करनाल गैंगरेप केस में दो-दो एसआईटी गठित किए जाने के बावजूद जाँच की गतिहीनता रहस्यमय है। नामजद आरोपियों में एक प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल है। महिला कांग्रेस ने आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर करनाल में प्रदर्शन किया। कांग्रेस विधायक शमशेर सिंह गोगी ने सवाल किया है कि क्या शिकायतकर्ता महिला के ग़रीब होने की वजह से तफ़्तीश के नाम पर कार्रवाई में देरी की जा रही है। उधर, प्रशासन द्वारा लागू प्रतिबंध के बीच कुछ सोशल मीडिया चैनलों ने प्रसारण कर सवाल उठाया कि क्या करनाल में इस बैन के पीछे गैंगरेप के प्रभावशाली आरोपी हैं। प्रशासन ने इन चैनल संचालकों को नोटिस जारी कर दिए हैं।
करनाल के तहसीलदार राज़बख्श के ख़िलाफ़ गैंगरेप का केस दर्ज़ है। करनाल शहर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के विधानसभा क्षेत्र का मुख्यालय है। मीडिया की पॉपुलर भाषा में कहें तो करनाल सीएम सिटी है। मानकर यही चला जाता है कि अपने क्षेत्र की संवेदनशील छोड़िए, मामूली घटनाओं तक पर सीएम की या उनकी टीम की नज़र रहती है। तो क्या एक प्रशासनिक अधिकारी के ख़िलाफ़ इतने गंभीर मामले की जानकारी उन्हें नहीं होगी?
हैरानी की बात यह है कि एफआईआर 6 जुलाई को दर्ज़ हुई। शिकायतकर्ता महिला शहर के एक नामी प्राइवेट स्कूल ‘प्रताप पब्लिक स्कूल’ की कर्मचारी हैं। यह स्कूल जिस भाटिया परिवार का है, वह अंग्रेजों के ज़माने में भी ‘सरकार बहादुर’ का कृपापात्र रहा है। शिकायतकर्ता महिला का आरोप है कि स्कूल मालिक अजय भाटिया ने उनके साथ रेप किया और अफसरों पर अपनी पकड़ का रौब देकर उन्हें चुप रहने के लिए मज़बूर किया। शिकायतकर्ता महिला ने एफआईआर में भाटिया के हवाले से ही उसकी अफसरों पर पकड़ का जो जरिया लिखवाया है, वह और ज़्यादा हिलाकर रख देने वाला है।
महिला का आरोप है कि स्कूल मालिक उन पर तहसीलदार के साथ संबंध बनाने के लिए भी दबाव डालता रहा और तहसीलदार को उनका फोन नंबर भी दे दिया गया। महिला का आरोप है कि तहसीलदार उन्हें फोन कर अजय भाटिया का हवाला देकर एक होटल में आने के लिए कहता रहा था। वे मना करती रहीं पर एक दिन स्कूल परिसर से ही अटैच स्कूल मालिक भाटिया की कोठी में ही उसने भी भाटिया की मदद से उनके साथ रेप किया।
शिकायतकर्ता महिला पर इस केस से पहले ही ब्लैकमेल करने के आरोप में केस दर्ज़ कराया जा चुका है। स्कूल अथारिटी की तरफ़ से प्रेस बयान ज़ारी करके भी महिला के आरोप को झूठा बताया गया है। हंगामे और ब्लैकमेलिंग की वजह से डरकर महिला की तनख्वाह बढ़ाने, हंगामे की अति के बाद महिला की शिकायतें पुलिस को करने और केस दर्ज़ कराने के बाद काउंटर के लिए अचानक रेप की झूठी कहानी गढ़ने (जबकि शुरू में पुलिस को दी गई शिकायतों में रेप की शिकायत के बजाय मानसिक उत्पीड़न की बात कही थी), स्कूल मालिक को फोन से मैसेजेज भेज कर अपना काम कराने के लिए दबाव बनाने, स्कूल मालिक की उम्र और बीमारी जैसे तर्क दिए जा रहे हैं। स्कूल मालिक की उम्र का हवाला शिकायतकर्ता महिला ने भी एफआईआर में यह कहते हुए दिया है कि वे रेप से बचने के लिए स्कूल मालिक को अपने पिता की उम्र का होने का हवाला देकर गुहार लगा रही थीं।
सभी जानते हैं कि इस तरह के उत्पीड़न में घेर ली गई ताक़तवर महिला भी सामाजिक घेरेबंदी की वजह से अपने सबसे निकट के पारिवारिक लोगों तक को अपने उत्पीड़न की बात तुरंत बता ही दे, ज़्यादातर मामलों में मुमकिन नहीं हो पाता। उत्पीड़न के बीच ही झूलते हुए और ब्लैकमेल होते हुए ही सुरक्षित राह तलाशते रहने की कोशिशें अस्वाभाविक नहीं होतीं। जब उत्पीड़क बेहद ताक़तवर हों और मदद की कोई उम्मीद न हो, तब की मनःस्थिति समझी जा सकती है। उलटबांसी लगने वाली बात यह भी है कि पावर-गेम का कोई माहिर ब्लैकमेल होकर वेतन बढ़ाने जैसी बातें कहे। सच्चाई जो भी हो पर कुछ वर्षों में यह चलन लगातार बढ़ा है कि अगर आरोपी ताक़तवर है तो रेप की शिकायत करने वाली महिला को ब्लैकमेल करने के आरोप में फंसा दिया जाए।
