Friday, April 26, 2024

भारत-पाक अवाम में दोस्ती की कामना करती मोमबत्तियों की सिल्वर जुबली

रिपोर्ट- अर्जुन शर्मा

अगस्त का महीना पंजाब के लिए सदा ही दुःखद यादों से भरा होता है। जहां गर्मी, उमस और तपिश हमेशा अगस्त का अंग होते हुए शरीर को विचतिल करने वाले हालात दोहराती है, वहीं 1947 का अगस्त महीना उन लाखों परिवारों की यादों के झरोखों से दुःख और अवसाद की बारिश करता रहता है जो अपना सब कुछ छोड़ कर खाली हाथ बटवारे का बोझ उठाए ऊधर से इधर आए थे व जितने लोग वहां से चले थे उसके आधे भी जिंदा नहीं पहुंच सके थे। जो कभी एक ही देश का हिस्सा होते हुए आपस में मिल जुल कर रहते थे वही जब दो टुकड़ों के रूप में दो देश बन गए तो भाई न रहते हुए शरीक (अपने होने के कारण ही बने दुश्मन) बन गए। तीन युद्ध और तीस साल का छदम् युद्ध जारी है। आज भी जारी है। ताजा स्थिति ये है कि पंजाब के सीमांत जिला अमृतसर में पाकिस्तान द्वारा ड्रोन के माध्यम से आर.डी.एक्स व विस्फोटक गिराया गया है जो सुरक्षा बलों ने बरामद कर लिया है। बार्डर के इलाकों में ड्रोन उड़ने की तो बहुत सारी खबरें आईं, कि कभी पठानकोट, कभी जम्मू, कभी फिरोजपुर तो कभी गुरदासपुर के बार्डर एरिया में ड्रोन देखे गए पर विस्फोट सामग्री ड्रोन द्वारा फैंकी जाने की पहली घटना भी पंजाब में घटित हो चुकी है। वो भी अगस्त के अवसाद भरे महीने में। आज के दौर में भारत व पाकिस्तान की सरकारों के संबंध भी कटुता के चरम पर हैं।

