मुंबई दंगेः सुप्रीमकोर्ट ने दोषी पाए गए पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई का मांगा ब्योरा

Estimated read time 1 min read

मुंबई दंगों (1992-93) का भूत महाराष्ट्र की राजनीति का पीछा नहीं छोड़ रहा है। महाराष्ट्र की राजनीति के चार किरदार शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस और भाजपा इस बीच अलग-अलग गठबंधनों से राज्य की सत्ता पर काबिज रहे हैं। पर किसी ने भी जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग की जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं की। एक बार फिर उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र की राजनीति की दुखती रग पर हाथ रख दिया है।  

उच्चतम न्यायालय ने उद्धव ठाकरे सरकार को निर्देश दिया है कि वह 1992-93 के मुंबई दंगों की जांच करने वाले जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग द्वारा कथित रूप से दोषी पाए गए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई से उसे अवगत कराए। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाली जांच आयोग ने 1998 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसकी सिफारिशों को लागू करने के लिए कुछ नहीं किया और न्यायालय के आदेशों का अक्षरश: पालन नहीं किया।

रिपोर्ट के मुताबिक दंगों में करीब 900 लोग मारे गए, जिनमें 575 मुस्लिम और 275 हिंदू शामिल थे। घायल होने वालों की संख्या 2036 बताई गई थी। जस्टिस श्रीकृष्ण ने अपनी रिपोर्ट में दंगों के लिए शिव सेना चीफ बाल ठाकरे, उनके चहेते मनोहर जोशी, मधुकर सरपोद्दार, गजन कृतिकार, शिवसेना के प्रमुख अखबार सामना इसके अलावा एक और मराठी अखबार नवाकाल और 31 पुलिस वालों को जिम्मेदार करार देते हुए कहा था कि दंगों से संबंधित कम से कम 1371 मामले फिर से खोले जाएं और मुल्जिमों के खिलाफ मुकदमे चलाकर सख्त कार्रवाई की जाए।

रिपोर्ट में आयोग ने पुलिस की भूमिका को भी शक के दायरे में रखा था। आयोग का कहना था कि यदि पुलिस ने कानून के दायरे में काम किया होता, तो दंगों पर काबू पाया जा सकता था। रिपोर्ट में दोषी पाए गए तमाम पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की गई थी।

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस आरएफ नरिमन, जस्टिस एस रवीन्द्र भट और जस्टिस  वी रामसुब्रमणियन की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के सचिव (गृह) को निर्देश दिया कि वह श्रीकृष्णा जांच आयोग की रिपोर्ट में संलग्न चार्ट में दर्ज प्रत्येक पुलिस अधिकारी के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई और जिन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, उसका विस्तृत विवरण पेश करें।

पीठ ने कहा कि इस तथ्य को देखते हुए कि न्यायालय के आदेश का पूरी तरह पालन नहीं किया गया है, हम महाराष्ट्र सरकार के सचिव (गृह) को निर्देश देते हैं कि वह चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करें। पीठ ने कहा कि हलफनामे में पीड़ितों को दिए गए मुआवजे और उसकी रकम की जानकारी भी दी जाए।

उच्चतम न्यायालय जस्टिस श्रीकृष्ण जांच आयोग की सिफारिशों पर अमल के निर्देश के लिए 1998 से ही दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। न्यायालय ने मुंबई के अधिवक्ता शकील अहमद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोन्साल्विज की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। जस्टिस श्रीकृष्ण ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद से अवकाशग्रहण किया है। जस्टिस श्रीकृष्ण को जब मुंबई में दिसंबर, 1992 और जनवरी 1993 के दौरान हुए दंगों की जांच के लिए आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था तो वह बंबई उच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश थे।

महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त इस जांच आयोग को 1995 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार ने 1996 में खत्म कर दिया था। हालांकि, 1996 में इस आयोग का पुनर्गठन किया गया और इसके दायरे में मार्च 1993 में मुंबई में हुए बम विस्फोट की घटनाओं की जांच का मुद्दा भी जोड़ दिया गया था।

जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग ने अप्रैल 1998 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, जिसमें कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं और पुलिस अधिकारियों की भूमिका का जिक्र किया गया था। आयोग ने 1998 को अपनी रिपोर्ट में राजनेताओं के साथ साथ 31 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रावाई करने की सिफारिश की थी। तब से लेकर आज तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ।

दंगों के समय एसीपी रहे आरडी त्यागी के खिलाफ सबसे गंभीर आरोप थे। 2001 में दर्ज की गई चार्जशीट में त्यागी और उनकी टीम पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने नौ जनवरी 1993 को सुलेमान बेकरी के कर्मचारियों पर अंधाधुंध फायरिंग की, जिसमें नौ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। उन पर कत्ल का आरोप था।

मीडिया में इस बात पर जबरदस्त हंगामा खड़ा हो गया था कि माफिया और आतंक से लड़ने वाली पुलिस पर इसका कितना बुरा असर पड़ेगा। दंगों के बाद आरडी त्यागी को मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद पर बिठा दिया गया। सेशन कोर्ट 2003 में त्यागी और उनकी टीम को निर्दोष करार देते हुए कहा कि वे अपनी ड्यूटी कर रहे थे।

जस्टिस श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक दंगों का ज्यादातर मामला 15 दिसंबर 1992 और 5 जनवरी 1993 के बीच हुआ, लेकिन बड़े पैमाने पर दंगे छह जनवरी 1993 से भड़के, जब संघ परिवार और शिव सेना ने बड़े पैमाने पर मुसलमानों के खिलाफ दुष्प्रचार शुरू किया। और उस मुहिम में शिवसेना के प्रमुख पत्र सामना और नवाकाल अखबारों ने प्रमुख भूमिका निभाई। रिपोर्ट में खास तौर पर बाल ठाकरे, मनोहर जोशी और मधुकर सरपोद्दार का जिक्र किया गया था। जिन्होंने धार्मिक भावनाएं भड़काने में मुख्य भूमिका निभाई।

रिपोर्ट में सांप्रदायिक संगठनों, नेताओं की भूमिका का तो खुलासा हुआ ही, साथ ही मुंबई पुलिस पर भी संगीन आरोप लगाए गए थे। मुंबई दंगों में महाराष्ट्र पुलिस का सांप्रदायिक चेहरा खुलकर उजागर हुआ था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

please wait...

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments