआ। एक आवेदक ने जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की कोर्ट में रिट दायर की और  आरोप लगाया कि मेरिट लिस्ट में नाम होने के बावजूद उसे नौकरी से वंचित कर दिया गया। जब सुनवाई आगे बढ़ी तो पता चला कि ग्रुप डी में 600 से अधिक लोगों की अवैध नियुक्ति की गई है। इसके बाद ग्रुप सी के 300 से अवैध नियुक्तियों का खुलासा हुआ। इसके साथ ही सहायक अध्यापकों की अवैध नियुक्ति का भी खुलासा हुआ है। बताते हैं कि एक-एक पद के लिए कई लाख रुपये लेकर नियुक्तियां दी गईं। स्कूल सर्विस कमीशन के रूल्स के अनुसार पहले कमीशन नियुक्ति के लिए संस्तुति पत्र जारी करता है और इसके आधार पर माध्यमिक शिक्षा परिषद नियुक्त करता है। जब हाईकोर्ट में मामले का खुलासा हुआ तब एसएससी का दावा था कि उसने कोई संस्तुति पत्र जारी नहीं किया।

दूसरी तरफ परिषद का दावा था कि उनकी संस्तुति पत्र के आधार पर ही नियुक्ति दी गई है। गौरतलब है कि दोनों ही सरकारी महकमा हैं और एक दूसरे को झूठा ठहरा रहे थे। सौमित्र सरकार 2019 व 2020 में एसएससी के चेयरमैन थे और उन्होंने कोर्ट में खड़ा होकर बयान दिया था कि संस्तुति पत्र पर उन्होंने दस्तखत नहीं किया था। उन्हें पता नहीं कि संस्तुति पत्र पर उनके दस्तखत कैसे किए गए थे। इसके बाद यह खुलासा हुआ कि संस्तुति पत्र पर शांति प्रसाद सिन्हा और सुपर कमेटी की पहल पर चेयरमैन के स्कैन सिग्नेचर किए गए थे। जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने अभी तक जो सामने आया है उसे घोटाले का सिरा बताते हुए इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है।

राज्य सरकार किसी भी हालत में इसकी जांच सीबीआई को सौंपी जाने के पक्ष में नहीं थी। उन्होंने इस आदेश के खिलाफ जस्टिस हरीश टंडन के डिवीजन बेंच में अपील कर दी। राज्य सरकार को इससे फौरी राहत तो मिली पर इसके बाद जो सामने आया वह सरकार के लिए और जानलेवा साबित हुआ। जस्टिस टंडन ने पूर्व जस्टिस आरके बाग की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाकर उसे इसकी जांच सौंप दी। इसी दौरान जस्टिस टंडन ने निजी कारणों का हवाला देते हुए इस मामले को सुनने से मना कर दिया।

इसके बाद यह मामला जस्टिस तालुकदार के डिवीजन बीच में आ गया।। इसी दौरान बाग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी। इसमें कहा गया है कि एक बड़े पैमाने पर सार्वजनिक घोटाला हुआ है। कमेटी के सदस्यों और कुछ अफसरों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने और कुछ अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने की सलाह दी गई है। बाग कमेटी की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद जस्टिस सुब्रत तालुकदार के डिविजन बेंच ने जस्टिस गंगोपाध्याय की फैसले को सही करार दिया है। यानी सीबीआई को जांच सौंपी जाने के आदेश पर डिवीजन बेंच की मुहर लग गई है। इसी सप्ताह सीबीआई को अपनी जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में पेश करनी है। इस घोटाले के खुलासे के बाद बने दबाव के कारण सरकार काफी पशोपेश में है। वह हाईकोर्ट के डिवीजन बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी नहीं जा पा रही है।

(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।) 

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