पीएम केयर्स के औचित्य पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

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कोरोना संकट से बुरी तरह प्रभावित प्रवासी मजदूरों की सहायता की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने पिछले दिनों कहा था “हमारी सरकार की बुद्धिमता (विज्डम) को अपनी बुद्धिमत्ता से दबाने की कोई योजना नहीं। चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा था कि  नीतिगत निर्णय लेना “सरकार का विशेषाधिकार” है।

अब उच्चतम न्यायालय में प्रधानमन्त्री राहत कोष के रहते पीएम केयर्स फंड बनाने के औचित्य पर सवाल उठाया गया है। अब देखना है कि पीएम केयर्स फंड बनाने की केंद्र सरकार की बुद्धिमत्ता पर उच्चतम न्यायालय की बुद्धिमत्ता क्या कहती है, क्या इसमें सुसंगत कानूनों का पालन होना चाहिए या ये भी “सरकार का विशेषाधिकार” है।

उच्चतम न्यायालय कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए पीएम केयर्स फंड बनाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर सोमवार को सुनवाई करेगा। जनहित याचिका में अनुरोध किया गया है कि इस फंड की स्थापना के केंद्र के फैसले को रद्द कर दिया जाए। केंद्र ने 28 मार्च को इस कोष की स्थापना की थी। इसका मकसद मौजूदा कोरोना वायरस संकट जैसी किसी भी तरह की आपातकालीन स्थिति से निपटना और प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करना है। प्रधानमंत्री इस कोष के पदेन अध्यक्ष हैं और रक्षा, गृह तथा वित्त मंत्री इसके पदेन न्यासी (ट्रस्टी) हैं।

चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमएम शांतनगौडर की पीठ वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस जनहित याचिका की सुनवाई करेगी। यह याचिका वकील एम एल शर्मा ने दायर की है। जनहित याचिका में कहा गया है कि 28 मार्च को जब पीएम केयर्स फंड के संबंध में प्रेस रिलीज जारी हुई तभी इसके खिलाफ याचिका दायर करने की स्थिति पैदा हो गई।

यह याचिका वकील एमएल शर्मा ने दायर की है। जनहित याचिका में कहा गया है कि इस कदम का कारण 28 मार्च को उत्पन्न हुआ जब पीएम केयर्स फंड के संबंध में प्रेस विज्ञप्ति जारी हुई। याचिका में प्रधानमंत्री सहित कोष के सभी न्यासियों को पक्ष बनाया गया है। याचिका में यह अनुरोध भी किया गया है कि इस कोष में मिली राशि भारत की संचित निधि में अंतरित की जाए। इसके अलावा अदालत की निगरानी में एसआईटी (विशेष जांच दल) से कोष की स्थापना की जांच कराई जाए।

याचिका में प्रधानमंत्री सहित फंड के सभी न्यासियों को पक्ष बनाया गया है। याचिका में यह अनुरोध भी किया गया है कि इस कोष में मिली राशि भारत की संचित निधि में ट्रांसफर की जाए। इसके अलावा अदालत की निगरानी में एसआईटी (विशेष जांच दल) से कोष की स्थापना की जांच कराई जाए।

गौरतलब है कि इस नए कोष के गठन को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर और इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने मुखर होकर सवाल उठाया है कि जब पहले से ही प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष है तो फिर नया कोष पीएम केयर्स फंड बनाने की क्या जरूरत है? कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब पीएमएनआरएफ मे 3800 करोड़ रुपए बिना खर्च किए हुए हैं, तो पहले उन्हें उपयोग में लाया जाना चाहिए न कि नया कोष बनाकर लोगों से योगदान मांगा जाए।

कहा जा रहा है कि पीएमएनआरएफ के होते हुए किसी भी नए तरह के कोष के गठन की कोई आवश्यकता नहीं थी। जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी लोकप्रियता को कोरोना विरोधी अभियान से जोड़कर उसे पेश कर देने का सवाल है तो यह काम पीएमएनआरएफ के लिए भी अपील करके हो सकता था।पीएमएनआरएफ के अलावा दो अन्य कोष राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) हैं जिनका उपयोग भी किसी भी आपदा से लड़ने के लिए किया जाता है।

