Saturday, April 27, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: करोड़ों की लागत से नहर का जीर्णोद्धार, फिर भी बस्तर के किसान पानी के लिए परेशान

बस्तर। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां हर कोने में धान की खेती की जाती है। इसके साथ ही साल 2018 में कांग्रेस की सरकार आने के बाद से ही धान पर मिलने वाली एमएसपी के कारण किसान अब धान की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से अनियमित बारिश के कारण किसानों को खेती-बाड़ी में काफी परेशानी हो रही है।

किसानों को खरीफ, रबी की फसल के लिए ठीक से पानी मिल सके, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नहरों का इंतजाम किया गया है। ऐसी ही एक योजना साल 1977 में जगदलपुर शहर के बाहरी क्षेत्र में इंद्रावती नदी के किनारे आसना उद्ववहन सिंचाई योजना सरकार ने शुरू की थी। लगभग 45 साल पुरानी इस सिंचाई योजना के बाद भी यहां के किसान पानी के लिए तरस रहे हैं। हाल ही में लगभग एक करोड़ 10 लाख की लागत से इस नहर को जीर्णोद्धार किया गया है। लेकिन फिर भी किसानों को पानी नहीं मिल रहा है। 

नहर के पानी पर आश्रित किसान  

लगभग तीन किलोमीटर लंबी इस नहर पर लगभग 100 किसान निर्भर हैं। अब बारिश से जितना हो पाता है उतने में किसान खेती कर लेते हैं। आसना गांव में छोटे बड़े दोनों तरह के किसान हैं। लेकिन जहां यह नहर है वहां ज्यादातर माध्यम और छोटे किसान हैं। जिनके पास बोरिंग (पंप) भी नहीं है।

आसना गांव के रहने वाले दीपक पानीग्राही के खेत भी इसी नहर से सटे हुए हैं। वह कहते हैं कि “इस नहर का उद्घाटन साल 1977 में हुआ था। लेकिन कभी भी इससे पूर्ण फसल के लिए पानी नहीं मिला”। वह कहते हैं कि “साल 2021 से 2023 के बीच इसकी रिपेयरिंग हुई है। पिछले साल हमने धान काटा, किसी तरह बारिश के भरोसे पर खेती की। लेकिन इस साल इसमें पानी सप्लाई की कोई उम्मीद नहीं दिख रही”। वह सवाल करते हैं कि ‘इतने पैसे लगाकर रिपेयरिंग करवाने का क्या फायदा है’?

पंप सही नहीं तो पानी कहां से आएगा?

हरेकृष्ण पानीग्राही भी इसी गांव के किसान हैं। जिनका कहना है कि ‘पहले तो जैसे-तैसे यह चल भी जाती थी। लेकिन पिछले पांच साल से तो इसका कोई उपाय नहीं हो रहा है। दो साल लगाकर इसकी रिपेयरिंग की गई है। लेकिन सिर्फ नाली ही बनाई गई है। न तो पम्प की रिपेयरिंग हुई है न ही सप्लाई के लिए अच्छे पाइप लगाए गए हैं। जिससे कि पानी तीन किलोमीटर तक पहुंच सके’।

हरेकृष्ण पानीग्राही

रोड के दोनों तरफ फैली यह नहर इंद्रावती नदी से सटी है। यहीं से पानी की आपूर्ति होती है। नदी से पुराने और जंग खाए हुए पाइप ऊपर की तरफ आते हैं और यहां से ही रिपेयरिंग की गई नहर शुरू होती है। खेत और जंगल के बीच बने इस पंप हाउस में ऑपरेट करने वाला ऑपरेटर भी नहीं है। पंप हाउस के आसपास जंगल झाड़ियां हैं। पंप हाउस का दरवाजा और खिड़की भी खुली हुई है।

हरेकृष्ण का कहना है कि ‘न तो बारिश किसानों का साथ दे रही है न ही कोई योजना। नहर तो बन गई है लेकिन उसमें सफाई नहीं हुई है’। वह कहते हैं कि ‘अब स्थिति ऐसी है कि बारिश पर निर्भर रहना भी नुकसानदेह है’। मौसम विभाग की भविष्यवाणियों का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि ‘सुनने में तो आ रहा है कि इस साल भी सामान्य से कम बारिश होगी। अगर ऐसा होता है तो किसान ही इसमें पिसेगा’।

दीपक पानीग्राही का कहना था कि ‘सिंचाई विभाग ने सारी जिम्मेदारी किसानों पर छोड़ दी है। विभाग का कोई कर्मचारी यहां नहीं आता है। सारा सामान ऐसे ही पड़ा रहता है। जिसके कारण चोरी भी होती है। यहां बिजली की तार की चोरी आम बात है। यहां न तो पंप ऑपरेटर होता है न ही कोई चौकीदार। जिसका भुगतान किसानों का भुगतना पड़ता है’।  

लाखों का हो रहा घाटा

सुशील पानीग्राही के पास छह एकड़ जमीन है। उनका कहना है कि पानी की कमी के कारण उन्हें हर साल लाखों का घाटा हो रहा है। वह बताते हैं कि ‘हमने बोरिंग के लिए भी कहा था, लेकिन इसकी अनुमति नहीं मिल रही है। विभाग द्वारा कहा जाता है कि वहां नहर है इसलिए बोरिंग की अनुमति नहीं दी जाएगी। आपको इससे ही काम चलाना पड़ेगा’।

