Thursday, April 25, 2024

जमाखोरी रोकने के लिए दालों की स्टॉक लिमिट तय, केंद्र ने की अपने ही कानून की अनदेखी

देश में लगातार महंगाई की समस्या बढ़ती जा रही है। आम आदमी पर खर्च का दबाव बढ़ता जा रहा है। पेट्रोल-डीजल और एलपीजी की कीमतों में बढ़ोतरी तो हो ही रही है। साथ ही साथ खाद्य पदार्थों की भी कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है। रिफाइन और सरसों के तेल के दामों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। सब्जियां तो महंगी हैं ही साथ ही साथ अब दाल की कीमतों में भी भारी उछाल देखा जा रहा है। दालों की आसमान छूती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। उच्चतम न्यायालय का धन्यवाद जिसने कृषि कानूनों पे स्टे लगा रखा है, जिससे केंद्र सरकार शुक्रवार से दालों पर स्टॉक लिमिट तय करने का कदम उठा सकी।

इसके साथ ही केंद्र सरकार द्वारा संसद से पारित और अधिसूचित तीनों कृषि कानूनों में से एक की प्रासंगिकता पर सवाल उठाना शुरू हो गया है जिसमें स्टॉकहोल्डिंग की सीमा को 17 मई, 2017 से हटा दिया गया था। यानि यदि इन तीन कानूनों का क्रियान्वयन उच्चतम न्यायालय ने स्टे नहीं किया होता तो सरकार के लिए दालों पर स्टॉक लिमिट तय करना आसन नहीं होता। 

दरअसल 12 जनवरी को, उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक तीनों कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी। इसके अलावा, इसने किसानों की शिकायतों और कानूनों से संबंधित सरकार के विचारों को सुनने के बाद सिफारिशें करने के लिए एक समिति नियुक्त की। पैनल, जिसमें दो कृषि अर्थशास्त्री (अशोक गुलाटी और पी के जोशी) और एक किसान नेता (अनिल घनवत) शामिल थे, ने 19 मार्च को एक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी। तब से, सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई और निर्णय या सुनवाई नहीं हुई है, न ही सरकार द्वारा अपने स्टे को खाली करने का प्रयास किया गया है।

तकनीकी रूप से रोके गए कानूनों के कार्यान्वयन ने वास्तव में, सरकार को स्टॉकहोल्डिंग सीमा को फिर से शुरू करने की शक्ति दी है, जिसे पिछली बार 17 मई, 2017 को हटा दिया गया था। आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम ने इस पुन: लागू करने की अनुमति नहीं दी है। नया आदेश पूरी तरह से आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 से भिन्न है, जो उन तीन कानूनों में से एक था, जिन्हें किसान संगठनों ने निरस्त करने की मांग की थी।

यह अधिनियम, जिसके खिलाफ अन्य दो कानूनों की तुलना में विरोध वास्तव में कम रहा है, जो राज्य सरकार द्वारा विनियमित बाजारों के बाहर अनुबंध खेती और उपज की खरीद को सक्षम बनाता है, केवल युद्ध, अकाल, गंभीर प्रकृति की प्राकृतिक आपदाओं या “असाधारण मूल्य वृद्धि” की स्थितियों के तहत स्टॉकहोल्डिंग सीमा को बंद करने की अनुमति देता है। इसके अलावा, गैर-नाशयोग्य खाद्य पदार्थों जैसे दालों के लिए मूल्य वृद्धि सीमा को पिछले 12 महीनों में प्रचलित स्तरों पर 50 प्रतिशत या उससे अधिक की खुदरा मुद्रास्फीति के रूप में परिभाषित किया गया था।

वास्तव में चार साल से अधिक समय के बाद और ऐतिहासिक  कृषि कानूनों के लागू होने के ठीक नौ महीने बाद, स्टॉक की सीमा को बाँधने का  निर्णय के पीछे ऐसा प्रतीत होता है कि खरीफ फसलों के लिए बुवाई की अवधि के दौरान सुखा पड़ने की सम्भावना  के बीच  बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति की आशंका है।

