देश में बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी के दुश्चक्र के परेशान मजदूर एवं कृषक संगठन एक बड़े आंदोलन के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। हाल के दिनों में जंतर- मंतर पर विभिन्न राज्यों के मनरेगा श्रमिकों का क्रमिक धरना चला। अब अखिल भारतीय कृषक मजदूर यूनियन (एआईएडब्ल्यूयू) ने एक बड़ा फैसला लिया। इस फैसले के तहत जल्द ही राष्ट्रव्यापी स्तर पर 10,000 स्थानों पर खेतिहर मजदूरों और किसानों का विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जायेगा।
यह विरोध प्रदर्शन नरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में काम की कमी, हालिया नरेगा जॉब कार्ड को आधार से लिंक किये जाने के सरकारी फरमान, नरेगा के तहत काम के दौरान एक दिन में दो-दो बार ऑनलाइन हाजिरी की अनिवार्यता के चलते बड़े पैमाने पर काम करने के बावजूद हाजिरी का न लगना और दो-तीन महीने तक इसके चलते मजदूरी का भुगतान रोक दिए जाने से बड़े पैमाने पर लाखों श्रमिकों को बेहद कठिनाइयों के बीच में जीवन गुजारना पड़ रहा है। इसके चलते बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब के पास आय का स्रोत नहीं रह गया है, और निर्धारित कामकाज भी प्रभावित हो रहा है।
एआईएडब्ल्यू के दिल्ली स्थित केंद्रीय मुख्यालय से राष्ट्रीय सचिव विक्रम सिंह ने जनचौक संवाददाता से फोन पर अपनी बातचीत में बताया, “इस बारे में हमने आगे बढ़ने का फैसला लिया है। आगामी 25 अप्रैल को कार्यकारिणी की बैठक में इस बारे में ठोस रणनीति बनाई जायेगी। इसके तहत देश के विभिन्न राज्यों में ग्राम, पंचायत स्तर तक इन मुद्दों पर व्यापक प्रचार- प्रसार कर प्रदर्शन किया जायेंगे।”
यह पूछे जाने पर कि क्या इन प्रदर्शनों को देशभर में एक साथ एक ही दिन किया जाएगा, पर विक्रम सिंह का कहना था कि अभी इसे राज्य स्तर के नेतृत्व द्वारा तय किया जायेगा, क्योंकि हर राज्य की स्थिति और खेतीबाड़ी पर यह निर्भर करता है, हालांकि इस बारे में अंतिम निर्णय अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ले लिया जायेगा।
पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली में रामलीला मैदान पर किसानों और मजदूरों की विशाल रैली आयोजित की गई थी। जिसमें मनरेगा में श्रमिकों के लिए ऑनलाइन हाजिरी लगाने की नई शर्त की मुखालफत सबसे प्रमुख थी। भारत सरकार के द्वारा इस वर्ष 1 जनवरी 2023 से मनरेगा के तहत कार्यों के लिए एनएमएसपी बेस्ड एप्प के जरिये श्रमिकों को प्रति कार्य दिवस पर दो बार हाजिरी लगानी अनिवार्य है। ग्रामीण इलाकों में इन कार्यस्थलों के समीप कई बार इंटरनेट ही नहीं होता या इतना धीमा होता है कि जिओ टैगिंग करना असंभव हो जाता है। जंतर मंतर पर इसी मुद्दे पर पिछले कई हफ्तों से धरना जारी है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा द्वारा संकलित आंकड़े बताते हैं कि इस वर्ष जनवरी और फरवरी माह के दौरान कुल 34159 करोड़ कार्यदिवस ही दर्ज किये जा सके हैं। वहीं पिछले वर्ष 2022 के दौरान जनवरी फरवरी में 53107 करोड़ कार्यदिवसों को दर्ज किया गया था। लगभग 20 करोड़ कार्यदिवसों की गिरावट बताती है कि मनरेगा के तहत देशभर में ग्रामीण अर्थव्यस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है।
ये आंकड़े इसी अवधि के 2021 से मेल खाते हैं, जिसमें 56194 करोड़ कार्यदिवस, 2020 में 47175 करोड़ कार्यदिवस और 2019 में 47186 करोड़ कार्यदिवस पंजीकृत किये गए थे।
इसके अलावा एक और भुगतान संबंधी व्यवस्था को लागू किये जाने से मनरेगा के तहत काम करना दूभर बना हुआ है। नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (एनएमएमएस) के साथ ही साथ आधार नंबर पर आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के जरिये भुगतान की प्रणाली ने भी लाखों की संख्या में श्रमिकों के लिए अपने ही काम के एवज में पारिश्रमिक हासिल करने पर रोक लगा दी है। क्योंकि बड़ी संख्या में लोगों के पास एबीपीएस अकाउंट ही नहीं हैं।
1 फरवरी तक मनरेगा के तहत कार्य करने वाले कुल श्रमिकों में से करीब 60 प्रतिशत लोगों का आधार नंबर आधारित एबीपीएस अकाउंट नहीं बन सका था, यह दावा है नरेगा संघर्ष मोर्चा का।
इस वर्ष पहले ही केंद्रीय बजट में मनरेगा के तहत बजट आवंटन में भारी कटौती की गई है। पिछले 4 वर्षों में यह मनरेगा के तहत सबसे कम आवंटन है। नरेगा के लिए सिर्फ 60000 करोड़ रूपये का आवंटन और ऊपर से इन नए सरकारी अडंगों ने पहले से ही भारी बेरोजगारी और गरीबी की मार झेल रहे ग्रामीण भारत को एक नए तरह के संकट में डाल दिया है।
ऐसे में यह स्वाभाविक है कि आने वाले दिनों में ग्रामीण भारत से भी विरोध के स्वर लगातार मुखरित होते रहेंगे, क्योंकि शहरों में पलायन के लिए मजबूर ग्रामीण शहर में भी अब रोजगार की कोई खास उम्मीद नहीं देख पा रहा है।
( रविंद्र पटवाल जनचौक के मैनेजिंग एडिटर हैं।)