एलिया प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पॉक्सो एक्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने साक्षी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (1999) 6 SCC 591 में बाल यौन शोषण से निपटने के लिए आईपीसी की अपर्याप्तता पर प्रकाश डाला था। साक्षी केस के बाद से ही पॉक्सो अधिनियम की नींव पड़ी, जब सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन अपराधों से निपटने में भारतीय दण्ड संहिता आईपीसी को अपर्याप्त पाया। तब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के खिलाफ अपराध विधेयक का मसौदा परिचालित किया (2009)। तब शुरू हुई कानून बनाने की प्रक्रिया जो अंत में पॉक्सो अधिनियम बन गई।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पॉक्सो एक्ट, जिसका पूरा नाम है प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट, बनाया गया है। इस अधिनियम (कानून) को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पॉक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। पुस्तक के लेखक एम एच जैदी, जो बाल संरक्षण और साईबर अपराध के विशेषज्ञ हैं, के अनुसार इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है।
यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है, पॉक्सो कानून के तहत सभी बाल यौन अपराधों की सुनवाई के लिए एक विशेष न्यायालय या फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था की गई है। पॉक्सो स्पेशल कोर्ट द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में सुनवाई होती है।
बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से जुड़े अपराधों से बचाने वाले पॉक्सो कानून में बदलाव करने की मांग उठी है। ये मांग उठाई है भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह ने। उनका कहना है कि पॉक्सो कानून का ‘दुरुपयोग’ किया जा रहा है।
इधर राज्यसभा के सदस्य कपिल सिब्बल ने भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के मुद्दे पर बुधवार को सरकार की आलोचना की और सवाल उठाया कि पॉक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण) कानून और इसके तहत तत्काल गिरफ्तारी का प्रावधान सिंह पर इसलिए लागू नहीं होता क्योंकि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद हैं।
बृजभूषण सिंह पर भी पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज है। जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। उन पर नाबालिग रेसलर का शोषण करने का आरोप भी है। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की हैं। एक एफआईआर पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज है। जबकि, दूसरी एफआईआर यौन उत्पीड़न से जुड़ी है।
क्या है पॉक्सो एक्ट?
पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट। इस कानून को 2012 में लाया गया था। ये बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाता है। ये कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है। इसका मकसद बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से जुड़े अपराधों से बचाना है। इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चा माना गया है और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।
एमएच जैदी के अनुसार पॉक्सो कानून में पहले मौत की सजा नहीं थी, लेकिन 2019 में इसमें संशोधन कर मौत की सजा का भी प्रावधान कर दिया गया। इस कानून के तहत उम्रकैद की सजा मिली है तो दोषी को जीवन भर जेल में ही बिताने होंगे। इसका मतलब हुआ कि दोषी जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सकता।
- अगर कोई व्यक्ति 16 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट का दोषी पाया जाता है तो उसे 20 साल की जेल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इस मामले में उम्रकैद यानी जब तक जिंदा है, तब तक जेल में रहना होगा। इसके अलावा दोषी व्यक्ति को भारी जुर्माना भी चुकाना होगा।
- अगर पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट में बच्चे की मौत हो जाती है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर कम से कम 20 साल या फिर उम्रकैद या फिर मौत की सजा हो सकती है। इस मामले में भी उम्रकैद यानी जिंदा रहने तक जेल में ही रहना होगा। इसके अलावा दोषी को जुर्माना भी देना होगा।
- इसी तरह अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करने का पहली बार दोषी पाए जाने पर पांच साल और दूसरी बार में सात साल की सजा हो सकती है। इसके अलावा जुर्माना अलग से देना पड़ेगा।