तो क्या माना जाय कि केंद्र के तीन कृषि सुधार कानूनों पर न केवल उच्चतम न्यायालय  ने रोक लगा दी है, बल्कि मोदी सरकार ने उन्हें प्रभावी ढंग से दफन कर दिया है, जिसने सरकार ने  सितंबर 2020 में संसद में पारित कराया था और अधिसूचना जारी कर दिया था।

केंद्र सरकार ने  राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वो अपने हिसाब से दालों के लिए स्टॉक लिमिट तय करें। यह आदेश थोक विक्रेताओं, रिटेलर्स, मिल मालिकों और इम्पोर्टर्स पर लागू होगा, जिसमें मूंग दाल को छोड़कर अन्य सभी दालों को तय लिमिट से अधिक स्टॉक में रखने पर कार्रवाई की जाएगी। सरकार का ये आदेश 2 जुलाई से ही लागू हो गया है, जो 31अक्टूबर तक प्रभावी रहेगा।

सरकार के ताजा आदेश के मुताबिक, रिटेल कारोबारियों के लिए 5 टन स्टॉक लिमिट तय की गई है, जबकि थोक कारोबारी और इंपोटर्स 200 टन से अधिक का स्टॉक नहीं रख पाएंगे। इसमें किसी एक किस्म की दाल का स्टॉक 100 टन से ज्यादा नहीं हो सकता है। मिलों को अपनी कुल सालाना क्षमता का 25 प्रतिशत से अधिक का स्टॉक नहीं रखना है। अगर किसी के पास तय सीमा से अधिक दाल है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग को सूचित करना होगा।

कोरोना काल में दालों की कीमत लगातार बढ़ती जा रही थी। मंडियों में दाल न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ऊपर बिक रही हैं। सरकार ने इसकी कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए कई तरह के कदम उठाये हैं। इससे पहले जून के आखिर में सरकार ने 50 हजार टन तूर दाल के आयात को मंजूरी दी थी। वहीं 15 मई को मूंग, उड़द और तूर (अरहर) को आयात से मुक्त कर दिया था। तीनों दालों को 31 अक्टूबर 2021 तक के लिए प्रतिबंधित से हटाकर निशुल्क की श्रेणी में भी डाल दिया गया है। इसी कड़ी में जमाखोरी रोकने के लिए और आम लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया।

इसके पहले केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से अनुरोध किया था कि वे मिलर्स, व्यापारियों, आयातकों आदि जैसे सभी स्टॉकहोल्डर्स को ईसी अधिनियम की धारा 3(2)(एच) और 3(2)(आई) के तहत दी गई शक्ति के जरिए दालों के अपने स्टॉक की जानकारी देने का निर्देश दें।  घोषित स्टॉक को राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा सत्यापित किया जाएगा. राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से साप्ताहिक आधार पर दालों की कीमतों की निगरानी करने का भी अनुरोध किया गया था। यह पहली बार है जब पूरे देश में दालों का रियल टाइम स्टॉक प्राप्त करने के लिए इस तरह के कदम को अपनाया गया ताकि जमाखोरी जैसे गैरकानूनी कदमों पर रोक लगाई जा सके। जिससे जानबूझकर की गई दालों की कमी और मूल्य वृद्धि को रोका जा सके।

केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से इस संबंध में एक आदेश जारी किया गया है, जिसके मुताबिक दालों का स्टॉक रखने की सीमा तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस साल जनवरी-जून की अवधि के दौरान दालों की खुदरा कीमतों में 20 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी हुई। अरहर, उड़द और मसर दाल के खुदरा दाम में इस दौरान 10 से 20 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई। मंत्रालय ने आदेश में कहा कि थोक विक्रेताओं के लिये 200 टन दाल की स्टॉक सीमा होगी। हालांकि, इसके साथ ही यह शर्त होगी कि वह एक ही दाल का पूरा 200 टन से अधिक स्टॉक नहीं रख सकेंगे। खुदरा विक्रेताओं के लिए यह स्टॉक सीमा पांच टन की होगी।

(जेपी सिंह कानूनी मामलों के जानकार हैं और प्रयागराज में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles