अगरतला। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद राज्य में जो हिंसा हुई उसका असर अब भी देखने को मिल रहा है। लोग डर के साए में जीने को मजबूर हैं। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को हो रही है। जनचौक ने हिंसा प्रभावित इलाकों की कुछ महिलाओं से इस बारे में बात की है। राज्य की महिलाएं चुनाव, हिंसा और परिवार के बीच कैसे पिस रही हैं।
पिछले दिनों राज्य में हुई हिंसा के बाद सीपीएम और कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल पीड़ितों से मिलने पहुंचा। जिसमें महिलाओं ने अपनी परेशानियों के बारे में बात की। इनमें कुछ महिलाएं ऐसी भी थीं जो अब अपने घर में अकेली रह रहीं हैं। जनचौक की टीम भी इसी प्रतिनिधिमंडल के साथ इन पीड़ितों से मिलकर उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश की।
रात में जंगल में रहने को मजबूर
जमुना दास पश्चिम त्रिपुरा के कालिकापुर में टिन के घर में रहती हैं। हिंसा के बाद से ही वह अंदर से डरी हुई हैं। स्थिति यह थी कि हमसे बात करते वक्त भी उनकी आवाज में एक भारीपन था। जमुना के टिन से बने घर को कुल्हाड़ी से तोड़ दिया है।
उस दिन की घटना को याद करते हुए वह बताती हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद से ही माहौल थोड़ा बदल गया था। हमें हमले की पहले से ही आशंका थी और हुआ भी ऐसा ही। नतीजा आने के बाद जैसे बाकी जगहों पर हमले हुए वैसे ही हमारे यहां भी हुए।
जमुना कहती हैं कि उनके परिवार में पांच लोग हैं। चुनाव के नतीजेआने के बाद से ही वह घर और जंगल के बीच जी रहे थे। वह बताती हैं कि हमलोग दिन में घर पर और रात में जंगल में रहने को मजबूर थे। इसी बीच हमारे घर को कुल्हाड़ी से तोड़ दिया गया। टिन के घर को तेज धारदार हथियार से काट दिया गया।
हमने जब जमुना से मुलाकात की तो घर पर वह और उसका बेटा था। पति के बारे में पूछने पर वह बताती हैं कि फिलहाल कुछ दिन जंगल में रहने के बाद अब वह यहां से बाहर चले गए हैं।
जमुना अब उन महिलाओं में से हैं जो हमारी खबर करने तक अपने बच्चे के साथ अकेले रह रही हैं। जमुना हिंदी बोलने में सक्षम नहीं थी, उन्होंने बांग्ला में हमें बताया कि अब भी डर लगता है। पति घर पर नहीं हैं मैं अपने बेटे के साथ रह रही हूं। डर लगता है फिर कोई हमला न कर दें। आम जीवन में भी थोड़ी परेशानी हो रही है।
पुलिस ने नहीं की हमारी मदद
इसके बाद हम गांधी ग्राम गए। जहां एक क्षेत्र में सात से आठ परिवारों के घरों पर हमले हुए हैं। यहां भी वही स्थिति थी जो जमुना दास की थी। रिजल्ट के बाद लोगों के घरों पर बम फेंके गए थे। स्थिति यह थी कि यहां भी ज्यादातर घरों के पुरुष बाहर रह रहे हैं। हमने यहां के लोगों से बातचीत करने की कोशिश की।
एक महिला ने हमसे बात की। उनके पति भी पिछले कुछ दिनों से घर पर नहीं हैं। उन्होंने बताया कि चुनाव नतीजे आने के बाद लगातार तीन से चार दिन तक रोज रात को सात से नौ बजे के बीच में बम फेंके जाते थे। यहां तक कि यह सारी चीजें पुलिस के संज्ञान में भी थी तब भी पुलिस हमारी मदद नहीं कर रही थी।
वह कहती हैं कि मेरे पति एक बिजनेसमैन हैं। साथ ही लेफ्ट समर्थक भी हैं। जिसके कारण हमारे घर को टारगेट किया गया। घर की खिड़कियों को तोड़ दिया गया। बम फेंके गए। अब स्थिति ऐसी है कि घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है। भाजपा के कार्यकर्ता नारा लगाते हुए आते थे और घर पर पत्थरों और बमों से हमला करते थे।
हमें यहां तक धमकी दी जा रही है कि मेरे परिवार को यहां रहने नहीं दिया जाएगा। डर का माहौल है इसलिए पति अभी कहीं बाहर रह रहे हैं। मैं और मेरा बेटा यहां डर के माहौल में जीने को मजबूर हैं क्योंकि घर छोड़कर कहां जाएं?
