चंदौली, उत्तर प्रदेश। फर्ज कीजिये, अभी आपके घर की लाइट चली जाए और दो घंटे बाद आए? यदि थोड़े ही देर बाद फिर से बिजली गुल हो जाए। लाख कोशिशों के बावजूद इस बार गई तो कई महीनों नहीं आये तो आपका क्या हाल होने वाला है? इसका अंदाजा आप कल्पना कर के लगा सकते हैं, यह कोई मुश्किल काम नहीं। स्मार्टफोन, लैपटॉप, मोबाइल, समरसेबल, सिंचाई पंप, बल्ब की रोशनी में किचन, घर, ऑफिस के काम और उजाले की आवश्यकता, घर-आंगन और खलिहान में खेलते-कूदते नौनिहालों की सुरक्षा, खेत और फसलों की सिंचाई की व्यवस्था के साथ मवेशियों के चारे और रख-रखाव का ध्यान बगैर बिजली के कैसे संभव हो सकता है?
तब आप सोचिये कि अपने घर-आंगन, खलिहान, ऑफिस और पढ़ने के टेबल पर बल्ब से फूटती दूधिया रोशनी से नहाते कमरे\किताबों को देखे एक लंबा वक्त हो चला है। पड़ोसी गांवों के बाहरी मकानों-भवनों के छज्जे-दीवार पर रोशनी टिमटिमाते लट्टू सरीखे बल्ब एहसास कराते हैं कि अंधेरे की दुनिया बेहतर है या रोशनी की दुनिया। अंधेरे में उजाले की लौ जलाए इटवा राजस्व ग्रामसभा के 200 से अधिक नागरिक सात दशक से अधिक समय से बिजली की बाट जोह रहे हैं।
ग्रामीण अपनी बदनसीबी का जिम्मेदार बिजली विभाग, जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधि और नेताओं को ठहराते हैं। यह उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे चंदौली ज़िले में स्थित इटवा गांव है। यह गांव चंदौली जिला मुख्यालय से बमुश्किल 22 किलोमीटर दूर स्थित है।
ग्रामसभा के सदस्य पैंसठ वर्षीय रामू राजभर “जनचौक” से कहते हैं “काफी जद्दोजद के बाद कुछ महीने पहले बिजली विभाग के लोग बिजली के खंभे लगाने के लिए आये लेकिन कुछ लोगों ने यहां खंभा नहीं गड़ने दिया। हम लोगों की बिजली की दूधिया रोशनी देखने की हसरत अधूरी ही रह गई। महज चंद मीटर दूरी पर जब लोग आसपास के गांवों में रोशनी देखते हैं तो मन मसोस कर रह जाते हैं। केरोसिन का वितरण बंद होने से हमारी दुश्वारी और बढ़ गई है। बिजली के इंतजार में अब तो मैं बूढ़ा हो चुका हूं। यहां नौ लोगों को प्रधानमंत्री आवास मिला है, लेकिन बिजली-पानी की कमी के चलते अधूरा पड़ा हुआ है।”
सबसे की फरियाद, फिर भी अंधियारा
साठ वर्षीय मंगरी देवी को अंधेरा कभी रास नहीं आया। अंधरे के खिलाफ उन्होंने चुनाव के दिनों में वोट मांगने आये कई प्रत्याशियों से खूब गुहार लगाई। जिसमें ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य, विधायक और सांसद के प्रचारक शामिल रहे। चुनाव बीता, सभी हारे-जीते प्रत्याशी अपने वादे\मुद्दे भूल बैठे। लेकिन, मंगरी देवी को अगले चुनाव का इंतजार है ताकि बिजली की समस्या को उठाने का मौका मिले।
वह बताती हैं “गांव के लोग आदम काल में जीवन जीने को मजबूर हैं। यहां सबसे बड़ी और पहली समस्या बिजली की है, जिसके अभाव में लोग विकास से बेहद पीछे हैं। जिनके पास खेत है, वे तो न आधुनिक ढंग से खेती कर पाते हैं और न ही दुनिया के दूसरे क्षेत्रों से जुड़ पाते हैं। हमारे गांव के सभी लोगों ने चिमनी और दीये की रोशनी में ही जिंदगी गुजार दी है। हमारे लिए उजाले का मतलब सिर्फ दोपहर है, इसके बाद सब कुछ अंधियारा है।”
बिजली महकमे की लापरवाही
