उच्चतम न्यायालय में न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) ने प्रकारान्तर से मान लिया है कि वह दंतहीन, नखहीन है। एनबीए ने सुदर्शन मामले में दायर हलफनामे में उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई है कि हमें मान्यता प्रदान करें, ताकि सभी समाचार प्रसारकों को, वह सदस्य हो या नहीं, बाध्यकारी कार्यक्षेत्र के भीतर लाया जा सके। इस मामले की अगली सुनवाई 21 सितंबर यानी सोमवार को होगी।
दरअसल सुदर्शन न्यूज टीवी के विवादास्पद शो के खिलाफ मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने अपने स्वयं के नियमों को लागू करने में ढिलाई पर एनबीए को फटकार लगाई थी। पीठासीन जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एनबीए को ‘टूथलेस’ यानि दंतहीन कहा था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने एनबीए की वकील अधिवक्ता निशा भंभानी से पूछा, “क्या आप टीवी देखते हैं या नहीं? आपने खबर में क्या चल रहा है इसे नियंत्रित नहीं किया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि एक चीज जो आप कर सकते हैं, वह एनबीए को मजबूत करने के लिए एक विधि पर वापस आ सकते है, ताकि आपके पास उच्च नियामक सामग्री हो। आपके पास कुछ सदस्य हैं और आपके नियमों को लागू नहीं किया जा सकता। आपको हमें यह बताने की आवश्यकता है कि इसे कैसे मजबूत किया जा सकता है।”
इसके जवाब में उच्चतम न्यायालय में दाखिल हलफनामे में एनबीए ने कहा है कि उसकी आचार संहिता को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के ‘प्रोग्राम कोड’ के नियम 6 में शामिल किया जाना चाहिए और एनबीए की सदस्यता के बावजूद, सभी समाचार प्रसारकों के लिए बाध्यकारी बनाया जाए। एनबीए ने यह हलफनामा शुक्रवार को अदालत के निर्देशों के जवाब में दायर किया है, जिसमें मांग की गई थी कि कैसे समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) के स्व-नियामक तंत्र को मजबूत किया जा सकता है और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संबंध में अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
हलफनामे में एनबीए ने कहा है कि अदालत स्वतंत्र स्व-नियामक तंत्र एनबीएसए को मान्यता दे सकती है, ताकि सभी समाचार प्रसारकों के खिलाफ शिकायतें, वह एनबीए के सदस्य हों या नहीं, एनबीएसए द्वारा सुनी जाए और एनबीएसए द्वारा पारित आदेश सभी समाचार प्रसारकों के लिए बाध्यकारी और लागू हों। एनबीएसए को मान्यता न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स रेग्युलेशंस को भी मजबूत करेगी और यहां बताए गए जुर्माने को और सख्त बनाया जा सकता है।
हलफनामे में एनबीए ने यह दावा किया है कि सदस्य प्रसारणकर्ताओं द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों के संबंध में दर्शकों/ व्यथित व्यक्तियों से प्राप्त शिकायतों पर स्वतंत्र स्व-नियामक सहायक निकाय, एनबीएसए, जिस तरह से फैसला करता है, वह पहले से ही सुनिश्चित है। हालांकि, इस तथ्य के मद्देनजर कि सभी समाचार प्रसारणकर्ता/ समाचार चैनल एनबीएसए के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं, एनबीएसए ने उपरोक्त सुझावों को स्व-नियामक निकाय और तंत्र को अधिक प्रभावी बनाने और इसे और अधिक ताकत देने के लिए दिया है।
गौरतलब है कि एनबीए टीवी समाचार चैनलों का एक स्वैच्छिक संगठन है, जो एक गैर-लाभकारी कंपनी के रूप में पंजीकृत है। इसने एक आचार संहिता और प्रसारण मानक विकसित किया है और अपने मानदंडों को लागू करने के लिए एक स्वतंत्र स्व-नियामक निकाय के रूप में एक समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण की स्थापना की है। उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके सीकरी समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
सुदर्शन न्यूज़ का हलफनामा दाखिल
यूपीएससी जिहाद वाले कार्यक्रम को लेकर सुदर्शन न्यूज ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दिया है कि वह टेलिकास्टिंग को लेकर सभी नियमों का पालन करेगा। हालांकि चैनल की ओर से ये भी कहा गया कि दूसरे चैनलों में भी हिंदू आतंक या भगवा आतंक पर कार्यक्रम हुए जो प्रख्यात पत्रकारों ने किए, लेकिन उन पर कोई आपत्ति नहीं जताई गई। हलफनामे में प्रोगाम के कैप्शन (‘हिंदू’ टेरर: मिथक या सच?) और मोंटाज की फोटो (जिसमें एक हिंदू संत को तिलक, त्रिशूल और चिलम के साथ दिखाया गया था) भी संलग्न किया गया है।
हलफनामा में न्यूज चैनल ने कहा है कि यूपीएससी जिहाद शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया है, क्योंकि विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिली है कि जकात फाउंडेशन को आतंकवाद से संबंध रखने वाले विभिन्न संगठनों से धन मिला। चैनल ने कहा है कि ऐसा नहीं है कि जकात फांउडेशन को मिले सभी चंदों का संबंध आतंकवाद से है। हालांकि, कुछ चंदा ऐसे संगठनों से मिला है, जो चरमपंथी समूहों का वित्तपोषण करते हैं। जकात फाउंडेशन को मिले धन का इस्तेमाल आईएएस, आईपीएस या यूपीएससी आकांक्षियों की मदद के लिए किया जाता है।
इससे पहले शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन ‘जकात फाउंडेशन’ से पूछा था कि क्या वह इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहता है, क्योंकि इसमें उसकी भारतीय शाखा पर विदेश से आतंकी संगठनों से वित्तीय मदद मिलने का आरोप लगा है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष जकात फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगडे ने कहा कि निजी न्यूज चैनल द्वारा दाखिल हलफनामे में उनके मुवक्किल पर विदेश से चंदा लेने का आरोप लगाया गया है। उनका मुवक्किल एक धर्मार्थ संगठन है, जो गैर-मुस्लिमों की भी मदद कर रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)
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