Tuesday, March 19, 2024

ब्रिटिश हुकूमत के काश्तकारी क़ानून और ज़मींदारी प्रथा के ख़िलाफ़ था मोपला विद्रोह, भाजपा फूट डालो राज करो के तहत इसे दे रही है सांप्रदायिक मोड़

क्या विडंबना है कि आज़ादी की लड़ाई में देश से गद्दारी करने वाले, ब्रिटिश हुक़ूमत के लिये क्रांतिकारियों की जासूसी करने वालों के वंशज आज आज़ादी का इतिहास लिखने बैठे हैं। जिस विद्रोह को गांधीजी का समर्थन मिला था आज उस विद्रोह को गोडसे वंशी हिंदुओं का नरसंहार बताकर इतिहास की किताब से मिटा रहे हैं।

बता दें कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ‘मालाबार विद्रोह’ में शामिल लोगों के नाम ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानियों’ की सूची से हटाने का फैसला लिया है। मोपला विद्रोह के ऐसे 387 लोगों के नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानियों की सूची से भारत सरकार हटाएगी। इसमें कुन अहमद हाजी और अली मुस्लीयर के नाम प्रमुख हैं।

बता दें कि साल 1971 में केरल सरकार ने मोपला विद्रोह में शामिल कई विद्रोहियों को स्वतंत्रता सेनानी की कैटिगरी में शामिल किया था। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस ने ‘मालाबार विद्रोह’ में शामिल हुए लोगों के नाम देश के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की पुस्तक से हटाने के केंद्र के कथित कदम की मंगलवार को आलोचना की थी और कहा था कि 1921 का यह आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा था।

इससे पहले सितंबर 2020 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने इस डिक्शनरी को पूरे पाँचवें वॉल्यूम को सरकारी वेबसाइट से हटा लिया था। भारत सरकार की डिक्शनरी के पाँचवें वॉल्यूम की तीन सदस्यीय समिति ने समीक्षा की थी। आरएसएस के लोगों से भरी ‘इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR)’ ने इन लोगों के नाम हटाने की सिफारिश की थी। इस समिति का मानना है कि ‘मालाबार विद्रोह’ कभी अंग्रेजों के ख़िलाफ़ युद्ध था ही नहीं, बल्कि ये एक कट्टरवादी आंदोलन था जिसका मुख्य उद्देश्य था इस्लामी धर्मांतरण। समिति ने नोट किया कि इस पूरे ‘विद्रोह’ के दौरान ऐसे कोई भी नारे नहीं लगाए गए, जो राष्ट्रवादी हों या फिर अंग्रेज विरोधी हों।

मालाबार का विद्रोह ब्रिटिश क़ानून और ज़मींदारी प्रथा के ख़िलाफ़ था

पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच स्थित केरल का मालाबार उस दौर का प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र था। उस दौर में मालाबार इलाके के ज्यादातर जमींदार नंबूदरी ब्राह्मण थे। जबकि अधिकतर किसान मोपला या मापिल्लाह मुसलमान थे। बता दें कि मोपला या मोप्पिला नाम मलयाली भाषा के मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो उत्तरी केरल के मालाबार तट पर रहते हैं। 19वीं सदी में मालाबार की कुल 10 लाख की आबादी में से मोपला समुदाय की हिस्सेदारी क़रीब 32 प्रतिशत थी।

भारत के तमाम राज्यों और भूभागों के ज़मींदारों की ही तरह मालाबार के ज़मींदार भी किसानों का दमन और शोषण करते थे और तगड़ी लगान वसूलते थे। लगान की अदायगी नहीं कर पाने की स्थिति में उन किसानों को तमाम अमानवीय और बर्बरतम यातनाओं से गुज़रना पड़ता था।  

ख़िलाफ़त आंदोलन से प्रेरित होकर ज़मादारीं बर्बरता और ब्रिटिश के काश्तकारी कानून के विरोध में केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपलाओं ने 1920 ई. में विद्रोह कर दिया। बता दें कि तब अधिकांश मोपला छोटे किसान थे और मालाबार के उच्च जाति वाले नम्बूदरी और नायर भूस्वामियों के बटाईदार और काश्तकार थे। मालाबार के एरनद और वल्लुवानद तालुका में इस ख़िलाफ़त आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने हर हथकंडा अपनाया। बता दें कि यह विद्रोह ब्रिटिश हुकूमत के ही ख़िलाफ़ था और इसे महात्मा गांधी, शौक़त अली, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं का सहयोग हासिल था।

