ग्राउंड रिपोर्ट: कांशीराम आवास, सियासत के खेल में दरकने लगीं गरीबों की दीवारें

देवरिया। गरीबों के लिए पक्का मकान किसी बड़े सपने के सच होने जैसा ही होता है। अगर यह सपना साकार हो जाए तो उसके लिए एक बहुत बड़ी खुशी ही है, पर सियासत के खेल में इन गरीबों के छत कमजोर पड़ने लगे तो क्या कहेंगे। ऐसे हालात कमोबेश यूपी के सभी जिलों में कांशीराम आवास को लेकर है। सरकार बदलने के साथ ही कांशीराम आवास योजना भी मौजूदा सरकार के फाइलों से गायब हो गई।

लिहाजा समय के साथ मरम्मत और रखरखाव के बिना ये आवास खंडहर में तब्दील हो गए हैं। जहां रह रहे लोगों की जान जोखिम में है। यूं कहें कि अब गरीबों के पक्के मकान का भविष्य भी हमारी सियासतों के नजरिये से तय हो रहे हैं। यह हकीकत जानने जब जनचौक संवाददाता देवरिया जनपद मुख्यालय पर बने कांशीराम आवास के कैंपस में पहुंचा तो अव्यवस्था का आलम हर तरफ देखने को मिला। सरकारी उदासीना की यह तस्वीर साफ नजर आ रही है।

मेहड़ा पूरवा के मेहड़ा खास में 168, मेहड़ा बाहर में 660, पुलिस लाइंस के समीप 264 आवास बने हैं। यहां यह देखने को मिला कि कांशीराम आवास योजना के तहत बने दो सौ से ज्यादा फ्लैटों पर ताला लगा है। पक्के मकान की उम्मीद के साथ आये ये शहरवासी मकान के जर्जर होने के चलते इन घरों को छोड़कर दूसरे स्थानों पर चले गए हैं। हलवाई का काम करने वाले जगदीश सोनकर कहते हैं कि वर्ष 2011 में आवास की चाभी मिली।

उस समय प्रदेश में बसपा की सरकार थी। आवासीय परिसर की सफाई से लेकर रख रखाव के प्रति अधिकारियों की तत्परता खूब देखने को मिलती थी। प्रदेश में बसपा सरकार बदलने के साथ ही आवास को लेकर सरकारी उदासीनता बढ़ती गई। अब तो हाल यह है कि यहां रहना जान को जोखिम में डालने के समान है। यहां रह रहे रामअवतार सफाईकर्मी हैं, जिनकी नगरपालिका में तैनाती है।

कांशीराम आवास में कूड़े का अंबार

वे कहते हैं कि परिवार सहित यहां रहते हैं। सफाई को लेकर विभाग काफी उदासीन है। लिहाजा परिसर में जगह-जगह कूड़े का अंबार लगा हुआ है। बिहार के सहरसा जिले के मूल निवासी दुलारचंद शर्मा लंबे समय से देवरिया में रहते हैं। आवास आवंटन के लिए निर्धारित सभी मानकों को पूरा करने पर इन्हें भी यहां फ्लैट मिला है। दुलारचंद कहते हैं कि रोजाना कूड़ा चुनकर बेचना और उनसे होनेवाले आय से परिवार का खर्च चलाता हूं।

अब यह मकान रहने लायक नहीं रह गया है। कुछ ऐसा ही दर्द लालबहादुर सिंह का भी है। लाल बहादुर मजदूरी करते हैं। वे कहते हैं कि कांशीराम आवास के कुछ कदम दूरी पर ही रेलवे लाइन है। जिनसे होकर गोरखपुर-छपरा रेलखण्ड की ट्रेंने गुजरती हैं। जिसमें बड़ी संख्या में मालगाड़ियां भी रहती हैं। इनके गुजरने से एक कंपन सी होती है। जिससे हमेशा एक बड़े हादसे का भय सताता रहता है। परिसर में कई जगह पर जलभराव भी है। नलकूप खराब होने के कारण पेयजल आपूर्ति बाधित रहती है।

भवनों के निर्माण में अनियमितता की चल रही जांच

कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना के तहत बने आवासों की जांच का मामला काफी पुराना है। इसके निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी के आरोप लगे थे। इस क्रम में चल रही जांच अभी भी अधूरी है। तत्कालीन डीएम ने विधायक की पहल पर जर्जर हो चुके आवासों की जांच करने के निर्देश दिए थे। उ.प्र. आवास एवं विकास परिषद निर्माण खंड गोरखपुर-एक की तरफ से शहर के पुलिस लाइंस, मेहड़ा खास नगर अंदर, मेहड़ा में वर्ष 2009-10 में कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना के तहत आवासों का निर्माण कराया गया।