आजादी के 75 साल पूरा होने के मौके पर एक तरफ जहां देश अमृत महोत्सव मना रहा है, वहीं उत्तर प्रदेश का एक ऐसा गांव है, जो अभी भी मूलभूत सुविधाओं की बाट जोह रहा है। इस गांव की तस्वीरों को देखकर यही लगेगा, जैसे ये तस्वीरें आजादी के पहले की हैं। लेकिन सच तो ये है कि ये तस्वीरें आजादी के 75 साल पूरे होने के बाद की हैं। इस गांव की तकरीबन 300 से अधिक आबादी बिजली, पक्की सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं से महरूम है। गांव-गांव बिजली पहुंचाने का सरकारी दावा भले ही हो, मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
पढ़ाई-लिखाई अधूरी
किसी तरह से नौवीं पास कर दसवीं में पहुंचे सोलह वर्षीय सतीश राय की पढ़ाई लगभग चौपट हो चुकी है। राय कहते हैं “रात में टार्चनुमा डब्बे को जलाकर पढ़ने की कोशिश करता हूं, जो आधे-एक घंटे के बाद बुझ जाता है। अब तक की पढ़ाई जैसे-तैसे हो गई, लेकिन अब बोर्ड का इम्तिहान देना है। दिन में काम से समय ही नहीं मिल पाता है, रात में बिजली के बिना पढ़ाई अधूरी रह जाती है।” बहरहाल, यह समस्या सतीश तक नहीं सीमित है। बस्ती के पचास से अधिक छात्र-छात्राओं की पढ़ाई बिजली के अभाव में बुरी तरह से प्रभावित हो रही है।
ग्रामीणों में आक्रोश
इंडिया के डेल्टा रैकिंग में शामिल और यूपी-बिहार की सीमा से सटे यूपी के अति पिछड़े जनपद चंदौली के राजस्व गांव इटवा के पट्टी में नट-राजभर बस्ती इसकी नजीर है। यहां अब तक बिजली की आपूर्ति बहाल नहीं हो सकी है। कुछ साल पहले ही विधानसभा का चुनावी समर बीता, और कुछ ही महीनों बाद लोकसभा 2024 का आम चुनाव सिर पर है। हर तरफ विकास के दावे हो रहे हैं।
सत्ता में रह चुके सभी अपनी-अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं, मगर यूपी के इस गांव के लोगों के सामने हर दावा खोखला है। यह वह गांव है, जहां आज तक बिजली की चमक नहीं पहुंच पाई है। नेताओं और जिला प्रशासन से कई बार शिकायत और गुहार की गई। लेकिन किसी ने भी गांव वालों की इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया। जिसके चलते ग्रामीणों में गुस्सा और आक्रोश है।
आए दिन ख़राब हो जाती है सोलर लाइट
इटवा के खेत-सिवान में बसे नट बस्ती में तकरीबन 500 वर्ग मीटर में 40 परिवार रहते हैं। स्थानीय समुंद्रा देवी कहती हैं “बिजली के नहीं होने से बस्ती में दो-सोलर लाइट लगी है, जो रात में पानी भरने, उजाला करने और गृहस्थी से जुड़े कामों के लिए कुछ रोशनी की व्यवस्था हो पाती है। लेकिन, यह सोलर लाइट भी आए दिन ख़राब हो जाते हैं।
ग्रामीण गर्मीं के दिनों में कम रोशनी मिलने पर भी काम चला लेते हैं, लेकिन सब्जी और फसलों की सिंचाई के लिए झेल जाते हैं। सोलर लाइट के जरिए मोबाइल चार्ज करते हैं। आसमान में बदली होने और बैटरी चार्ज न होने की स्थिति में लाइट की दिक्कत होती है। अब देखना यह कि बिजली विभाग के अधिकारी ग्रामीणों की विद्युतीकरण कराने की मांग कब पूरा करते हैं।”
सीएम तक लगाई गुहार
स्थानीय लोगों की ओर से कई बार लिखित, मौखिक और मुख्यमंत्री पोर्टल पर बिजली की सुविधा की मांग के लिए आवेदन भी किया गया, लेकिन किसी ने इनके जीवन को रोशन करने की जहमत नहीं उठाई। जबकि, केंद्र सरकार की ओर से प्रधानमंत्री ‘सहज बिजली हर घर योजना’, ‘दीन दयाल योजना’ और ‘सौभाग्य योजना’ विशेष रूप से गरीबों को बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए 25 सितंबर 2017 से शुरू की गई थी।
