आंध्र सीएम की चिट्टी पर सुप्रीम कोर्ट ने साधी खामोशी, रेड्डी के खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल

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उच्च न्यायपालिका ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखे गए उस पत्र पर चुप्पी बना रखी है, जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायिक प्रशासन में उच्चतम न्यायालय के नंबर दो न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना के हस्तक्षेप का आरोप लगाया है।

गौरतलब है कि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 तथा उच्चतम न्यायालय की तयशुदा आंतरिक जांच प्रक्रिया के तहत किसी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट जज के खिलाफ भारत के चीफ जस्टिस को शिकायत मिलने पर पहले वे उसे अपने स्तर पर ही जांचेंगे। यदि मामला बनता नजर नहीं आता, तो शिकायत दाखिल दफ्तर कर दी जाएगी। शिकायत यदि विचार करने योग्य है, तो उसे उच्चतम न्यायालय के एक जज, किसी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक न्यायशास्त्री की तीन सदस्यीय समिति के समक्ष रखा जाएगा।

उसके बाद भी मामला अग्रिम कार्रवाई योग्य प्रतीत होने पर संबंधित जज से जवाब तलब किया जाने के बाद भी असंतुष्ट होने पर सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की कमेटी को पूर्ण विचारण के लिए सौंपा जाएगा। उसमें भी मामला विचार योग्य लगने के बाद ही चीफ जस्टिस उसे संविधान में वर्णित महाभियोग की प्रक्रिया के तहत विचारण में अग्रसर कर सकेंगे। जगनमोहन रेड्डी के शिकायती पत्र पर इतनी संवैधानिक प्रक्रियाओं के बाद ही कार्यवाही हो सकती है। फ़िलहाल उच्च न्यायपालिका ने इस पत्र पर चुप्पी बना रखी है।

इस बीच सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए), बार काउंसिल ऑफ इंडिया, सुप्रीम कोर्ट एडववोकेट ऑन रिकॉर्ड्स एसोसिएशन और दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने बयान जारी करके आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को लिखे गए उस पत्र की कड़ी निंदा की है, जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायिक प्रशासन में न्यायमूर्ति एनवी रमना के हस्तक्षेप का आरोप लगाया है।

एससीबीए ने कहा है कि संवैधानिक पद पर बैठे ओहदेदारों के इस तरह के कार्य परिपाटी के विरुद्ध और गंभीर दखलंदाजी है, जिससे भारतीय संविधान में न्यायपालिका को मिली आजादी प्रभावित होती है। इसमें पत्र के पब्लिक डोमेन में जारी किए जाने का भी विरोध किया है, क्योंकि इससे न्यायिक स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि जगन मोहन रेड्डी के पत्र की विषय-वस्तु के कारण आम आदमी का न्यायपालिका में भरोसा डिगा है।

दरअसल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने 11 अक्तूबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे को पत्र लिख कर आरोप लगाया था कि हाई कोर्ट के कुछ न्यायाधीश राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में प्रमुख विपक्षी दल तेलुगुदेशम पार्टी (तेदेपा) के हितों की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार अजय कल्लम की ओर से मीडिया में जारी शिकायत की विचित्र बात यह थी कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश एनवी रमना पर आरोप लगाया गया है कि वह (न्यायमूर्ति रमना) आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायिक प्रशासन को प्रभावित करते हैं। न्यायमूर्ति रमना भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं।

एक अन्य जनहित याचिका में रेड्डी को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग भी की गई है। याचिका में कहा गया है कि रेड्डी ने उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ सार्वजनिक मंच पर और मीडिया में झूठे, अस्पष्ट, राजनीतिक और अपमानजनक टिप्पणी करके और खुलेआम आरोप लगाकर मुख्यमंत्री के पद और शक्ति का दुरुपयोग किया है और उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाया जाना चाहिए।

जस्टिस रमना पर तेलुगुदेशम पार्टी का पक्षपाती होने का आरोप लगाने के बाद आंध्र प्रदेश के सीएम के खिलाफ एक और याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश के सीएम द्वारा एक SC जज के बारे में ‘निराधार आरोप’ लगाए गए। संविधान के अनुच्छेद 121 और 211 का हवाला देते हुए, वकील सुनील कुमार सिंह ने शीर्ष अदालत से आंध्र प्रदेश के सीएम को एक सुप्रीम कोर्ट के जज और हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ अपने ‘तुच्छ’ आरोपों के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करने का आग्रह किया गया है।

रेड्डी ने पत्र में आरोप लगाया है कि आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का इस्तेमाल ‘मेरी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अस्थिर एवं अपदस्थ करने में किया जा रहा है।’ रेड्डी ने सीजेआई से मामले पर गौर करने का आग्रह किया और ‘राज्य न्यायपालिका की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त कदम उठाने’ पर विचार करने के लिए कहा। यह भी आरोप लगाया गया है कि उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश की चंद्रबाबू नायडू से नजदीकी है।

वकीलों के निकाय राष्ट्रीय राजधानी और नियामक निकाय, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने अलग-अलग प्रस्तावों को पारित किया है, जिसमें रेड्डी के पत्र की कड़ी निंदा की गई है। दो अधिवक्ताओं जीएस मणि और प्रदीप कुमार यादव ने एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें न्यायपालिका, उच्च न्यायालय और न्यायमूर्ति रमना के खिलाफ निंदनीय आरोप लगाने के लिए मुख्यमंत्री पद से रेड्डी को हटाने का निर्देश देने की मांग की गई है ।

इस बीच देश भर के लगभग 100 कानून के छात्रों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बोबडे को पत्र लिखकर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना के खिलाफ कथित अपमानजनक आचरण के लिए कड़ी कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। अधिवक्ता उत्सव बैंस के नेतृत्व में एक पत्र याचिका के माध्यम से कानून के छात्रों ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं और कहा कि सत्ता में किसी भी राजनेता को न्याय के प्रशासन को पूर्ण निंदा के साथ लाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

पत्र में जोर दिया गया था कि संविधान के तहत, एक मौजूदा मुख्यमंत्री के पास एक अच्छी तरह से रखी गई शिकायत प्रणाली है, लेकिन आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जानबूझ कर संविधान के तहत निर्धारित प्रक्रिया की अनदेखी की और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर गंभीर और गंभीर हमला किया जो स्वभाव से तिरस्कारपूर्ण था। पत्र में कहा गया है कि इन बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और अगर हम अब तक चुप रहे, तो हमारी चुप्पी को सर्वोच्च न्यायालय की संस्था के पूर्ण समर्पण के रूप में देखा जाएगा। इससे संवैधानिक अराजकता और कानूनी अराजकता भी पैदा होगी।”

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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