पाटलिपुत्र की जंगः बागियों ने उड़ाई नीतीश की नींद

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बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी दल पूरी तरह से चुनावी समर में उतर चुके हैं। यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए कड़ी परीक्षा है। नीतीश कुमार जहां गत चुनाव में अपनी मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में हैं, वहीं प्रवासी मजदूरों की परेशानी के साथ ही बाढ़ से प्रभावित लोगों की नाराजगी का भी सामना उन्हें करना है।

नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे एनडीए के लिए जदयू के लगभग डेढ़ दर्जन बागी नेता एक और आफत बन गए हैं। इन बागियों ने चुनावी समर में ताल ठोंक कर नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ा दी है। इन नेताओं में विधायक, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री और संगठन से जुड़े कई बड़े नेता हैं। ये नेता कहीं पर भाजपा तो कहीं पर जदयू को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हालांकि जदयू ने पार्टी में बगावत रोकने के लिए 19 बागियों को निष्कासित कर दिया है फिर भी जदयू में नेताओं का बगावत करने का सिललिसा रुकने का नाम नहीं ले रहा है।

जदयू के बागियों में से शैलेन्द्र प्रताप सिंह तरैयां, पूर्व विधायक मंजीत सिंह बैकुंठपुर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनावी समर में हैं। विधायक रवि ज्योति जदयू से बगावत कर कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सभी उम्मीदवारों का चुनाव दूसरे चरण में है। पहले चरण में भी जदयू के कई बागी उम्मीदवार हैं, जो नीतीश कुमार के सरकार बनाने का खेल बिगाड़ सकते हैं। जगदीशपुर सीट से टिकट न मिलने पर बागी हुए श्रीभगवान सिंह कुशवाहा लोजपा से जदयू के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। बिहार में अलग पहचान बनाए हुए विधायक ददन पहलवान निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में डुमरांव से जदयू उम्मीदवार अंजुम आरा के खिलाफ लंगोट कसे हुए हैं।

ज्ञात हो कि बिहार की सरकार बनाने में निर्दलीय विधायक बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये विधायक जदयू से बगावत कर चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में यदि ये विधायक बनते हैं तो राजद नेता तेजस्वी यादव के पाले में जाने की संभावना इन नेताओं की ज्यादा है। वैसे भी ये नेता जदयू और भाजपा का वोट काटकर राजद को फायदा पहुंचाने का काम करेंगे।

भाजपा के बागियों में सबसे प्रमुख नाम भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे राजेंद्र सिंह और पूर्व विधायक रामेश्वर चौरसिया का है। केवल कोसी क्षेत्र के सीमांचल के साथद्ध में ही भाजपा के करीब दो दर्जन नेता उन सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी में हैं जो समझौते के तहत जदयू के खाते में चली गई हैं।

भले ही जदयू और भाजपा में बगावत ज्यादा हो रही हो पर प्रदेश की लगभग सभी पार्टियां दल-बदल के खेल का शिकार हुईं हैं। खगड़िया के लोजपा सांसद चौधरी महबूब अली कैसर के पुत्र मो. युसूफ सलाउद्दीन ने राजद का दामन थाम लिया है। कांग्रेस को छोड़ कर बाहुबली नेता आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद अपने पुत्र चेतन आनंद के साथ राजद में शामिल हो गईं हैं। मां-बेटे दोनों को राजद ने अपना प्रत्याशी भी बना दिया है। देखा जाए तो 2015 में चुनाव जीत चुके एक दर्जन से अधिक विधायकों ने अपना घर बदल लिया है, अब जो किसी न किसी वजह से पार्टी बदलकर चुनाव लड़ेंगे।

दरअसल इस बार गठबंधनों के बदले परिदृश्य के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है। हर हाल में जीत के समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सभी पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशी तय कर रही हैं। 2015 में भाजपा 157 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन इस बार महज 110 पर ही लड़ेगी। इस परिस्थिति में तो 47 नेताओं को टिकट से स्वाभाविक तौर पर वंचित होना ही पड़ेगा। राजद ने भी अपने कोटे की 144 सीटों में 18 विधायकों को टिकट से वंचित कर दिया है।

(चरण सिंह पत्रकार हैं और आजकल नोएडा से प्रकाशित होने वाले एक दैनिक में कार्यरत हैं।)

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