15 फरवरी, 1921 के दिन अंग्रेज़ सरकार ने पूरे इलाके में निषेधाज्ञा लागू कर दिया और ख़िलाफ़त आंदोलन के नेता याकूब हसन, यू. गोपाल मेनन, पी. मोइद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया। आंदोलन का नेतृत्व बिखरते ही आंदोलन स्थानीय मोपलाओं के हाथ में चला गया। मोपलाओं ने भूस्वामियों के ख़िलाफ़ हल्ला बोल दिया।

20 अगस्त 1921 को पुलिस ने अर्नाड के ख़िलाफ़त आंदोलन के सेक्रेटरी वडाकेविट्टील मुहम्मद को गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन 2000 मोपलाओं ने उसे घेर लिया और पुलिस को घुसने नहीं दिया। अगले दिन पुलिस के दस्ते ने ख़िलाफ़त से जुड़े कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया और तिरुरंगदी की मम्बरम मस्जिद से दस्तावेज़ ज़ब्त कर लिया। अपने नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भीड़ ने तिरुरंगदी और स्थानीय पुलिस थाने को घेरने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने फायरिंग कर दी। जिसमें हजारों मोपला किसान मारे गये। जिससे क्षुब्ध होकर मोपला विद्रोहियों ने कई पुलिस थानों में आग लगा दी, सरकारी खजाने को लूट लिया और दस्तावेज नष्ट कर दिया।

24 अगस्त 1921 को कुंजअहमद हाजी ने अली मुसलियार की ओर से विरोधियों की कमान संभाल ली। इसके बाद पुलिस और अंग्रेज सिपाहियों ने विरोध को कुचल दिया। साल के अंत तक इस आंदोलन की चिंगारी सुलगती रही। और 19 नवंबर 1921 को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा क़रीब 100 मोपला विद्रोहियों को ट्रेन के जरिए मालाबार के तिरूर से कोयंबटूर के केंद्रीय जेलों में भेजा जा रहा था। उन्हें सामान ढोने वाली बोगी में बंद रखा गया था। पांच घंटे के बाद जब उनके दरवाजे खोले गए तो सभी की मौत हो चुकी थी। बताया जाता है कि दम घुटने से इन सभी की मौत हो गई थी। इस घटना को इतिहास में वैगन ट्रैजडी के रूप में जाना जाता है।

मालाबार विद्रोह केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा 1921 में ब्रिटिश अधिकारियों और उनके हिंदू सहयोगियों के खिलाफ एक सशस्त्र विद्रोह था। (स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स)

मालाबार आंदोलन (मोपला विद्रोह) की पृष्ठभूमि

वर्ष 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मौत होने के बाद मालाबार मद्रास प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में ब्रिटिश क़ब्जे में आ गया था। अंग्रेजों ने मालाबार में किसानों के लिए नए काश्तकारी कानून पेश किए, जो ज़मींदारों के पक्ष में और किसानों के लिए अधिक शोषणकारी व्यवस्था थी। अंग्रेजों के नये काश्तकारी कानून ने किसानों को ज़मीन के सभी अधिकारों से वंचित कर उन्हें भूमिहीन बना दिया।

सन् 1920 में गांधी के असहयोग आंदोलन के साथ ख़िलाफ़त आंदोलन शुरू हुआ। देश के तत्कालीन मुस्लिम नेता अबुल कलाम आजाद, ज़फर अली खां और मोहम्मद अली ने इसे व्यापक रूप दिया। अखिल भारतीय ख़िलाफ़त कमेटी ने जमियत उलेमा के साथ मिलकर ख़िलाफ़त आंदोलन का संगठन किया। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आज़ाद ने भी ख़िलाफ़त आंदोलन की वक़ालत की थी। लेकिन जैसे ही यह हिंसक और सांप्रदायिक हुआ, उन्होंने खुद को इससे दूर कर लिया।

इन आंदोलनों से ब्रिटिश विरोधी भावना मोपला किसानों में बलवान हो उठी। मोपला विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने दमन शुरु किया। 1921 के आखिर तक मोपला विद्रोह को कुचल दिया गया। दंगों को रोकने के लिए एक स्पेशल बटालियन, मालाबार स्पेशल फोर्स का गठन किया गया था। 20 अगस्त 1921 को शुरू हुआ मोपला विद्रोह कई महीनों तक चला और ब्रिटिश हुकूमत के दमन और मोपला संघर्ष में अनुमान के मुताबिक 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। इनमें से 2,339 विद्रोही भी शामिल थे।