वो कहते हैं कि ‘हमारा मुख्य पेशा ही खेती-किसानी है। ऐसी स्थिति में हम एक ही सीजन की खेती करते हैं। अगर पानी मिल जाए तो हम दूसरी फसल या सब्जी भी लगा सकते हैं’।

सुशील पानीग्राही

100 किसान नगर पर निर्भर

सड़क के दोनों किनारों पर शहर से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर बनी इस नहर का सीधा असर कम से कम 100 किसानों के जीवन पर पड़ता है। साल 1977 से बनी इस नहर में कभी पानी आया और कभी नहीं आया। कभी इसमें रखा सामान चोरी की भेंट चढ़ गया। आसना के किसानों में इसको लेकर बहुत रोष है।

किसानों का कहना है कि ‘विभाग द्वारा आसना उद्ववहन योजना के लिए कर्मचारी भी नियुक्त हुए हैं लेकिन अधिकारी उनसे अपने घर का काम करवाते हैं। यहां तक कि अगर किसी खराबी की गांव वाले शिकायत करते हैं तो बनने में लंबा समय लग जाता है’।

आसना गांव के एक किसान ने जिनके पूर्वजों ने नहर बनने से पहले बोरिंग की व्यवस्था करवाई है। नाम न लिखने की शर्त पर कहते हैं कि ‘इस नहर का निर्माण तो साल 1977 में ही हुआ था। लेकिन इस बीच यह लगभग 10 साल (2005-15) तक पूरी तरह से बंद रही। उसके बाद साल 2017 में दोबारा शुरू हुई लेकिन वह भी न के बराबर, स्थिति ऐसी थी कि गांव वाले ही इसके देखरेख करने लगे।

वह कहते हैं कि साल 2018 में कांग्रेस की सरकार आने के बाद धान में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) मिलने लगी। अब जिन किसानों के पास खेत हैं वह धान के खेती करने के लिए दोबारा से तैयार हो गए हैं। इसके लिए पानी की जरूरत है।

लेकिन विभाग की तरफ से किसानों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। यहां आए दिन सामान की चोरी हो जाती है। जब वहां कोई चौकीदार नहीं रहेगा तो चोरी तो होगी ही। किसान तो इतनी दूर से अपने घऱ से इसे देखने नहीं आएगा। बाकी अभी जो नहर बनाई गई है। उसका भी किसानों को कोई खास लाभ नहीं है। यह अभी पूरी तरह से चालू भी नहीं हुई है और कहीं-कहीं से टूटने लग गई है। जो पाइप लाइन लगाई गई है। उसका साइज इतना छोटा है कि उसकी क्षमता के अनुसार पानी तीन किलोमीटर तक जा ही नहीं पाएगा।

पहले चौकीदार था अब नहीं

आसना गांव से खेत लभगग दो किलोमीटर की दूरी पर हैं। किसान अपने बाइक या साइकिल से खेतों में आते हैं। दिनभर बैठना उनके लिए संभव नहीं है। हरेकृष्ण पानीग्राही कहते हैं कि ‘जिस वक्त यह नहर बनी तो यहां पंप ऑपरेटर और चौकीदार दोनों होते थे’। साल 1977 से लेकर 2005 तक खेती करने और 2005 से 2015 तक खेती नहीं होने के पीछे के कारण पर बात करते हुए वो कहते हैं कि ‘साल 2005 तक यहां पंप ऑपरेटर चौकीदार हुआ करता था। चौकीदार की स्थिति ऐसी थी कि वह यहीं रहा करता था जिसके कारण चोरी नहीं हुई थी। साल 2005 में वह रिटायर हो गया, उसके बाद से यह सब हो रहा है। फिलहाल अभी चौकीदार की नियुक्ति हुई है लेकिन वह यहां नहीं आता बल्कि अधिकारियों के घर का काम करता है।

चोरी से विभाग भी परेशान

हमने इस मामले में सिंचाई विभाग के कार्यपालन अभियंता राजीव रिचारिया से बात की। पंप ऑपरेटर और चौकीदार पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि ‘चौकीदार रिटायर हो चुका है। जबकि पंप ऑपरेटर की भर्ती इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल विंग के द्वारा की जाएगी’।

‘जनचौक’ द्वारा पूछताछ करने के बाद सिंचाई विभाग द्वारा नहर में पानी की सप्लाई शुरू कर दी गई है। लेकिन किसान इससे खुश नहीं हैं। हमने इस बात की पुष्टि करने के लिए गांव के ही किसान हरेकृष्ण पानीग्राही से फोन पर बात की। उन्होंने बताया कि ‘पानी तो चालू हुआ है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। फिलहाल बारिश होने के बाद जुलाई के आखिरी सप्ताह में किसानों ने धान की रोपाई की है। आगे देखते हैं क्या होता है। मौसम साथ देता है कि नहीं’?

(बस्तर से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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