रक्षा मंत्रालय ने दिसंबर 2021 में नगालैंड के ओटिंग गांव में निहत्थे नागरिकों की गोली मारकर हत्या करने के आरोपी 30 भारतीय सैनिकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। नगालैंड पुलिस ने 13 अप्रैल को कहा कि रक्षा मंत्रालय के तहत सैन्य मामलों के विभाग ने आरोपी सैनिकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के राज्य सरकार के अनुरोध को खारिज कर दिया है।
5 दिसंबर, 2021 को सेना के 21 पैरा स्पेशल फोर्स ने कोयला खनिकों को तिरू से मोन जिले के ओटिंग गांव ले जा रही एक पिक-अप वैन पर गोलीबारी की थी, जिसमें सवार आठ ग्रामीणों में से छह की मौत हो गई थी।
नागरिकों की हत्या से गुस्साए ग्रामीणों ने सेना के जवानों पर हमला किया, जवानों ने जवाबी कार्रवाई में उन पर गोलियां चलाईं, जिसमें सात लोग और मारे गए। एक जवान की भी मौत हो गई और 14 अन्य घायल हो गए।
सेना ने दावा किया था कि यह गलत पहचान का मामला था और टीम ने सोचा था कि ग्रामीण एनएसीएन के उग्रवादी थे। हालांकि सेना की अपनी कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में पाया गया कि एक मेजर रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में घात लगाकर हमला करने वाली टीम ने मानक संचालन प्रक्रिया का पालन नहीं किया और उग्रवादियों के रूप में निश्चित रूप से पहचान किए बिना ग्रामीणों पर गोलियां चला दीं।
सेना ने हत्याओं की अपनी ‘कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी’ पूरी कर कहा कि यह “गलत पहचान और निर्णय की त्रुटि का मामला” था।
बड़े पैमाने पर जन प्रतिरोध के बाद नगालैंड सरकार ने हत्याओं की एसआईटी जांच का आदेश दिया था। नगालैंड पुलिस की एसआईटी जांच में पाया गया कि सेना के ’21 पैरा स्पेशल फोर्स’ ने “हत्या करने और नागरिकों को घायल करने के इरादे से” खुलेआम गोलियां चलाईं।
नगालैंड पुलिस ने ’21 पैरा स्पेशल फोर्स’ के 30 सदस्यों को भी चार्जशीट किया था, जिसमें एक अधिकारी सहित हत्या, हत्या के प्रयास और सबूत नष्ट करने से संबंधित आईपीसी की धाराओं के तहत मामला शामिल था।
घटना के एक साल से भी कम समय के बाद केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने 30 सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार कर दिया है। इसके बाद नगालैंड पुलिस ने एक बयान में कहा है कि केंद्र से अभियोजन स्वीकृति के बिना ‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम’ के तहत क्षेत्रों में सुरक्षा कर्मियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती है। सेना की अलग ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ पूरी हो गई है, लेकिन आगे की कार्रवाई पर अभी फैसला लेना बाकी है।
घटना के बाद के हफ्तों नगालैंड में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे, खासकर राज्य के पूर्वी जिलों में, जहां ओटिंग गांव पड़ता है। प्रभावशाली ‘पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन’, जो पूर्वी नगा जनजातियों का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही ‘कोन्याक जनजाति’ के प्रतिनिधि निकाय ‘कोन्याक संघ’ ने कहा था कि वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक कि न्याय नहीं दिया जाता और अफस्पा को हटा नहीं दिया जाता।
हालांकि कई स्थानीय लोगों का कहना है कि उबलता गुस्सा काफी हद तक दूर हो गया है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि ग्रामीणों की ओर से सरकार के साथ मध्यस्थता करने वाले नागरिक समाज संगठन मामले को पहले की तरह सक्रिय रूप से आगे नहीं बढ़ा रहे हैं।
सैनिकों को अभयदान दिये जाने पर ओटिंग गांव के लोग विशेष रूप से खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं। ओटिंग छात्र संघ के अध्यक्ष और घटना में मारे गए कुछ लोगों के मित्र केपवांग कोन्याक का कहना है कि “यह दुखद है क्योंकि हमारे नेता अब इस पर चर्चा नहीं कर रहे हैं। प्रभावित लोगों में ज्यादातर गरीब और अशिक्षित हैं।”
नगालैंड कांग्रेस ने मामले को आगे नहीं बढ़ाने के लिए सरकार पर निशाना साधा है। नगालैंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के थेरी ने कहा कि “कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है। वहीं कांग्रेस नेता जीके झिमोमी ने कहा कि भाजपा शांति की बात कर सकती है लेकिन उसने कुछ भी हासिल नहीं किया है।”
इसके जवाब में नगालैंड के बीजेपी विधायक इमकोंग इमचेन ने कहा कि राज्य सरकार असहाय थी क्योंकि अफस्पा के तहत आने वाले क्षेत्र “केंद्र सरकार के आदेश” के अंतर्गत आते हैं। एनडीपीपी मंत्री केजी केन्ये, जिनके पास संसदीय मामलों का विभाग है, ने कहा कि कोई “केंद्र या राज्य प्राधिकरण को दोष नहीं दे सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को उठाया था। जुलाई 2022 में शीर्ष अदालत ने प्राथमिकी और एसआईटी की रिपोर्ट पर कार्यवाही पर रोक लगा दी थी, जिसमें सुरक्षा बलों को अफस्पा द्वारा दी गई छूट का हवाला दिया गया था”।
कोर्ट ने यह निर्देश ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाले सेना अधिकारी की पत्नी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया था। याचिकाकर्ता ने सैन्य मामलों के विभाग द्वारा मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देने का हवाला देते हुए चार्जशीट पर रोक लगाने की मांग की थी।
(दिनकर कुमार की रिपोर्ट)