Friday, March 29, 2024

मिलिए असम विधानसभा के सबसे कम उम्र के सदस्य और मिया कवि अशरफुल हुसैन से

असम विधानसभा के नवनिर्वाचित 126 सदस्यों में सबसे कम उम्र के सदस्य हैं, अशरफुल हुसैन। उनकी उम्र अभी महज 27 वर्ष है और वो ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फंड (AIUDF) के टिकट पर बरपेटा जिले की सेंगा (Chenga) विधानसभा सीट से जनता द्वारा चुनकर विधानसभा भेजे गये हैं। अशरफुल हुसैन मिया कवि हैं और पिछले साल मिया कविता लिखने पर उन समेत 10 कवियों के ख़िलाफ़ केस दर्ज़ किया गया था। इतना ही नहीं वो विगत कई वर्षों से समाजसेवी के तौर पर भी जऩकल्याण का काम करते आ रहे हैं। जबकि अपने कैरियर की शुरुआत उन्होंने एक पत्रकार के तौर पर किया था।

अशरफुल हुसैन जनचौक से बात करते हुये बताते हैं कि वो ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर बसे हरिपुर गांव के रहने वाले हैं। वो नदी किनारे के ग्रामीण जीवन और उनकी समस्याओं को देखते भोगते हुए बड़े हुये हैं। किसान परिवार से तालुल्क रखने वाले अशरफुल ने इस चुनाव के लिए क्राउड फंडिंग का सहारा लिया। लोगों ने उन्हें रुपये, सब्जी चावल, और दूसरी ज़रूरत की चीजों मुहैया करवायी। उनके लिये प्रचार करने वाले एक भी व्यक्ति ने उनसे पेट्रोल या डीजल के पैसे नहीं मांगे। सब कुछ स्वतःस्फूर्त होता गया।

आखिर एआईयूडीएफ ही क्यों

गौरतलब है कि कांग्रेस, लेफ्ट व एआईयूडीएफ के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन से व एआईयूडीएफ पार्टी के टिकट पर अशरफुल हुसैन चुनाव में निर्वाचित हुये हैं। AIUDF  से ही क्यों? इस मुद्दे पर नवनिर्वाचित एमएलए अशरफुल बताते हैं कि मैं जिन मुद्दों पर काम करता था उस मुद्दे पर काम करते हुये इस पार्टी के बहुत से लोग मिलते थे। क्योंकि ये पार्टी भी उन मुद्दों पर काम करती थी। हमारे जो लोग थे उन्होंने कहा कि हम इस पार्टी के जरिये उन मुद्दों को आगे बढ़ा सकते हैं। अशरफुल हुसैन कहते हैं कि प्रत्याशियों को पार्टी का समर्थन और विचारधारा मायने रखती है। एआईयूडीएफ में कोई व्यक्तिगत या सांप्रदायिक राजनीति नहीं होती। इसके अलावा पार्टी में हमें अपनों के लिए और हाशिये के लोगों के लिये बोलने का अवसर मिलता है। इस बार हमारी पार्टी का सरकार भी बनने का ज़्यादा अवसर था। लेकिन कुछ सीटों की कमी से हम सरकार नहीं बना पाये। ये दुख हमारे मन में रहा। लेकिन ये बात स्पष्ट है कि इस पार्टी में रहकर हमें वो आज़ादी मिलती है कि हम गरीब और हाशिये लोगों की बात उठायें। लोग इस पार्टी को पसंद भी करते हैं।

राजनीति में आना कैसे हुआ। इस सवाल के जवाब में अशरफुल हुसैन कहते हैं –“ मैं स्वतंत्र रूप से समाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करता आ रहा हूँ। साथ ही अलग अलग संस्थाओं के साथ जुड़कर भी काम किया है। इस दरम्यान मैंने लोगों को बहुत करीब से देखा है उनकी समस्याओं को समझा है। इसीलिये लोगों के साथ मेरा जो प्यार मोहब्बत का रिश्ता बना इसी रिश्ते ने मुझे राजनीति में आने के लिये मजबूर किया। लोगों ने बहुत आग्रह किया कि अब मुझे राजनीति में आना ही चाहिये। इसीलिये मैं राजनीति में आया। और पार्टी ने मुझे टिकट भी दिया। पार्टी की ताक़त, कार्यकर्ताओं की मेहरबानी और लोगों की मोहब्बत से मेरी जीत हुयी।”