बच्चा मानसिक तनाव में…
मीना विश्वास की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। उसके बेटे ने हिंसा का भयावह रुप देखा है और मानसिक तनाव में चला गया है। उसके हावभाव से साफ पता चलता है कि हिंसा का डर अब भी उसके जेहन में है।
दरअसल जिस वक्त उनके घर पर हमला हुआ घर पर मीना और उसका बेटा अकेले थे। मीना बताती हैं कि चुनाव नतीजों के बाद हमने कभी नहीं सोचा था ऐसी स्थिति बन जाएगी। मेरे अलावा गांव के और घरों पर भी हमले हुए। लेकिन सभी लोग डरे हुए हैं इसलिए कुछ नहीं कहना चाहते।
वह बताती हैं कि चुनाव परिणाम आने के बाद दो मार्च की रात 10.30 बजे मैं और परिवार के बाकी लोग घर में खाना खाते हुए टीवी देख रहे थे। इसी दौरान जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आई। कुछ लोग मेरे पति को बाहर निकलने के लिए कह रह थे।
मीना अपने घर के मेन गेट को दिखाते हुए कहती हैं कि लोग यहां से अंदर आए। शायद उनके हाथ में डंडे थे क्योंकि हमलोग अंदर थे इसलिए हमने देखा नहीं। घर की बाउंड्री में आने के बाद उन्होंने ऑटो को तोड़ दिया। उसके बाद घर के बाहर लगी बड़ी लाइट को भी तोड़ दिया।
मीना उसी टूटी हुई लाइट को दिखाते हुए कहती हैं कि पहले उन लोगों ने लाइट को तोड़ा और उसके बाद अंदर आने की कोशिश करने लगे। चूंकि अंदर से ताला लगा था। इसलिए वह अंदर नहीं आ सके। वह एक भयानक समय था। हमें समझ नहीं आ रहा था। हमारे साथ क्या हो रहा है और क्या होनेवाला है। मेरे बेटे ने भी यह सारी चीजें देखी हैं जिसके कारण वह मानसिक रुप से बीमार हो रहा है।
इन सारी चीजों के बीच मेरे बेटे के पढ़ाई खराब हो रही है। बेटे की परीक्षा चल रही है। वह क्लास छह में पढ़ता है। भय के कारण वह अपनी परीक्षा भी नहीं दे रहा है। इस तरह के भय के बीच मेरे बेटे का भविष्य खराब हो रहा है।
वह कहती हैं कि हमारा कसूर बस इतना है कि हमने लेफ्ट पार्टी का सपोर्ट किया। इसलिए भाजपा के लोगों ने लेफ्ट समर्थकों को टारगेट करके नुकसान पहुंचाया है।
आपको बता दें कि त्रिपुरा में दो मार्च को विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। जिसके बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा भड़क गई। खबरों के अनुसार इस प्रायोजित हिंसा में आठ लोग घायल हुए थे। जिनका सिविल अस्पताल में इलाज भी चला। इसके साथ ही हिंसा के मामले में पुलिस ने लगभग 20 लोगों को गिरफ्तार किया था।
(जनचौक संवाददाता पूनम मसीह की रिपोर्ट।)