Thursday, April 18, 2024

महिला की जिंदगी तो नहीं बचा सका सुप्रीम कोर्ट, उम्मीद है स्टेशन पर पड़ा शव ज़रूर पहुंच जाएगा उसके घर

सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवासी कामगारों की समस्या पर अचानक संज्ञान लेने की पृष्ठभूमि का अब पता लग गया है। 16 मई को मज़दूरों की व्यथा के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद, एक आवेदन रद्द कर दिया था और सॉलिसीटर जनरल की यह बात मान ली थी, कि सरकार सभी प्रवासी मज़दूरों का खयाल रख रही है और ज़रूरी इंतज़ाम कर रही है। सड़क पर कोई मज़दूर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ” वह किसी को सड़क पर चलने से कैसे रोक सकती है और कोई भी अखबारों में कुछ पढ़ कर एक आवेदन लेकर आ जाय तो वह क्या करेगी ? ” 

लेकिन 26 मई को अचानक एक अच्छी खबर मिली कि सुप्रीम कोर्ट ने मज़दूरों की व्यथा पर स्वतः संज्ञान ले लिया। इस अचानक हृदय परिवर्तन का कारण क्या है, जबकि, मज़दूरों की व्यथा कथा मीडिया और अखबारों मे निरंतर छप रही है। मज़दूरों की इस दारुण व्यथा और दिल दहला देने वाली घटनायें तो,  पिछले डेढ़ माह से जारी हैं और सुप्रीम कोर्ट के जज साहबान भी मीडिया और अखबारों में छप रही और दिखायी जा रही उनकी उक्त व्यथा से अनभिज्ञ नहीं ही होंगे। लेकिन अचानक मंगलवार 26 मई को ही स्वतः संज्ञान लेने की क्या ज़रूरत कोर्ट को आ गयी। यह तंद्रा टूटी कैसे ? 

यह तंद्रा टूटी सुप्रीम कोर्ट के ही कुछ वरिष्ठ वकीलों के एक पत्र से, जिसे सोमवार को यानी 25 मई को सुप्रीम कोर्ट को लिखा गया था। पत्र के कुछ अंश इस प्रकार हैं। 

” सुप्रीम कोर्ट, मार्च के महीने में प्रवासी कामगारों के साथ किये जा रहे सरकार के कुछ फैसलों की सावधानी पूर्वक समीक्षा करने में विफल रहा है जिससे, इन प्रवासी मज़दूरों को, बिना रोजगार और मजदूरी के बेहद अस्वास्थ्यकर स्थानों पर, कोविड संक्रमण का बड़ा खतरा झेलते हुए रहना पड़ रहा है। प्रवासी मज़दूरों का मामला कोई नीतिगत मामला नहीं है। यह एक संवैधानिक बिंदु भी उठाता है। इस अदालत को संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत न्याय करने के लिये असीमित शक्तियां प्राप्त हैं। जिस प्रकार की बेबसी का प्रदर्शन सुप्रीम कोर्ट ने किया है, वह सुप्रीम कोर्ट के ध्येय वाक्य यतो धर्मस ततो जयः के सर्वथा विपरीत है।” 

पत्र लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट हैं, पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, इंदिरा जयसिंह, विकास सिंह, इकबाल चावला, नवरोज़ सीरवाई, आनन्द ग्रोवर, मोहन कतर्की, सिद्धार्थ लूथरा, महालक्ष्मी पावनी, सीयू सिंह, एसपी चिनॉय, मिहिर देसाई, जनक द्वारकादास, रजनी अय्यर, यूसुफ मूछला, राजीव पाटिल, गायत्री सिंह, संजय सिंघवी। 

अखबार के अनुसार, यह पत्र सोमवार को देर शाम सुप्रीम कोर्ट में प्राप्त हुआ, और तालाबंदी के दौरान, मज़दूरों की व्यथा और समस्याओं पर स्वतः संज्ञान लेने का निर्णय सुप्रीम ने मंगलवार को ले लिया। इसी दिन मज़दूरों को खाना पानी और आश्रय, परिवहन आदि उपलब्ध कराने के निर्देश का भी निर्णय किया गया। अब यह मुकदमा, आज यानी 28 मई को सुना जाएगा। 

वकीलों ने उस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के उस वाक्य को उद्धृत किया था, जिसमें कोर्ट ने, सॉलिसिटर जनरल के इस रिमार्क कि,  ” कोई भी प्रवासी व्यक्ति, अपने घर या गांव पहुंचने के लिए सड़कों पर नहीं है। ” पर संतोष जाहिर किया था। यहां तक कि जो सरकार ने नहीं कहा था वह भी सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि, ” प्रवासियों का यह पलायन, फ़र्ज़ी खबरों द्वारा फैलायी गयी सनसनी के कारण है। ” पर अदालत ने यह बिल्कुल नहीं कहा कि ” वे खबरें फैलाने वाले कौन थे और ऐसी सनसनी या पैनिक फैलाने वालों के खिलाफ सरकार ने कोई कार्यवाही क्यों नहीं किया। ” यह एक स्वाभाविक सवाल उठता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नहीं पूछा। 

आज सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी मज़दूरों की व्यथा पर, अदालत द्वारा स्वतः संज्ञान लिए गए मुक़दमे की तारीख है। 26 मई को, इस मामले में स्वतः संज्ञान लेने के बाद, अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को इन प्रवासी मज़दूरों के लिये, उन्होंने क्या प्रबंध किये हैं, का विवरण देने को कहा है। देखना है आज सरकारें, अदालत में अपना क्या पक्ष रखती हैं।  

अदालतों को महात्मा गांधी की यह बात याद रखनी चाहिये कि, 

” न्यायिक अदालतों से भी ऊपर, एक और अदालत होती है, जो अंतरात्मा की अदालत है, और यह अदालत, सभी अदालतों के निर्णयों को पलट सकती है। “

स्टेशन पर एक लेटी हुयी महिला, जो वास्तव में मर चुकी है, और उसके बगल में खेलती हुयी एक बच्ची, जिसे मृत्यु होती क्या है, यह तक पता नहीं है, वह अपने माँ की चादर खींच-खींच कर खेल रही है, का एक वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत ही वायरल हुआ। यह वीडियो और इसकी तस्वीर, किसी भी कठोर से कठोर दिल  व्यक्ति को हिलाकर रख देगी। गरीबों के पलायन जन्य मौतों से जुड़ी कई तस्वीरें जो सामने आ रही हैं, दिल दहला दे रही हैं। 

ट्रेनें, 2 दिन का सफर 9 दिन में पूरा कर रही हैं। एक लड़की अपने बीमार पिता को 7 दिन में साइकिल चला कर गुरुग्राम से बिहार पहुंच जाती है। सरकार के समर्थक इस बेहद मज़बूरी और घोर कष्ट में किए गए इस सफर में, ज्योति में, स्पोर्ट्स की प्रतिभा ढूंढ रहे हैं। बेहद मजबूरी में किये गए इस आश्चर्यजनक प्रयास की वाहवाही कह रहे हैं। स्पोर्ट्स की प्रतिभा ज्योति में ढूंढी जानी चाहिए। उसके हौसले को सलाम और उसकी सराहना भी की जानी चाहिए।  

लेकिन क्या सत्ता से जुड़े इन महानुभावों द्वारा, इस घोर त्रासद पलायन के कारणों, पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिये, जिससे ज्योति को इस गर्म मौसम में, यह अपार कष्ट उठाने की मजबूरी झेलनी पड़ी हो? इस उत्साहवर्धन के साथ-साथ उन सारे लोगों को, ज्योति से इस त्रासद कुप्रबंधन के लिये क्या क्षमा याचना नहीं करनी चाहिए ? 

लेकिन, हस्तिनापुर की बेड़ियां ही ऐसी होती हैं कि अंधे राजा और अंधी सत्ता के सामने परम विद्वान, शास्त्र मर्मज्ञ और महा प्रतापी भी क्लीवता का प्रदर्शन करने लगते हैं। जब यह सब असहज करने वाली तस्वीरें और विवरण, हमें बेहद आंदोलित औऱ उद्वेलित करने लगते हैं तो हम इसे नियति या कर्मों का भोग, कह कर के  चुप हो जाते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट को इस बाबत भी सरकार से जानकारी लेनी चाहिए कि, क्या पलायन जैसी दुर्व्यवस्था और यह सब घटनाएं और बातें, तालाबन्दी में न हों, लॉक डाउन का निर्णय लेते समय, सरकार द्वारा सोची गयीं थी या यह सब भी नोटबंदी जैसा धुप्पल में लिए गए निर्णय की ही तरह बिना सोचे समझे ले लिया गया था। इस बात की पड़ताल होनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि, वह सरकार को एक विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करे, और उनके अनुपालन तथा मॉनिटरिंग के लिये एक अधिकार सम्पन्न कमेटी का भी गठन हो, जो आवश्यक फीड बैक अदालत को भी दे। 

सरकार, इस पलायन की त्रासदी में भूख, थकान, दुर्घटना, और मौसम की मार से मरने वालों की सूची भी दे और उनके आश्रितों के लिये उचित मुआवजा भी दे। हम उम्मीद करते हैं सुप्रीम कोर्ट कोई न कोई ऐसा कदम ज़रूर उठाएगी जिससे इस त्रासदी में थोड़ी बहुत राहत इन प्रवासी मज़दूरों को ज़रूर मिल जाये । 

( विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं। और आजकल कानपुर में रहते हैं। )

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