वर्तमान में इन आवासों की हालत दयनीय है। नगर पालिका परिषद ने इन आवासों की कभी सुध नहीं ली। मरम्मत कार्य न होने से लोगों की जान आफत में है। विधायक डॉ. शलभ मणि त्रिपाठी ने इन आवासों के जर्जर होने के बारे में तत्कालीन डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह को अवगत कराया था। विधायक ने कहा था कि आवास अत्यंत जर्जर हो चुके हैं। कभी भी दुर्घटना हो सकती है।

कांशीराम आवास के निवासी लाल बहादुर सिंह

उनकी शिकायत को संज्ञान में लेकर तत्कालीन डीएम ने अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग निर्माण खंड की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की, जिसमें अधिशासी अभियंता आरईडी और पीओ डूडा सदस्य हैं। जांच समिति ने भूमि परीक्षण, भूकंपरोधी और बेस ड्राइंग आदि अभिलेख उपलब्ध कराने के लिए आवास एवं विकास परिषद गोरखपुर अधिशासी अभियंता को पत्र लिखा, लेकिन अभी तक अभिलेख उपलब्ध नहीं कराए गए।

जिसके कारण जांच लटकी हुई है। डूडा के पीओ विनोद कुमार मिश्र कहते हैं कि पूर्व के डीएम ने जांच टीम गठित की है। कार्यदायी संस्था आवास एवं विकास परिषद से अभिलेख मांगे गए थे, जो अब उपलब्ध हो गए हैं। जल्द ही जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।

सियासत बदलने के साथ ही बदलती रही आवास योजना

तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने कांशीराम शहरी आवास योजना की शुरूआत की थी। इनके सत्ता से बेदखल होने और अखिलेश यादव की सपा सरकार के गठन के साथ ही कांशीराम आवास योजना पर विराम लग गया। अखिलेश सरकार के गठन के साथ ही समग्र ग्राम विकास विभाग के शासनादेश दिनांक 17 मई 2012 के द्वारा डॉ. राम मनोहर लोहिया समग्र ग्राम विकास योजना सम्पूर्ण प्रदेश में लागू की गयी।

इस आवास योजना का लाभ लोहिया गांव में चयनित पंचायतों को ही मिलता था। लोहिया ग्रामीण आवास योजना के तहत आवासहीन गरीबों को दो लाख 75 हजार रुपए दिए जाते थे। इससे पहले चयनित लाभार्थियों को एक लाख 60 हजार रुपए की धनराशि दी जाती थी। साथ ही घर बनाने के लिए 21.11 वर्ग मीटर जमीन भी दी जाती थी। इसके साथ ही कांशीराम आवास योजना सरकार की फाइलों से गायब हो गई। अखिलेश सरकार के जाने के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सरकार गठन के साथ ही मुख्यमंत्री शहरी आवास योजना और मुख्यमंत्री ग्रामीण आवास योजना की शुरूआत हुई।

जर्जर हालत में कांशीराम आवास

इसके साथ ही पूर्व के सरकारों के कार्यकाल की आवास योजना बंद सी हो गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा यूपी ग्रामीण आवास योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के अनुसार यूपी सरकार द्वारा बेसहारा लोगों को घर उपलब्ध कराये जाते हैं। इस योजना की शुरुआत 21 अप्रैल 2017 को की गई थी। यूपी सरकार वर्ष 2023 के लिए 25.54 लाख घर उपलब्ध कराएगी। अब तक इस योजना के लिए 7369 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं।

इन सरकारी आंकड़ों से इतर जमीनी हकीकत यह है कि शहरी क्षेत्र में प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना के लाभ के इंतजार में लंबी कतार है। जिनमें ऐसे पात्र परिवारों की बड़ी संख्या है, जिनके मुताबिक कई बार आवेदन ऑनलाइन भरने के बाद भी योजना का लाभ नहीं मिला। विभागीय कर्मचारी कुछ महीनों बाद कोई अभिलेख न होने की बात कह कर पुनः आवेदन कराते हैं। अब तो लोगों का यह भी कहना है कि लोकसभा चुनाव करीब आने पर एक बार फिर आवेदन जमा कराये जायेंगे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आवास योजना भी सियासी राजनीति से जुड़ गई है।

(यूपी के देवरिया से जितेंद्र उपाध्याय की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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