39 वर्षों के बाद जौनामोड़ पर लगी तिलका मांझी की प्रतिमा

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बोकारो। बोकारो जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर जौनामोड़ चौक पर 11 फरवरी, 2023 को तिलका मांझी की प्रतिमा 39 वर्षों के संघर्ष के बाद स्थापित हो गया। लेकिन प्रतिमा स्थापित करने लिए 11 फरवरी, 1984 से संघर्ष करने वाले चुन्नू मांझी के जीवन काल में यह नहीं हो सका। उनके मौत के बाद उनके सुपुत्र करमचंद मांझी ने अपने पिता के संघर्ष को आगे बढ़ाया और उनके सपने को साकार किया।

बोकारो जिले का जैनामोड़ 4-5 दशक पहले एक मोड़ के रूप में जाना जाता था, जहां से देश के हर छोटे बड़े शहरों के लिए रास्ते निकलते हैं। यह वही जैनामोड़ है जहां कामरेड महेंद्र सिंह को वामपंथी समझ की क्रांतिकारी जमीन हासिल हुई। क्योंकि यहीं उनका ननिहाल था, जहां रहते हुए उनका तत्कालीन भाकपा माले (लिबरेशन) के एक साथी कुमार मुक्ति मोहन से परिचय हुआ था। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत इस छोटी सी जगह से हुई थी।

करमचंद मांझी चौक पर प्रतिमा के साथ

उसी छोटी सी जगह के निवासी चुन्नू मांझी ने (अब स्वर्गीय) 39 वर्षों पहले 11 फरवरी 1984 से जैनामोड़ चौक पर बाबा तिलका मांझी की तस्वीर रखकर उनकी जयंती मनाना शुरू किया और चौक का नामकरण बाबा तिलका मांझी चौक रखा। यह अलग बात है कि राजनीतिक व सामाजिक स्तर से इस चौक पर अन्य किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया, जिस वजह से यह चौक जैनामोड़ चौक के नाम से ही लोगों के बीच जाना जाता रहा। यहां तक कि अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर आन्दोलित रहे और सांसद रहे शिबू सोरेन ने भी इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। जबकि चौक के बगल में ही उनके छोटे भाई रामू सोरेन का आवास और वहीं पार्टी कार्यालय भी था, और गुरुजी यानी शिबू सोरेन का यहां बराबर आना जाना होता था।

अपने परिवार के साथ करमचंद मांझी

चुन्नू मांझी के गुजरने के बाद उनका पुत्र करमचंद मांझी ने अपने पिता के विरासत को संभाला और प्रत्येक 11 फरवरी को चौक पर पूजा अर्चना के बाद तिलका मांझी की जयंती मनाते रहे। धीरे-धीरे करमचंद मांझी के साथ क्षेत्र के संथाल समुदाय के साथ साथ अन्य लोग भी जुड़ते लग गए। जिनमें वे लोग भी थे जिन्होंने शिबू सोरेन को सार्वजनिक जीवन में लाया था। जिसमें मुख्य रूप से बालीडीह निवासी शिक्षक कार्तिक मांझी थे। जो अब इस दुनिया में नहीं रहे।

आगे बढ़ने से पहले बता दें कि नवंबर 1957 को शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी की हत्या के बाद शिबू सोरेन तथा उनके बड़े भाई राजाराम मांझी जो गोला स्थित एक आवासीय हाई स्कूल में क्रमशः 9 वीं एवं 11 वीं कक्षा में पढ़ रहे थे, उनकी पढ़ाई छूट गई।

इतना ही नहीं पारिवारिक स्थिति काफी बिगड़ गई। शिबू सोरेन अपने बड़े भाई राजाराम के साथ खेती-बाड़ी करने लगे। शिबू सोरेन से छोटे तीन भाई थे। इसी बीच 24 अक्टूबर, 1965 को तत्कालीन हजारीबाग जिले के बालीडीह (वर्तमान बोकारो जिला) में संथाल नवयुवक संघ का गठन हुआ, जिसका संयोजक कार्तिक मांझी को बनाया गया और कार्यकारिणी में शिबू सोरेन सहित गोवर्धन मांझी, तुलसी मांझी, दुर्गा प्रसाद मांझी, जीतू मांझी, हरिनाथ मांझी सहित 45 आदिवासी संथाल सदस्य बनाए गए।