क्या एनआरसी सीए भी एक अहम मुद्दा था राजनीति में आने के लिये। इस सवाल पर असम विधान सभा के सबसे युवा विधायक अशरफुल हुसैन कहते हैं- “इक्जैक्टली। हमारा सपना था कि कोई भी नागरिक जो इस देश का नागरिक है उसे स्टेटलेस न किया जाये। इसीलिये इस मुद्दे को हमने आगे बढ़ाया। हमने सबको संगठित करके संघर्ष के रूप में आगे बढ़ाया। फिर इस संघर्ष को मुकाम तक कैसे पहुंचाया जाये, ये तो चुनाव के जरिये सरकार का हिस्सा होकर ही करना है। अशऱुल आगे बताते हैं कि तो हमने इसे सरकार के जरिये आगे लेकर जाने की कोशिश की, लेकिन सरकार नहीं बना पाये। फिर भी हम विधानसभा में पूरी मेहनत औऱ ताक़त के साथ इस मुद्दे को आगे लेकर जायेंगे।

तीन चार पीढ़ियों से एनआरसी असम की राजनीति का मुद्दा बना हुआ है। कोई ठोस जमीनी मुद्दा इसे क्यों नहीं रिप्लेस कर पाया? इसके जवाब में अशरफुल हुसैन बताते हैं कि – “एनआरसी या घुसपैठिये का मुद्दा ज़्यादा दिन टिकेगा नहीं। इसीलिये बीजेपी का कोशिश है कि कुछ लोगों को स्टेटलेस बना दिया जाये ताकि वो इस मुद्दे को आगे बढ़ा सकें। लेकिन इस मुद्दे में तो कुछ है ही नहीं। राजनीति करने के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ लोगों का हैरसमेंट करके अपने लिये राजनीति का एक ऑथोरिटी बना सकें, एक इन्फ्रास्ट्रक्चर बना सकें इसीलिये इस मुद्दे को भाजपा असम में बढ़ावा दे रही है। लेकिन हम सोचते हैं कि गरीब जनता का जो रोटी रोज़गार का बात है उस बात को सम की राजनीति में हम आगे बढ़ायेंगे। एक बार हमारा सिटिजनशिप की समस्या हल हो जायेगा तो यहां अगले दिन से विकास की राजनीति शुरु होगी। तब हमारे बेरोज़गार लोगों को काम मिलेगा। ये हो नहीं पा रहा है, पर हमारी कोशिश जारी है। हम असम के युवा समाज को एक उपहार देना चाहते हैं जिसमें वो भाईचारा और बहनापा के साथ बसर कर सके। हिंदू मुसलमान के नाम पर दंगा और फसाद और फूट न हो, इसका एक इनवायरोंमेंट हम तैयार करेंगे।

अतिरिक्त संसाधनों और रायजोर व एजीपी को वोटकटवा भूमिका से भाजपा सत्ता में लौटी

सीएए क़ानून को लेकर पिछले एक साल में भाजपा के ख़िलाफ़ विरोध  का माहौल रहा है। 40 लाख हाशिये के समाज के लोग उत्पीड़ित हुये। पूरे असम को कागज लेकर लाइन में लगना पड़ा। बावजूद इसके भाजपा गठबंधन सत्ता में वापिस लौटी क्यों।

उपरोक्त सवाल के जवाब में अशरफुल कहते हैं कि एक तो भाजपा के पास संसाधन बहुत ज़्यादा था। नोटबंदी के बाद इनके पास बहुत सारा पैसा आया है। सारे काले धन को उन्होंने व्हाइट मनी बना लिया था। बाक़ी पार्टियों के पास इतना पैसा, इतना संसाधन नहीं था। बीजेपी के बहुत से कार्यकर्ता इधर उधर हुये। भाजपा को अकेले बहुमत नहीं मिला है। लोगों ने भाजपा को खारिज किया है । लेकिन बावजूद इसके अगर भाजपा जीती है तो इसमें कुछ और फैक्टर हैं। जिसने भाजपा को पॉवर में आने में मदद किया है। राइजोरा और एजीपी दो पार्टियों ने वोटकटवा की भूमिका निभाई। इन्होंने कांग्रेस का वोट काट दिया इसका भाजपा को फायदा पहुंचा।