31 मार्च 2019 तक इस योजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आज तक इस बस्ती में बिजली की दूधिया रोशनी नहीं पहुंच सकी है। बिजली नहीं मिल पाने के चलते नागरिक शिक्षा, डिजिटल तकनीक और सिंचाई की सुविधा आदि से महरूम हैं। ग्रामीणों ने बताया कि अंधेरे के चलते अब तक लगभग आधा दर्जन लोग सर्प दंश का शिकार भी हो चुके हैं, जिसमें से एक ही परिवार के दो लोगों की मौत हो चुकी है।
नहीं होती कोई सुनवाई
प्रदेश में चाहे बसपा की सरकार रही हो या सपा और भाजपा की, किसी भी सरकार में इस गांव तक विकास की किरण नहीं पहुंच सकी। गांव के जोगी, रामू, सतीश, छोटू, मंगरी, रीता, सोनम, समुंद्रा और शिवा सहित अन्य ग्रामीणों का कहना है कि कई बार क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और बिजली विभाग के अधिकारियों को गांव में बिजली की समस्या के बारे में बताया गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। नतीजन, ग्रामीण अंधरे के साये में जीने को मजबूर हैं।
बारिश के दिनों में हथेली पर जान
ग्रामीण मंगरी ने बताया कि “जिला मुख्यालय से हमारा गांव बमुश्किल 25-30 किमी दूर है। इसके बाद भी हम लोग रोजाना सैकड़ों दुश्वारियां झेल रहे हैं। किसी को हमारी फ़िक्र नहीं है। गांव के लोग हर छोटे-बड़े कामों के लिए पड़ोसी गांवों पर निर्भर हैं। चाहे गेंहू पिसवाना हो, खेती-किसानी, रोजगार और दवा की जरूरतें हो या मोबाइल को चार्ज करने जैसी जरूरत, सब चीजों के लिए परेशान होना पड़ता है। वोट के समय नेता आते हैं, खूब वादे करते हैं। चुनाव खत्म होते ही हम लोग अपने हाथ-पैर पर जीते हैं। कोई खोज खबर लेने नहीं आता है।”
मंगरी आगे कहते हैं कि “हम लोगों का कुनबा दिन में ही खाना बनाने, पानी भरने, सामान सहेजने और दूसरे कामों को निबटाने में जुटे रहते हैं। कमाने-खाने कहीं भी गए होते हैं, जल्दी-जल्दी भागकर घर पहुंचते हैं और दिन की रोशनी में ही सभी काम करने की कोशिश करते हैं। सबसे अधिक परेशानी तो रात के समय में होती है। नट-राजभर बस्ती गांव से दूर खेतों में होने की वजह से रात के समय जहरीले सांप, करैत, गेहुंवन, धामन, बिच्छू, छगुना और सियार आदि जंतुओं का खतरा बना रहता है। बारिश के दिनों में रात के अंधेरे में हर साल किसी न किसी को सांप डस लेते हैं। हम लोग जान हथेली पर रखकर जीते हैं।”
जी का जंजाल बना कच्चा रास्ता
बारिश के दिनों की मुश्किलों को याद कर छोटू राजभर बताते हैं कि “पिछले साल बारिश हो रही थी। खेतों में पानी भरा हुआ था। काली रात थी, लगभग ग्यारह बज रहे थे। आसमान में काले मेघ गरज के साथ बरस रहे थे। तभी पता चला कि नट बस्ती में एक लड़के को सांप ने डस लिया है। पड़ोसी होने के नाते मैंने जल्दी-जल्दी बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए जैसे ही गाड़ी निकाली खराब और कच्चा रास्ता होने की वजह से गाड़ी कीचड़ में फंस गई। गाड़ी को कीचड़ से निकालने में आधा घंटा बीत गया। सर्पदंश केस में अधिक देरी अच्छी बात नहीं। मैंने फिर गाड़ी को छोड़ दिया और बच्चे को बाइक से डॉक्टर के पास ले गया। गनीमत रही कि इलाज के बाद बच्चे की जान बच गई।”
‘सभी को बस हमारा वोट चाहिए’
छोटू आगे कहते हैं “हम लोगों के लिए ऐसी घटनाएं बहुत आम हैं। मेरी उम्र तीस साल हो चुकी है, उसके पहले से ही सड़क ख़राब है। मिट्टी की सड़क पर बारिश के दिनों में पैदल चलने में बहुत दिक्कत होती है। कोई क्षेत्र पंचायत सदस्य है, कोई प्रधान है, जिला पंचायत सदस्य है, प्रमुख है और कोई विधायक है, सभी को बस हम लोगों का वोट चाहिए। हम लोग एक उम्मीद में इन्हें वोट देते हैं, लेकिन हमारा हाल दिन-रात यहां ठहरकर आप देख लीजिये। बिजली नहीं होने से खेती में भी दिक्कत होती है। कुएं से बाल्टी से पानी निकालकर सब्जी आदि की सिंचाई कर रहे हैं। पानी के अभाव में उड़द और मूंग की फसल सूख गई। हमारी जिला प्रशासन से मांग है, जल्द से जल्द बिजली आपूर्ति और पक्की सड़क बनाई जाए।”
उजड़ गया परिवार
प्रेमा का परिवार एक हादसे के बाद लगभग बिखर सा गया है। वह अपने परिवार का किसी तरह से भरण-पोषण कर रही हैं। उनका कहना है कि “मेरे ससुर और जेठ को सांप ने डस लिया और दोनों की अकाल मृत्यु हो गई। परिवार के कमाऊ लोगों के चले जाने से हम लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। यह सब बिजली नहीं होने के कारण हुआ है। बिजली रहती और उजाला होता तो शायद दोनों लोग आज भी हम लोगों के बीच होते। बिजली नहीं होने से राते के अंधेरे में ज़हरीले जंतुओं का भय बना रहता है। सरकार से हमारी मांग है कि बस्ती में बिजली आपूर्ति बहाल की जाए।”
कई परिवार कर चुके पलायन
राजस्व ग्राम इटवा के ग्राम प्रधान सिद्धार्थ कुमार मौर्य ने जनचौक को बताया कि “आजादी के बाद से ये लोग अंधेरे में हैं। रात में रोशनी के नाम पर महज दो सोलर लाइट लगी हुई है। अव्यवस्था के चलते कई परिवार पलायन भी कर चुका है, जो बचे हैं, उनका जीवन बहुत कठिन है। सकलडीहा और चंदौली के एक्सीएन को आवेदन देकर बिजली पहुंचाने की गुहार लगाई गई है। प्रशासनिक और बिजली विभाग के अधिकारी ग्रामीणों की दिक्कतों को बहुत हल्के में ले रहे हैं। जिससे अब तक सुनवाई नहीं हो सकी है। अधिकारियों के मनमाने रवैये से परेशान होकर हम लोगों ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर भी शिकायत की है।”
क्या कहते हैं अधिकारी?
बिजली विभाग सकलडीहा एसडीओ संजय कुमार ने “जनचौक” से बातचीत में कहा कि “बिजली यदि नहीं पहुंची है तो जल्दी प्रयास कर बिजली पहुंचाने का काम विभाग की ओर से किया जाएगा। ग्रामीण तत्काल बिजली लेने चाहते हैं तो डिपॉजिट जमा कर बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन करें। पहले जो बिजलीकरण हुई है, यदि इसमें 40 मीटर से अधिक दूरी होगी तो एक नई योजना सौभाग्य चल रही है, इसमें इनको चयनित कराया जाएगा।”
‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ के अलावा ‘सौभाग्य योजना’ विशेष रूप से गरीबों को बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए 25 सितंबर 2017 से शुरू की गई है। 21 मार्च 2019 तक इस योजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। ऐसे में साल 2023 आधा गुजरने को है और इटवा की बस्ती में बिजली के नहीं पहुंचने से कई सवाल उठ रहे हैं।
(उत्तर प्रदेश के चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)