इस तरह हम कह सकते हैं कि मोपला मालाबार क्षेत्र में मोपला विद्रोह की मुख्य वजह अंग्रेजों का काश्तकारी क़ानून था। जिसके तहत ज़मींदार तगड़ी लगान वसूलते थे। अगर ज़मींदार हिंदू न होकर मुसलमान होते तो भी विद्रोह होता, क्योंकि वर्ग संघर्ष इस बेल्ट में बहुत ज्यादा था। अंग्रेजों के आने के 100 साल बाद यह बहुत गहरे से पैठ कर गया था। मोपला विद्रोह को 1920 के हालात से जोड़कर सीमित नहीं कर सकते। उसकी पृष्ठभूमि में 18वीं सदी के मध्य से मालाबार इलाके में जो सामाजिक और आर्थिक बदलाव आये वो भी जिम्मेदार थे। असंतोष बहुत लंबे समय से था लेकिन 20वीं सदी की सांप्रदायिक राजनीति, फिर ख़िलाफ़त आंदोलन और आखिर में काश्तकारी कानून ने विद्रोह भड़काने में चिंगारी का काम किया।

आरएसएस मालाबार विद्रोह का साम्प्रदायीकरण करने का प्रयास करती आयी है

आरएसएस-भाजपा मालाबार विद्रोह को जोकि ब्रिटिश हुकूमत और उनकी क्रूरता में बराबर के भागीदार ज़मींदारों के ख़िलाफ़ था। छोटे किसानों और श्रम मजदूरों द्वारा ज़मींदारों के ख़िलाफ़ विद्रोह पूरे भारत में हुये हैं। उसके बाद ही ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ है। लेकिन केरल में विद्रोही किसान मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक़ रखते थे इसलिये इसे सांप्रदायिक रंग देकर आरएसएस अंग्रेजों के ‘फूट डालो राज करो’ फॉर्मूले को लेकर आगे बढ़ रही है। 

साल 2017 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान अमित शाह की अगुवाई में भाजपा ने जनरक्षा यात्रा की शुरुआत की थी। 9 अक्टूबर 2017 को ये यात्रा केरल के मुस्लिम बहुल इलाके मलप्पुर से गुज़री, जिसका नेतृत्व बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष कम्मनम राजशेखरन किया था। जैसा कि हर चुनावी अभियान में भाजपा सांप्रदायिक रणनीति के तौर पर करती ही है केरल में भी किया। केरल भाजपा अध्यक्ष ने उस दौरान ही मालाबार विद्रोह को सांप्रदायिक कलेवर देते हुये कहा था कि – “1921 में जो मालाबार विद्रोह हुआ था, वो केरल में हुआ पहला जिहाद था। इसमें बड़े पैमाने पर हिंदुओं का नरसंहार हुआ था।”

आरएसएस प्रचारक से भाजपा नेता बने राम माधव ने मालाबार विद्रोह की 100वीं जयंती की पूर्व संध्या यानि 19 अगस्त को कोझिकोड में एक कार्यक्रम में स्वतंत्रता इतिहास का बलात्कार करते हुये कहा कि –“मालाबार विद्रोह, जिसे 1921 के मोपला (मलयाली मुस्लिम) दंगों के रूप में भी जाना जाता है, भारत में तालिबान मानसिकता की पहली अभिव्यक्तियों में से एक था।”

और तो और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एपी अब्दुल्लाकुट्टी ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि –“दंगों के नेता वरियांकुनाथ कुंजाहमद हाजी, केरल में तालिबान के पहले प्रमुख थे।”

श्रीनारायण गुरु जयंती पर एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बाद कोझिकोड में पत्रकारों से बात करते हुए अब्दुल्लाकुट्टी ने यह भी दावा किया कि महान कम्युनिस्ट नेता और केरल के पहले मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद का परिवार भी उस दंगे का शिकार हुआ था।

वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सदस्य के मुरलीधरन ने स्वतंत्रता इतिहास को याद करते हुये कहा कि मालाबार विद्रोह ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के विरुद्ध ख़िलाफ़त आंदोलन का हिस्सा था। भाजपा नेता अपनी सांप्रदायिक राजनीति चमकाने के लिये कुंजाहमद हाजी की सांप्रदायिक छवि पेश कर रहे हैं।

वहीं मल्लपुर जिले में 20 अगस्त को मालाबार विद्रोह पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केरल विधानसभा अध्यक्ष एम बी राजेश ने दावा किया कि –“हाजी धर्मनिरपेक्ष थे जिन्होंने ब्रिटिश से माफी मांगने से इनकार कर दिया एवं मक्का भेजने की जगह शहादत को चुना।” केरल विधानसभा अध्यक्ष ने भगत सिंह की शहादत का उल्लेख करते हुए कहा- “ मैं समझता हूं कि (इतिहास में) उनका (हाजी का) काम भगत सिंह के बराबर है।”

(जनचौक के विशेष संवादाता सुशील मानव की रिपोर्ट)

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