एआईयूडूएफ ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 सीटें जीतकर आये। लेकिन हमारा गठबंधन पार्टियां इतनी सीटें जीतकर नहीं आ पायी। लेकिन हम सब एक साथ मिलकर काम करेंगे।

जब आप सब एक ही मुद्दे पर लड़ रहे थे, और भाजपा की सांप्रदायिक विभाजनवादी राजनीति के खिलाफ़ लड़ रहे थे, तो अखिल गोगोई को अलग से रायजोरा पार्टी बनाने की ज़रूरत क्यों पड़ी। आप लोगों ने उन्हें साथ क्यों नहीं लिया।

इस सवाल के जवाब में अशरफुल हुसैन कहते हैं कि-“हम लोगों की पूरी इच्छा थी कि वो साथ में आये। लेकिन वो नहीं आये। उन्होंने कहा कि गठबंधन में एआईयूडीएफ है इसलिये यूपीए के साथ नहीं आयेंगे। पार्टी के साथ उनको क्या समस्या है क्यों नफ़रत है ये नहीं मालूम। लेकिन अखिल गोगोई ने जो किया है वो बहुत भयंकर है। ये असम के जन याद रखेंगे कि इन दोनो पार्टियों ने हमें बहुत तकलीफ दी है और इनके चलते ही भाजपा सत्ता में आई।

राजनीतिक प्राथमिकतायें

आप एक कवि हैं और कवि समाज का सबसे संवेदनशील व्यक्ति होता है जबकि राजनीति बहुत सी साजिशें और जटिलताओं को लेकर चलती है। दो बिल्कुल विरोधी ध्रुवों को साधने एक कवि का राजनीति पर चले?  

इस आखिरी सवाल के जवाब में असम के विधायक व मिया कवि अशरफुल हुसैन प्रतिक्रिया देते हुये कहते हैं- “बेशक़ मैं एक कवि हूँ, लेखक हूँ, पर कवि भी समाज का अभिन्न हिस्सा होता है। मुझे लगता है मैंने कवि के तौर पर कविता के जरिये जो बातें जन तक पहुँचाया उस बात को एक्जीक्यूट करने के लिये इसे विधानसभा में ले ज़ाना ज़रूरी है। तो इसीलिये मेरे कवि को लगा कि चुनाव लड़कर राजनीति में आकर लोगों के मुद्दों को एक्जीक्यूट करवाया जाये।

असम की राजनीति में अपनी प्राथमिकताओं को रेखांकित करते हुये अशरफुल हुसैन बताते हैं कि सिटीजनशिप की जो समस्या है उसका समाधान मेरी पहली प्राथमिकता है। हम संविधान का शासन कामय रखना चाहतें है और इसकी हिफ़ाजत चाहते हैं। क्योंकि आज संविधान ख़तरे में है। यह बात पूरा देश, पूरी दुनिया बता रही है। ये जो भगवा राजनीति असम में और पूरे हिंदुस्तान में जा रहा है इसके जरिये हम देखते हैं कि ये पूरे समाज को मार्जिनलाइज्ड कर रहा है। पब्लिक सेक्टर को पूरा कंगाल बनाकर ये कार्पोरेट की दुनिया बनाने की कोशिश कर रहे हैं इसके जरिये ज्यादा से ज्यादा लोगों को गरीब और मार्जिनलाइज्ड बनाने की इनकी कोशिश जारी है। इसीलिये हम सोचते हैं कि गरीब निम्न वर्ग, दलित आदिवासी माइनोरिटी आदि तमाम वर्ग के लोगों के न्याय के लिये हम बात उठा रहे हैं ये हमारा प्रमुख राजनीतिक एजेंडा है।

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