- अगर कोई व्यक्ति बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी को स्टोर करता है, डिस्प्ले करता है या फिर किसी के साथ साझा करता है, तो दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
- अगर कोई व्यक्ति बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी का कमर्शियल इस्तेमाल करता है तो पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 से 5 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 5 से 7 साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में पॉक्सो एक्ट के तहत देशभर में करीब 54 हजार मामले दर्ज किए गए थे। जबकि, इससे पहले 2020 में 47 हजार मामले दर्ज हुए थे। 2017 से 2021 के बीच पांच साल में पॉक्सो एक्ट के तहत 2.20 लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं।
हालांकि, पॉक्सो एक्ट में कन्विक्शन रेट काफी कम है। आंकड़े बताते हैं कि पांच साल में 61,117 आरोपियों का ट्रायल कम्प्लीट हुआ है, जिनमें से 21,070 यानी करीब 35% को ही सजा मिली है। बाकी 37,383 को बरी कर दिया गया।
मीडिया के लिए विशेष दिशा निर्देश
धारा 20 के अनुसार मीडिया किसी बालक के लैंगिक शोषण संबंधी किसी भी प्रकार की सामग्री जो उसके पास उपलब्ध हो, वह स्थानीय पुलिस को उपलब्ध करायएगा। ऐसा ना करने पर यह कृत्य अपराध की श्रेणी में माना जाएगा।
कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के मीडिया या स्टूडियों या फोटोग्राफी सुविधाओं से पूर्ण और अधिप्रमाणित सूचना के बिना किसी बालक के सम्बन्ध में कोई रिपोर्ट या उस पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा, जिससे उसकी प्रतिष्ठा हनन या उसकी गोपनीयता का उल्लंघन होता हों।
किसी मीडिया से कोई रिपोर्ट बालक की पहचान जिसके अन्तर्गत उसका नाम, पता, फोटोचित्र परिवार के विवरणों, विधालय, पङौसी या किन्हीं अन्य विवरण को प्रकट नहीं किया जायेगा।
परन्तु ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किये जाने के पश्चात सक्षम विशेष न्यायालय की अनुमति प्राप्त कर किया जा सकेगा यदि उसकी राय में ऐसा प्रकरण बालक के हित में है।
मीडिया स्टूडियों का प्रकाशक या मालिक संयुक्त रूप से और व्यक्तिगत रूप से अपने कर्मचारी के कार्यों के किसी कार्य के लिए उत्तरदायी होगा। इन प्रावधानों का उल्लंघन करने पर 6 माह से 1 वर्ष के कारावास या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जायेगा।
पॉक्सो अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
इस पॉक्सो अधिनियम POCSO ACT में बच्चों को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है। यह पॉक्सो अधिनियम लिंग तटस्थ है, इसका अर्थ यह है कि अपराध और अपराधियों के शिकार पुरुष, महिला या तीसरे लिंग हो सकते हैं।
यह एक नाबालिग के साथ सभी यौन गतिविधि को अपराध बनाकर यौन सहमति की उम्र को 16 साल से 18 साल तक बढ़ा देता है। पॉक्सो अधिनियम में यह भी बताया गया है कि यौन शोषण में शारीरिक संपर्क शामिल हो सकता है या शामिल नहीं भी हो सकता है।
पॉक्सो अधिनियम बच्चे के बयान को दर्ज करते समय और विशेष अदालत द्वारा बच्चे के बयान के दौरान जांच एजेंसी द्वारा विशेष प्रक्रियाओं का पालन करता है। सभी के लिए अधिनियम के तहत यौन अपराध के बारे में पुलिस को रिपोर्ट करना अनिवार्य है, और कानून में गैर-रिपोर्टिंग के लिए दंड का प्रावधान शामिल किया गया है।
इस पॉक्सो अधिनियम में यह सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं कि एक बच्चे की पहचान जिसके खिलाफ यौन अपराध किया जाता है, मीडिया द्वारा खुलासा नहीं किया जायेगा। बच्चों को पूर्व-परीक्षण चरण और परीक्षण चरण के दौरान अनुवादकों, दुभाषियों, विशेष शिक्षकों, विशेषज्ञों, समर्थन व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों के रूप में अन्य विशेष सहायता प्रदान की जानी है।
बच्चे अपनी पसंद या मुफ्त कानूनी सहायता के वकील द्वारा कानूनी प्रतिनिधित्व के हकदार हैं। इस पॉक्सो अधिनियम में पुनर्वास उपाय भी शामिल हैं, जैसे कि बच्चे के लिए मुआवजे और बाल कल्याण समिति की भागीदारी शामिल है।
पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज होने के बाद पुलिस की यह जवाबदेही हैं कि पीड़ित का मामला 24 घंटो के अन्दर बाल कल्याण समिति के सामने लाया जाए, जिससे पीड़ित की सुरक्षा के लिए जरुरी कदम उठाये जा सके, इसके साथ ही बच्चे की मेडिकल जाँच करवाना भी अनिवार्य हैं। ये मेडिकल परीक्षण बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जायेगा जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और पीड़ित अगर लड़की है तो उसकी मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)