पुलिस ने दोनों पक्षों की एफआईआर की जाँच के लिए दो अलग-अलग एसआईटी बना रखी है। लेकिन, सवाल यही है कि इतने गंभीर मामले में जाँच एजेंसी का जेस्चर क्या है? क्या शिकायतकर्ता और आरोपी की हैसियत में इतना भारी अंतर केस की जाँच प्रक्रिया को लेकर आशंका पैदा नहीं करता? आख़िर, ऐसी क्या मज़बूरी है कि गैंगरेप के आरोपी प्रशासनिक अधिकारी को उसी जगह बरक़रार रखा गया है? क्या ऐसे मामलों में इतनी नैतिकता ज़रूरी नहीं थी कि आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं की गई तो आरोपी अफ़सर को जाँच पूरी होने तक सस्पेंड किया जाता या फिर उसका इस जिले से दूर ट्रांसफर ही कर दिया जाता? क्या शासन-प्रशासन इस तरह इतने संवेदनशील मसले में आरोपियों के प्रति अतिशय उदार होने का मैसेज दे रहा है? क्या यह स्थिति शिकायतकर्ता महिला का मनोबल तोड़ने वाली नहीं है? महिला पहले ही कह चुकी है कि आरोपियों की पहुँच का वास्ता देकर उसे चुप रहने और फिर समझौता कर लेने की नसीहत दी जाती रही है।
गौरतलब है कि करनाल के डिप्टी कमिश्नर ने 10 जुलाई को आदेश जारी कर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रहे न्यूज़ चैनल्स पर 15 दिनों का प्रतिबंध लगा दिया था। हरियाणा में पाँच अन्य जिलों सोनीपत, कैथल, चरखी दादरी, नारनौल और भिवानी के डीसी भी वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, पब्लिक ऐप और लिंकडेन पर आधारित सभी सोशल मीडिया समाचार प्लेटफॉर्म को बैन कर चुके हैं। आईपीसी की धारा 188, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1957 के तहत लगाए गए इस बैन का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ जेल की सज़ा का भी प्रावधान है। गौरतलब है कि प्रताप पब्लिक स्कूल के मालिक और करनाल के तहसीलदार से जुड़े गैंगरेप के केस में करनाल के सोशल मीडिया चैनल ही ज़्यादा मुखर रहे हैं।
बैन के बीच ही मंगलवार को करनाल के कुछ सोशल मीडिया चैनलों ने प्रसारण कर सवाल किया कि क्या करनाल जिले में यह बैन गैंगरेप के प्रभावशाली आरोपियों के दबाव में ही लगाया गया है ताकि इस केस पर चर्चा न हो सके। प्रशासन ने करनाल जिले में विभिन्न अखबारों में सेवारत रहे और फिलहाल सोशल मीडिया चैनल चला रहे पत्रकार देवेंद्र गाँधी और एक अन्य सोशल मीडिया चैनल के संचालक आकर्षण उप्पल को इस संबंध में नोटिस भी भेज दिए हैं। मंगलवार रात को उप्पल ने फेसबुक पर अपने लाइव कार्यक्रम में ही यह जानकारी दी। बताया जा रहा है कि करनाल जिले के असंध इलाके के दो अन्य सोशल मीडिया पत्रकारों को भी प्रशासन ने नोटिस जारी किए हैं।
करनाल की कुछ संस्थाएं गैंगरेप केस की निष्पक्ष जाँच की मांग को लेकर आईजी ऑफिस में ज्ञापन दे चुकी हैं। निफा के चेयरपर्सन प्रीतपाल सिंह पन्नू का कहना है कि यह केस इतना संवेदनशील और शॉकिंग है कि इसकी हर हाल में निष्पक्ष जाँच होना ज़रूरी है।
गैंगरेप के आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर महिला कांग्रेस की कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष सुधा भारद्वाज व जिला अध्यक्ष निशा देवी के नेतृत्व में मंगलवार को प्रदर्शन भी किया गया। प्रदर्शनकारियों ने सिटी मजिस्ट्रेट पूजा भारती को ज्ञापन सौंपा। असंध हलके के विधायक शमशेर गोगी भी प्रदर्शन में शामिल थे। ‘जनचौक’ से फोन पर बात करते हुए विधायक गोगी ने सवाल उठाया कि क्या शिकायतकर्ता महिला के ग़रीब होने की वजह से केस को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है। क्या ऐसे केस में जाँच के नाम पर इतनी देरी स्वाभाविक है? उन्होंने कहा कि केस की प्रकृति और ऐसे मामलों में प्रायः नज़र आती रही पुलिस की कार्यशैली के मद्देनजर आरोपियों की अविलम्ब गिरफ्तारी ज़रूरी थी।
उन्होंने कहा कि समाज में जिस तरह की परिस्थितियां हैं, उन्हें देखते हुए एक महिला का आसानी से मुँह खोल पाना आसान नहीं होता। उत्पीड़न और प्रभावी लोगों के मुकाबले समाज में रास्ते बंद हों तो किसी ग़रीब महिला का देर तक इस तरह उलझे रहना हैरानी की बात नहीं है। ऐसे में उत्पीड़ित महिला को ही आरोपी ठहरा देना कहाँ तक सही है? उन्होंने कहा कि करनाल अब सीएम का शहर है। करनाल में ऐसे मामले में सरकारी मशीनरी का इस तरह का रवैया हैरानी पैदा करता है।
उधर, करनाल जिले के तरावड़ी इलाक़े की एक राइस मिल में नौकरी का झांसा देकर युवती से गैंगरेप के मामले में आठ लोगों को नामजद किया गया है। पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है।
(धीरेश सैनी जनचौक के रोविंग एडिटर हैं।)