31 दिसंबर, 1965 को नवयुवक संघ द्वारा एक आमसभा जैनामोड़ (बरगाछ) के सामने हुई। उक्त आमसभा में संथाल नवयुवक संघ को निरस्त करके ‘संथाल सुधार समिति’ का गठन किया गया। जिसमें राजा कामाख्या नारायण की स्वतंत्र पार्टी के जरीडीह विधायक रामेश्वर मांझी को अध्यक्ष तथा शिवचरण लाल मांझी यानी शिबू सोरेन को महासचिव बनाया गया। कार्तिक मांझी कोषाध्यक्ष बनाए गए।

इस प्रकार सामाजिक संगठन के बहाने शिबू सोरेन का उदय संथाल समाज के बीच हुआ और सार्वजनिक जीवन-यात्रा में शिबू ने प्रवेश किया। चूंकि संथाल सुधार समिति से केवल संथाल समाज का बोध हो रहा था। अतः पूरे आदिवासी समुदाय को एक साथ लेकर चलने की कवायद के लिए 1966 के अप्रैल में ‘संथाल सुधार समिति’ का नामकरण ‘आदिवासी सुधार समिति’ कर दिया गया। 1968 में शिबू सोरेन ने मुखिया का चुनाव लड़ा, मगर हार गए। 1969 में जरीडीह विधानसभा (जिसके अंतर्गत जैनामोड़ आता था) से भी किस्मत आजमाई, मगर पराभव ही हाथ लगा।

इस प्रकार कहा जाए कि सार्वजनिक जीवन यात्रा ने बाद में शिबू सोरेन को दिसोम गुरु बना दिया और वे गुरुजी भी इनके नाम में जुड़ गया। कालान्तर में जैनामोड़ में आवास और पार्टी कार्यालय बनाया और यहां इनकी उपस्थिति बनी रही। बावजूद कभी इनका ध्यान जैनामोड़ चौक पर नहीं गया कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहला विद्रोही तिलका मांझी को लेकर यहां कोई हलचल हो रही है। जबकि इसी चौक से उन्होंने दर्जनों बार पार्टी के कार्यक्रमों को संबोधित भी करते रहे थे।

रामा मांझी जो हमेशा तीर धनुष के साथ रहते हैं

करमचंद मांझी बताते हैं कि उनके पिता चुन्नू मांझी द्वारा 1984 से लेकर 2000 तक प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तिलका मांझी की जैनामोड़ के मुख्य चौक पर आदिवासी परम्परानुसार पूजा-अर्चना कर जयंती मनायी जाती रही। धीर धीरे क्षेत्र के अन्य संताल लोग इस कार्यक्रम से जुड़ते गए। साथ ही चौक का नामकरण तिलका मांझी चौक का किया गया।

करमचंद मांझी ने बताया पिता की दी जिम्मेदारी के तहत वे अभी तक प्रत्येक वर्ष 11 फरवरी को उनकी जयंती के अवसर पर पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। जिसका परिणाम यह रहा कि क्षेत्र के राजनीतिक व सामाजिक लोगों द्वारा अब जाकर तिलका मांझी चौक जैनामोड़ में पर एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसका अनावरण झारखंड की महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा मंत्री जोबा मांझी ने की। वे कहते हैं वर्षों बाद पिताजी चुन्नू मांझी का सपना पूरा हो रहा है। जिसको लेकर हमारा पूरा परिवार उत्साहित है।

बताते चलें कि चुन्नू मांझी और उनके पुत्र करमचंद मांझी की तिलका मांझी के प्रति आस्था ने रंग लाया और गत 11 फरवरी, 2023 को चौक पर तिलका मांझी की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई। वैसे उक्त अनावरण कार्यक्रम शिबू सोरेन के हाथों द्वारा किया जाना तय था। लेकिन अचानक उनकी तबीयत बिगड़ जाने से उन्हें मेदांता में भर्ती करना पड़ा और उनकी जगह जोबा मांझी द्वारा अनावरण किया गया।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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