Friday, March 29, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘’आर पार’ में अमीश एंकर नहीं, एक सह-प्रतिभागी थे’, याचिका ख़ारिज

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सूफी-संत मोइनुद्दीन चिश्ती पर टिप्पणी के लिए पत्रकार अमीश देवगन के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया, क्योंकि तथ्यों को देखने से यह स्पष्ट है कि बहस में आरोपी अमीश देवगन केवल एक मेजबान या एंकर नहीं था, बल्कि उसमें भाग ले रहे लोगों के साथ एक समान सह-प्रतिभागी था। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने हालांकि देवगन के खिलाफ सभी दर्ज एफआईआर को अजमेर स्थानांतरित कर दिया। पीठ ने कहा कि अगर देवगन जांच में सहयोग करते रहेंगे तो 8 जुलाई की जांच और पत्रकार के खिलाफ कठोर कार्रवाई पर रोक का आदेश जारी रहेगा।

पीठ ने अपने निर्णय में याचिकाकर्ता द्वारा इस कार्यक्रम में की गई बहस की प्रतिलेख (ट्रांसस्क्रिप्ट) के प्रासंगिक भागों को विस्तार से उद्धृत किया है। फैसले में पीठ ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि बहस में आरोपी अमीश देवगन केवल एक मेजबान या एंकर नहीं था, बल्कि उसमें भाग ले रहे लोगों के साथ एक समान सह-प्रतिभागी था। पीठ ने कहा है कि प्रतिलेख, जिसमें आपत्तिजनक भाग भी शामिल है, वह ‘सामग्री’ का एक हिस्सा बनेगा, लेकिन किसी भी मूल्यांकन के लिए परीक्षण की आवश्यकता होगी और इस पर ‘संदर्भ’ के साथ-साथ इरादे और क्षति के प्रभाव पर भी विचार करना पड़ेगा।

पीठ ने कहा है कि अधीनस्थ अदालत इनका मूल्यांकन करेगी कि क्या अपराध बन रहा है या नहीं। इन पहलुओं पर मूल्यांकनात्मक निष्कर्ष तथ्यों पर आधारित होगा, जिसे पुलिस जांच से पता लगाया जा सकता है। वास्तव में, याचिकाकर्ता अपनी माफी पर निर्भर करता है, जो उत्तरदाताओं के अनुसार आरोपी के अपने कृत्यों को स्वीकार करने का संकेत है।

फैसले में कहा गया है कि सावधानी और गहराई से विचार करने के बाद पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि एफआईआर को खारिज करना और सभी प्रासंगिक पहलुओं में जांच को रोक दिया जाना उचित नहीं है। पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यात्मक पहलुओं पर हमारी टिप्पणियों से किसी भी तरह से जांच को प्रभावित नहीं होना  चाहिए। पुलिस निष्पक्ष रूप से अपनी बुद्धि का प्रयोग करेगी और सभी सामग्रियों और प्रासंगिक पहलुओं पर सही और वास्तविक तथ्यों का पता लगाएगी। जांच के बाद यदि इस मामले में आरोप-पत्र दायर किया जाता है, तो कोर्ट जमानत दिए जाने पर अपने विवेक का इस्तेमाल करेगा।

पीठ ने अर्णब गोस्वामी मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले से सहमति जताई, जिसमें कहा गया है कि पीठ मानती है कि मुंबई के एनएम जोशी मार्ग पुलिस स्टेशन में जांच के तहत एफआईआर को खत्म करने के उद्देश्य से न्यायालय के लिए अनुच्क्षेद 32 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करना अनुचित होगा। इस दृष्टिकोण को अपनाने में कोर्ट इस तथ्य से निर्देशित होती है कि याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चेक और बैलेंस सीआरपीसी के प्रावधानों से निर्देशित होती है।

बीते 15 जून को प्रसारित होने वाले अपने प्राइम टाइम शो में सूफी-संत मोइनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ की गई अपमानजनक टिप्पणी के आधार पर देवगन के खिलाफ राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना में सात एफआईआर दर्ज की गई हैं।

देवगन ने अपने शो ‘आर पार’ में पूजा स्थल के विशेष प्रावधान अधिनियम के संबंध में जनहित याचिका पर बहस की मेजबानी करते हुए, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, जिन्हें ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ जाना जाता है, एक ‘हमलावर’ और ‘लुटेरे’ के रूप में संदर्भित किया था। नतीजतन, देश भर में उनके खिलाफ कई पुलिस शिकायतें और एफआईआर दर्ज की गईं।

देवगन की याचिका अधिवक्ता विवेक जैन के माध्यम से दायर की गई है, जिसमें उन एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई है, जिनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 295 ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करना है), 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि और सद्भाव बिगाड़ने के लिए पूर्वाग्रही कार्य करने), 505 (जनता में शरारत करने के लिए बयानबाजी) और 34 (सामान्य उद्देश्य) के तहत आरोप लगाए गए हैं।

देवगन ने सूफी संत को लुटेरे के रूप में संदर्भित करने के लिए भी माफी मांगी थी और इसे अनजाने में त्रुटि कहा था। माफी का उनका ट्वीट था- “मेरी एक बहस में, मैंने अनजाने में खिलजी को चिश्ती के रूप में संदर्भित किया। मैं ईमानदारी से इस गंभीर त्रुटि के लिए माफी मांगता हूं और यह सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के अनुयायियों की नाराज़गी का कारण हो सकता है, जिनकी मैं श्रद्धा करता हूं। मैंने अतीत में उनकी दरगाह पर आशीर्वाद मांगा था। मुझे इस त्रुटि पर अफसोस है।”

पहली एफआईआर अजमेर में दर्ज की गई थी। बाद में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना में भी एफआईआर दर्ज की गई थी। पीठ ने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना समेत विभिन्न राज्यों में देवगन के खिलाफ दर्ज सभी प्राथमिकियों को राजस्थान के अजमेर में स्थानांतरित कर दिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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