लखनऊ। 29 मार्च, 2022 को 20 वर्ष के करन व 36 वर्ष के पूरन, दोनों अनुसूचित जाति में आने वाली धानुक बिरादरी के, दिन में साढ़े दस बजे गुलाबनगर, कैम्पबेल रोड स्थित सीवर में घुसे और वहीं फंस गए। एक तीसरे मजदूर 28 वर्षीय कैलाश भारती को जबरदस्ती सीवर के अंदर उतारा गया और वह भी वहां जाकर घुटन के कारण बेहोश हो गए। पूरन सीवर के अंदर ही मर गए, करन ने किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के ट्रौमा सेण्टर में 29 मार्च को दम तोड़ा और कैलाश को 31 मार्च को अस्पताल से रिहा किया गया। जबकि करन व पूरन के परिवारों को 20-20 लाख रुपए का मुआवजा मिल चुका है, परिवार के एक सदस्य को नौकरी व आवास का आश्वासन दिया गया है, कैलाश को मात्र रुपए 50,000 कम्पनी की तरफ से मिले हैं। उसे रुपये एक लाख का वायदा किया गया था।
करन, पूरन व कैलाश तीनों के परिवार हैदर कनाल पर अवैध अस्थाई घर बना रहे हैं जैसे कि बहुत सारे अन्य लोग रह रहे हैं। करन की शादी नहीं हुई थी और वह इस काम में डेढ़ वर्ष से लगा था। उसके भाई व पिता भी यही काम करते हैं। उसकी मां संगीता घरों में सफाई का काम करती हैं। पूरन की संजना से शादी हुई थी और दोनों के तीन बच्चे हैं – एक 9 वर्ष की लड़की, एक 8 वर्ष का लड़का व एक 3 वर्ष की लड़की। कोई भी बच्चा कभी विद्यालय पढ़ने नहीं गया है। पूरन जहां पहले झाड़ू लगाने का काम करते थे वहां से 350 लोगों के साथ निकाले जा चुके थे और यह उनका सीवर में घुसने का पहला दिन था। पूरन के जाने के बाद अब परिवार चलाने की सारी जिम्मेदारी संजना के ऊपर आ गई है।
कैलाश ने 14 वर्षों तक नगर निगम में झाड़ू लगाने का काम किया। फिर जल संस्थान में डेढ़ साल काम किया। किंतु वहां ठेकेदार राम औतार नियमित पैसा नहीं देता था। इसलिए 21 फरवरी 2022 से सुएज इण्डिया कम्पनी में काम करने लगे। यहां उसे रुपए 10,500 मासिक तनख्वाह मिलती है। 29 मार्च को वह दुर्घटना स्थल से 2-3 किलोमीटर दूसरी जगह काम कर रहा था जब उसे पर्यवेक्षक अमित सिंह ने तेजी से मोटरसाइकिल पर गुलाबनगर पहुंचने को कहा। वहां पहुंचने पर उसे पता चला कि करन व पूरन सीवर में नीचे फंसे हुए हैं और उसे भी बिना किसी बचाव के साधन जैसे मास्क आदि के नीचे उतरने के लिए मजबूर किया गया। जिस रस्सी से उसे 20 फीट नीचे उतारा गया वह भी उसके कमर पर नहीं बांधी गई। वह सिर्फ रस्सी पकड़े हुए था और नीचे पहुंचते ही वह भी जहरीली गैस से बेहोश हो गया और उसके हाथ से रस्सी छूट गई। पर्यवेक्षक भाग गया और आम लोगों ने बांस व रस्सी से किसी तरह तीनों को बाहर निकाला।
कैलाश के भाई व मां को ढाई घंटे लग गए सिर्फ ट्रौमा सेण्टर में उससे मिलने में। प्रशासन अति सतर्कता बरतते हुए किसी को भी मरीजों से मिलने ही नहीं दे रहा था। करन, कैलाश के बगल में ही बिस्तर पर था जहां 29 मार्च को ही उसकी मृत्यु हो गई। कैलाश की शादी हो चुकी है और उसके एक 3 साल की लड़की है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत अमित सिंह को जेल भेजा जा चुका है। किंतु मैला ढोने के रोजगार का प्रतिषेध व पुनर्वास अधिनियम 2013 की धारा 23 के तहत सुएज इण्डिया कम्पनी के महाप्रबंधक राजेश मथपाल, जल संस्थान के महाप्रबंधक एस.के. वर्मा व लखनऊ नगर आयुक्त अजय द्धिवेदी की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए ताकि भविष्य में किसी इंसान की कीमती जान न जाए। कम्पनी सीवर साफ करने के लिए मशीन का इस्तेमाल कर सकती थी या नगर निगम यह सुनिश्चित कर सकता था कि मशीनों का इस्तेमाल हो किंतु पैसा बचाने के लिए और भ्रष्टाचार करने के लिए कम्पनी व नगर निगम की मिली भगत में मशीन की जगह सीवर में आदमी ही उतार दिए जाते हैं। करन व पूरन के परिवार के एक-एक सदस्य को नौकरी व आवास का वायदा पूरा होना चाहिए और पूरन के दो बड़े बच्चों की उपर्युक्त अधिनियम की धारा 13(1)(ख) के तहत शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए।
हम यह भी मांग करते हैं कि सीवर/सेप्टिक टैंक में मरने वालों को शहीद का दर्जा दिया जाए क्योंकि ये सफाईकर्मी भी उसी जज्बे के साथ समाज की सेवा करते हैं जैसे देश की सीमा पर सैनिक। इन मृतकों के फोटो नगर निगम/नगर पालिका/नगर महापालिका की दीवारों पर लगनी चाहिए।
सोशलिस्ट दलित सभा अम्बेडर जयंती के अवसर पर कैलाश को उसकी बहादुरी के लिए, यह जानते हुए कि सीवर के अंदर शायद दो लोग मर चुके हैं उसने उसमें घुसने की हिम्मत दिखाई, सम्मानित करेगी और नकद पुरस्कार भी देगी।
(सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के मानवाधिकार प्रकोष्ठ की प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
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