इजराइली सॉफ्टवेयर पेगासस से 300 भारतीयों की जासूसी का मुद्दा चौथे दिन भी संसद में जमकर गूंजा। राज्यसभा में जब सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव इस मामले पर बयान देने के लिए उठे तो तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने विरोध शुरू कर दिया।
मंत्री हरदीप सिंह पुरी व तृणमूल सांसद के बीच तीखी नोकझोंक हुयी। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार आईटी मंत्री वैष्णव के हाथ से पन्ने छीनकर फाड़ने के दौरान तृणमूल सांसद शांतनु सेन और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के बीच तीखी नोंकझोंक हुई। सेन ने वैष्णव से पन्ने छीने थे। वे सभापति के आसन के पास एकत्रित होकर विरोध करते रहे। इसके बाद सदन की कार्यवाही शुक्रवार तक स्थगित कर दी गई।
इससे पहले दो बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजे जैसे ही सदन की कार्यवाही आरंभ हुई उपसभापति हरिवंश ने बयान देने के लिए वैष्णव का नाम पुकारा। विपक्षी सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया। वैष्णव ने बयान की शुरुआत की ही थी कि हंगामा और तेज हो गया। हंगामे के कारण उनकी बात नहीं सुनी जा सकी। उपसभापति ने विपक्षी दलों के रवैये को ‘असंसदीय’ करार दिया और केंद्रीय मंत्री से बयान को सदन के पटल पर रखने का आग्रह किया।
अपने बयान में नये संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के जरिये भारतीयों की कथित जासूसी करने संबंधी ख़बरों को सिरे से खारिज़ करते हुए कहा कि संसद के मानसून सत्र से ठीक पहले ऐसी रिपोर्ट का प्रकाशित होना कोई संयोग नहीं है, बल्कि ये आरोप भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास हैं। राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच, अपने बयान में वैष्णव ने कहा कि जब देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है तब अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है।
राज्यसभा के घटनाक्रम पर विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा कि विपक्ष खासकर तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस के सदस्यों की हरकत शर्मनाक है। पेगासस जासूसी मामला फेक न्यूज है। इससे देश की छवि खराब हुई है। आज सदन में सदस्यों ने जवाब देते वक्त मंत्री के हाथ से पन्ने छीन लिए, यह घटिया हरकत है।
वहीं पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए कथित तौर पर भारत में विपक्षी नेताओं और पत्रकारों की जासूसी का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। वरिष्ठ वकील मनोहर लाल शर्मा ने एक जनहित याचिका दायर करके सुप्रीम कोर्ट से जासूसी के लिए पेगासस को खरीदने को अवैध एवं असंवैधानिक करार देने का अनुरोध किया है।
इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की गई है। साथ ही भारत में पेगासस की खरीद पर रोक लगाने की अपील की गई है।
अधिवक्ता एम एल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि पेगासस कांड गहरी चिंता का विषय है और यह भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। व्यापक स्तर और बिना किसी जवाबदेही के निगरानी करना नैतिक रूप से गलत है। याचिका में आगे कहा गया है कि पेगासस का उपयोग केवल बातचीत सुनने के लिए नहीं होता, बल्कि इसके उपयोग से व्यक्ति के जीवन के बारे में पूरी डिजिटल जानकारी हासिल कर ली जाती है और इससे ना केवल फोन इस्तेमाल करने वाला असहाय हो जाता है, बल्कि उसकी संपर्क सूची में शामिल हर व्यक्ति ऐसा महसूस करता है।
याचिका में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि जासूसी संबंधी इस खुलासे से राष्ट्रीय सुरक्षा पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि निगरानी प्रौद्योगिकी विक्रेताओं अत्यधिक बढ़ोतरी वैश्विक सुरक्षा और मानवाधिकार के लिए समस्या है। जनहित याचिका में दावा किया गया है कि ऐसा बताया जा रहा है कि एनएसओ ग्रुप कंपनी के ग्राहकों ने 2016 के बाद से करीब 50,000 फोन नंबर को निशाना बनाया है।
याचिका में आगे कहा गया है कि पेगासस केवल निगरानी उपकरण नहीं है। यह एक साइबर-हथियार है जिसे भारतीय सरकारी तंत्र के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है। भले ही यह आधिकारिक हो (जिसे लेकर संशय है), लेकिन पेगासस का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करता है।