उन हालात में यदि दोनों मुल्कों के अवाम को साथ जोड़ने व आपस में दोस्ती की भावना रखने की प्रेरणा देने हेतू चंद लोग हाथों में मोमबत्तियां लेकर पिछले पच्चीस साल से हर 14 अगस्त की रात को बार्डर पर जाकर अंधेरे का दोतरफा सन्नाटा तोड़ने का संदेश देते हैं। उस संदेश के जवाब में वाघा से पार वाले क्षेत्र में भी कुछ मोमबत्तियों की लौ दिखाई पड़ती है तो इन हालात पर कोई क्या कहना चाहेगा ? इस नफरत भरे दौर में दोस्ती की चंद मोमबत्तियां क्या कर सकेंगी ? यह सवाल पिछले पच्चीस साल से मौजूद है। इसका प्रभाव क्या रहा उसे मापने के लिए कोई पैमाना तो यकीनन नहीं हो सकता पर आइए पहले जानें कि वर्ष 1996 में प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर साहिब के नेतृत्व में बनाए गए हिंद पाक दोस्ती मंच द्वारा 14 अगस्त की शाम ढ़लते ही वाघा बार्डर पर चंद हमख्याल लोगों के साथ पहुंचकर मोमबत्तियों की लौ दिखा कर आजादी की पूर्व संध्या पर जहां वाघे की इस लकीर से विस्थापित होकर इधर से उधर व उधर से इधर आने जाने वालों की याद में, जो इस तबादले के दौरान मारे गए उनकी अनहोनी मौत पर तथा जो इधर व इधर बसे लोग हैं उनमें प्यार व मित्रता का संदेश दिया गया। जानकार बताते हैं कि इस पहलकदमी का पाकिस्तानी तरफ से जो रिस्पांस आया वो बेहद निराश करने वाला था। इधर मोमबत्तियों की लौ दिखी तो उधर वालों ने अपनी जल रही बत्तियों को बंद कर दिया। इधर हमारे प्रमुख बुद्धिजीवी हिंद पाक अवाम की दोस्ती जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे पर इन प्रेम भरी पहल से उपजी आवाज वाघा के पार न सुनी जा सके इसके लिए पाकिस्तानी रेंजरों ने अपनी तरफ वाली मस्जिद के स्पीकर को तेज करके प्रेम के तरानों को अपनी सरजमीं के वायूमंडल तक में जाने की इजाजत नहीं दी। उस रात वाघा से लौटते हुए थोड़े से निराश दिख रहे कुलदीप नैय्यर जी की ये टिप्पणी थी कि कोई बात नहीं सरकारें तो दोनों तरफ की ही कमोबेश अपनी अपनी नीति पर ही चलेंगी पर हमें अवाम को प्रेम का संदेश देना था सो दे दिया। पर उसके बाद दूसरे साल तो वाघा सरहद पर माने मेला लग गया। चंद बुद्धिजीवियों पर आधारित समझे जाने वाले इस आयोजन को बेशुमार सफलता मिली जब इधर से पंजाब के सुरीले व सूफी गायक हंस ने तान छेड़ी इह हद्दां तोड़ देओ, सरहद्दां तोड़ दियो, एधर यमला मेरा है ओदर आलम मेरा है, ओधर नुसरत मेरा है-एधर पूरण मेरा है (इन नफरत से बनी हदों और सरहदों को तोड़ दो, इस तरफ यमला जट्ट मेरा है तो उधर आलम लोहार मेरा है, उधर नुसरत फतेह अली खां मेरा है तो इधर पूरण शाहकोटी मेरा है ) तो जैसे समां ठहर गया। पाकिस्तान की तरफ से भी भारत पाक दोस्ती जिंदाबाद की आवाजें सुनने को मिली। उसके बाद तो जैसे ये एक मेला बन गया। इस आयोजन में शमिल होने वालों में प्रख्यात पत्रकार निखिल चक्रवर्ती, महान लेखक गुलज़ार साहिब, प्रखर पत्रकार विनोद मैहता (संपादक आऊटलुक), राज बब्बर, सूक्षम फिल्मकार महेश भट्ट, नंदिता दास, हरकिशन सिंह सुरजीत, सीताराम येचुरी, जस्टिस राजेंद्र सच्चर, हंसराज हंस ने तो 11 साल तक इस आयोजन में अपनी जादू भरी आवाज का जलवा बिखेरा, भगवंत मान बतौर कामेडियन कई सालों तक वहां परफार्म करते रहे। असंख्य नामवर हस्तियां भारत से पहुंची तो पाकिस्तान के सैंकड़ों सांसद इस मौके पर आए, पाकिस्तान की मानवाधिकारों की सबसे बड़ी आवाज अस्मां जहांगीर दर्जनों बार आईं जिनकी असल में निभाई भूमिका फिल्म वीर ज़ारा में रानी मुखर्जी ने निभाई थी। पाकिस्तान के मंत्री एहजाद अहसन, मदीहा गौहर, इम्तियाज आलम, मौलाना फजलुर रहमान के सबसे करीबी नेताओं से लेकर पाकिस्तानी कलाकारों ने इस अवसर पर मेले की तरह शिरकत की।

आजकल इस संस्था की अध्यक्ष सायिदा हमीद हैं। हिंद पाक दोस्ती मंच के महासचिव व वरिष्ठ पंजाबी पत्रकार (समाचार संपादक अजीत) सतनाम सिंह माणक का कहना है कि बीते दो साल से करोना की महामारी के चलते ये समारोह सांकेतिक तौर पर ही मनाया गया है व इस बार भी सांकेतिक तौर पर मनाएंगे। उन्होंने कहा कि वे पाकिस्तान सरकार से ये मांग करते हैं कि आतंकवाद को रोक कर प्रोत्साहित न किया जाए ताकि हमारी संस्था का जो दोनों देशों के अवाम में मित्रता चाहती है इसका कोई मकसद भी हल हो। श्री माणक बताते हैं कि एस प्रकार के आयोजनों के प्रभाव को नापा नहीं जा सकता पर करतारपुर कॉरीडोर जैसी प्राप्ति के पीछे इस प्रकार की सह्रदयता भरे प्रयासों की भी भूमिका होती है। 

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