पीएमएनआरएफ के खर्चों का सीएजी ऑडिट होता है और उसका हिसाब किताब संसद में रखा जाता है और संसद से उसकी स्वीकृति लेनी होती है। जबकि पीएम केयर्स एक ट्रस्ट है जिसका सीएजी ऑडिट नहीं होगा और उसके हिसाब किताब को संसद में रखने की कोई वैधानिक आवश्यकता नहीं होगी।

इन सवालों के जवाब में सरकार की तरफ से दिए गए बयान में इन नए कोष के गठन के औचित्य को सही ठहराते हुए कहा गया है कि संकटकालीन अवस्था में चाहे वह प्राकृतिक हो या कोई और एक बेहद त्वरित और सामूहिक कार्यवाही की जरूरत होती है, जिससे पीड़ितों के कष्टों का निवारण हो सके, नुकसान की भरपाई हो सके और राहत कार्यों को तेज किया जा सके। बयान में कहा गया कि प्रधानमंत्री कार्यालय को सभी क्षेत्रों से सरकार को आर्थिक योगदान देने के लिए लगातार अनुरोध मिल रहे हैं जिससे सरकार इस आपात संकट से निबट सके।

गौरतलब है कि भारत में ट्रस्ट, इंडियन ट्रस्ट एक्ट, 1882 के तहत काम करते हैं। किसी भी धर्मार्थ ट्रस्ट के लिए यह जरूरी होता है कि उसकी एक ट्रस्ट डीड बने जिसमें इस बात का स्पष्ट जिक्र होता है कि वह किन उद्देश्यों के लिए बना है, उसकी संरचना क्या होगी और वह कौन-कौन से काम किस ढंग से करेगा। फिर इसका रजिस्ट्रेशन सब रजिस्ट्रार के यहां कराना होता है।

पीएम केयर्स फंड की ट्रस्ट डीड, बायलॉज और इसका रजिस्ट्रेशन कब हुआ है? ये जानकारियां सार्वजनिक नहीं की गई हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में मिलने वाले दान का लेखा जोखा सरकार इसकी आधिकारिक साइट पर भी डालते हैं, लेकिन पीएम केयर फंड जैसे कोषों में आने वाले पैसे का सरकार द्वारा कोई हिसाब नहीं दिया जाता।

पीएम केयर्स फंड ट्रस्ट के बारे में अब तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसमें प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, गृहमंत्री और वित्तमंत्री अपने पद पर होने के नाते शामिल हैं या अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं में। हालांकि, नाम पीएम केयर्स है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कम से कम प्रधानमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष हैं। बाकी लोगों के बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। नए ट्रस्ट के गठन पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इसके तहत तब काम शुरू हो पाएगा जब इसकी सारी व्यवस्था बनेगी। लेकिन प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के कामकाज की एक व्यवस्था बनी हुई थी और उसमें पर्याप्त धन पहले से ही था, इसलिए इसके जरिए काम करना अपेक्षाकृत आसान हो सकता था।

इसके अलावा पीएम केयर्स फंड की अभी अपनी कोई वेबसाइट भी नहीं है। साथ ही यह भी नहीं पता है कि इस ट्रस्ट का रजिस्ट्रेशन किस पते पर कराया गया है। पीएम केयर्स नाम के जिस कोष की स्थापना की है उसके बैंक खाते नंबर के अलावा कोई और जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है। यह भी नहीं पता है कि इसका संचालन कौन करेगा। इसमें कौन-कौन शामिल होगा। ऐसे में इस पीएम केयर्स में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठना स्वाभाविक है। दूसरा सवाल यह है कि जब प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में 38 सौ करोड़ रुपये पहले से ही मौजूद हैं तो फिर एक नए कोष की जरूरत क्यों पड़ी?

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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