Wednesday, April 24, 2024

तमिलनाडु में आज भी कायम है द्रमुक पार्टियों का वर्चस्व

नई दिल्ली। देश में बहुदलीय राजनीतिक प्रणाली है। चुनाव आयोग में इस समय सैकड़ों राजनीति दल पंजीकृत हैं। लेकिन देश की राजनीति में लंबे समय तक कांग्रेस का एकछत्र राज रहा। राष्ट्रीय राजनीति के अलावा अधिकांश राज्यों की सत्ता भी कांग्रेस के हाथों में रही। लेकिन उस दौर में भी कुछ राज्यों में कांग्रेस को क्षेत्रीय पार्टियों और क्षत्रपों से चुनौती मिलती रही। 2014 से देश की राजनीति में भाजपा का दबदबा कायम है। लेकिन कई राज्यों में आज भी क्षेत्रीय दल भाजपा और कांग्रेस के लिए चुनौती बने हैं।

दक्षिण के तमिलनाडु की बात करें तो यहां पर लंबे समय से द्रविड़ पार्टियों का वर्चस्व है। सत्तापक्ष और विपक्ष में डीएमके और अन्नाडीएमके ही रहती हैं। राज्य में जहां कांग्रेस का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है, वहीं बहुत कोशिश के बाद तमिलनाडु में भाजपा के पैर जम नहीं पा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तमिलनाडु का सत्ता समीकरण में कौन सा तत्व अहम है?

अभी हाल ही में इरोड पूर्व विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई। कांग्रेस औऱ डीएमके ने धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन (SPA) के तहत संयुक्त प्रत्याशी उतारा था। अन्नाद्रमुक को पराजय का सामना करना पड़ा था। जयलतिता की मौत के बाद अन्नाद्रमुक कमजोर हुआ है। लेकिन पार्टी की ताकत पूरी तरह समाप्त नही हुई है।

1973 में डिंडीगुल लोकसभा उपचुनाव जीत के बाद राज्य में अन्नाद्रमुक मुख्य राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी, तब से लेकर अब तक तमिलनाडु में दोनों द्रविड़ पार्टियों के बीच ही सत्ता का हस्तांतरण होता रहा है। 1977 से 2021 तक विधानसभा चुनावों में दोनों द्रविड़ पार्टियों को प्राप्त मतों को एकसाथ जोड़ा जाए तो यह कुल मत का 60 प्रतिशत होता है। 2016 और 2021 के मतों को मिलाया जाए तो यह 70 प्रतिशत से अधिक पहुंच जाता है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि वे पहले की अपेक्षा अधिक सीटों पर चुनाव लड़े। सिर्फ 1977 और 2006 में दोनों के मतों का योग 60 प्रतिशत से कम था।

पिछले 45 वर्षों में तमिलनाडु में द्रमुक पार्टियों के वर्चस्व को तोड़ने के लिए कई प्रयास हुए। 1977 में कांग्रेस को 17.51 प्रतिशत और जनता पार्टी को 16.66 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। लेकिन वे राज्य में अपना आधार नहीं बना पाए। 12 वर्ष बाद यानि 1989 में कांग्रेस ने राज्य में सत्ता पाने के लिए गंभीर कोशिश की, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी तमिलनाडु को दौरे पर गए, तब पार्टी को 27 सीट और 19.83 प्रतिशत मत मिले थे।

1996 में मरुमालार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (MDMK) ने सीपीएम और जनता दल से गठबंधन करके एक विकल्प के रूप में अपने को पेश किया। लेकिन एमडीएमके को उस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली, और सीपीएम और जनता को एक-एक सीट पर संतोष करना पड़ा। यही नहीं उस गठबंधन को मात्र 7.9 प्रतिशत वोट ही प्राप्त हुआ।

बाद में दो छोटे-छोटे प्रयास और हुए। जब भाजपा राज्य विधानसभा में उतरी, और पट्टालि मक्कल कांची- कांग्रेस (तिवारी) ने गठबंधन करके चुनावी मैदान में थे। लेकिन तब उन्हें 6.9 प्रतिशत वोट से ही संतोष करना पड़ा। तब राज्य में जयललिता के विरोध में वोट पड़े थे। और लगभग 16 फीसद वोट गैर द्रमुक पार्टियों की तरफ गए थे। दस वर्ष बाद देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (DMDK)ने अकेले चुनाव लड़ा और 8.38 प्रतिशत मत प्राप्त किया। उस समय लोगों के आकर्षण के केंद्र में आईआईटी के छात्र थे, जो लोक परित्राण पार्टी के समर्थन में प्रचार कर रहे थे, लोक परित्राण पार्टी 7 संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ी थी।

2016 में चार गठबंधन हुए। पीएमके, बीजेपी, पीपुल्स वेलफेयर फ्रन्ट और नाम तमिलार कांची। साथ चुनाव लड़ने के बावजूद 15 प्रतिशत वोट पा सके। 2021 में कई छोटे दलों ने अपने भाग्य को आजमाया। तब एक सर्वे में 55 प्रतिशत लोगों की राय थी कि दोनों द्रमुक पार्टियों का कोई मजबूत विकल्प होना चाहिए।

तमिलनाडु में कई राजनीतिक दलों ने अपने को डीएमके और अन्नाडीएमके के विकल्प के रूप में पेश किया। लेकिन यह अभियान बहुत दिनों तक नहीं चल सका।

जनचौक से जुड़े

1 COMMENT

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
सुनील कटियार
सुनील कटियार
Guest
1 year ago

निर्भीक पत्रकारिता

Latest Updates

Latest

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...

Related Articles

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...