नोटः (इस खबर के प्रकाशित होने तक यह भी खबर आ रही है कि विनेश फोगाट को अधिक वजन होने की वजह से ‘डिस्क्वालिफाई’ कर दिया गया है। निश्चित ही यह बेहद चिंताजनक बात है। खेल में पदक मिलना एक महत्पूर्ण पक्ष है। लेकिन, विनेश की जीत पर कोई संदेह नहीं है। उन्होंने निश्चित ही अपने खेल में जीत दर्ज किया है।)
प्री-क्वार्टर फाइनल में विनेश का मुकाबला टोकियो ओलम्पिक में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली विश्व की मजबूत खिलाड़ी माने जानी वाली युई सुसाकी से था। कहा जाता है कि उन्होंने कभी हार नहीं देखी। विनेश ने उन्हें हरा दिया। यह जीत 3-2 से थी। यह जीत पेरिस में चल रहे ओलम्पिक में एक सनसनी की तरह थी। उन्होंने एक दिन में तीन जीत हासिल किया।
सुसाकी के साथ हुई भिडंत में उन्होंने पहली जीत दर्ज की। इसके बाद वह यूक्रेन की ओकसाना लिवाच के मुकाबले उतरीं और उन्हें 7-5 से हराया। फिर क्यूबा की पहलवान गुजमान लोपेजी को 5-0 से हराकर सेमीफाइनल में अपनी जीत को मुकम्मल कर लिया। अब स्वर्ण के लिए मुकाबला अमेरीका की सारा एन हिल्डब्रांट से होना है। यह हैरत में डालने वाली उपलब्धि है।
भारत में, जहां खेल से अधिक पदक देखा जाता है, विनेश की तकनीक से अधिक उनकी जीत पर नजर गई। मुझे नहीं मालूम है कि प्रधानमंत्री मोदी ने विनेश को फोन पर बात किया या नहीं, लेकिन सोशल मीडिया ने उन्हें जरूर सम्मान से नवाजा है।
विनेश का खेल में उतरना उतना आसान नहीं था। यह उन खिलाड़ियों में से हैं, जो जाट समाज में तो एक नये तरह की रोशनी लेकर आईं ही, देश में भी प्रेरणास्त्रोत बन गईं।
विनेश की कुश्ती का सफर इतना आसान नहीं रहा है। 2016 में रियो ओलम्पिक में उन्होंने जिस दांव को चला उसमें उनका पैर बुरी तरह जख्मी हो गया था। फिर उन्होंने 2017 में दमदार वापसी की और 2019 तक लगातार पदक जीतती रहीं। 2020 में टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी के दौरान एक फिर पैरों की चोट का दर्द वापस आ गया।
लेकिन वह जिन सुविधाओं की मांग कर रही थीं, वह उन्हें नहीं दिया गया। वह इस ओलम्पिक में हार गईं। उस समय इंडियन रेशलिंग फेडरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने उन्हें ‘खोटा सिक्का’ कहा था। जबकि वह एशियन और वर्ल्ड चैंपियन में अपनी जीत दर्ज कर चुकी थीं। उसके बावजूद उन पर प्रतिबंध लगाए गये। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
इस साल के अप्रैल के महीने में एशियन ओलम्पिक क्वालीफाई टूर्नामेंट में जाने के समय जब उनके साथ अपने कोच और फिजियो को साथ ले जाने को लेकर अडंगेबाजी हुई, तब उन्होंने एक्स पर अपने खिलाफ की जा रही साजिशों को लेकर लिखा। ठीक यही घटना टोक्यो ओलम्पिक के दौरान भी हुई थी, जब फिजियो को साथ जाने नहीं दिया गया था।
2022 के मध्य से भारत के कुश्ती फेडरेशन को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी थी। इस वर्ष के अंत तक इसके अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को लेकर खिलाड़ी और सरकार के बीच चली बातों से कोई नतीजा नहीं निकला। अंततः लगभग 30 खिलाड़ी जनवरी, 2023 के मध्य में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के लिए उतरे।
2023 की गर्मियों में वादे बावजूद सरकार की ओर हल करने की ओर कोई कदम नहीं उठाया गया। यहां तक कि खिलाड़ियों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज तक नहीं किया जा रहा था। खिलाड़ी प्रधानमंत्री मोदी से महज एक आश्वासन चाहते थे कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी और खिलाड़ियों को सुना जाएगा। पदक जीतने वाले खिलाड़ियों से सीधी बात करने वाले प्रधानमंत्री मोदी इन खिलाड़ियों की सुनना तो दूर, इनके मंत्री खिलाड़ियों के खिलाफ जहर उगलने में लग गये।
28 मई, 2023 को उन्हें पुलिस द्वारा घसीटा गया। उन्हें धमकियां दी गईं। उनका रास्तों में पीछा किया गया। ये सारे विवरण आज भी मीडिया में दर्ज हैं और उन्हें देखा जा सकता है। भारत की जनता और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद अंततः फेडरेशन को भंग किया गया और नया अध्यक्ष चुना गया। यह भी एक विवादास्पद मामला रहा। विनेश, बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक और अन्य खिलाड़ियों हार नहीं मानी।
एक ऐसे दौर में जब कैरियर बनाने में बहुतेरों की रीढ़ की हड्डियां हमेशा के लिए झुक जाती हैं, ऐसे में जब जमीर को दांव पर लगा दिया जाता है और नैतिकता का मजाक उड़ाया जाता है, …उस समय विनेश फोगाट ने बिना समझौता किये सड़क पर उतरकर जिस लड़ाई को अंजाम दिया, वह एक शानदार उदाहरण बना। आज, जब सारी मीडिया और सोशल मीडिया पर पेरिस ओलम्पिक में उसकी शानदार जीत का जश्न मनाया जा रहा है तो साथ ही साथ जंतर-मंतर पर उनके घसीटे जाने का दृश्य भी साथ चल रहा है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के संवाददाता मिहिर वासवदा ने जापान की महान खिलाड़ी सुसाकी को उद्धृत किया हैः ‘‘यह ओलम्पिक सिर्फ मेरे लिए नहीं था। बहुत से लोग मुझे देखने के लिए यहां आये थे, मेरा परिवार, मेरे दोस्त और मेरे साथ के लोग। मैं तो सिर्फ उनसे माफी ही मांग सकती हूं। मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा है कि यह ऐसे घटित हो जाएगा।’’
वासदा जापानी मीडिया के एक रिपोर्टर के हवाले से बताते हैंः ‘‘आज जापान में यह सबसे बड़ी खबर है।’’ यहां हम सुसाकी और उस रिपोर्टर से माफी मांगते हुए, यही बात भारत के संदर्भ में दुहारा सकते हैं कि विनेश फोगाट की जीत भारत के लिए आज सबसे बड़ी खबर है। और, जब विनेश फोगाट की मीडिया में चर्चा तक नहीं थी, उसे आज हम दो मोर्चों पर एक साथ जीतते हुए देख रहे हैं। यूई सुसाकी, तुम्हारी हार भारत में एक हारे हुए खेल की ऐसी जीत है जिससे करोड़ों भारतीय जीत गये हैं!
विनेश फोगाट की जीत उन सभी के लिए है जो कैरियर बनाने के लिए एक नागरिक होना, एक इंसान होना छोड़ दिया है। उन्होंने न खेल छोड़ा और न जुल्म के खिलाफ अपना प्रतिरोध करना छोड़ा। आम तौर पर खिलाड़ी कैरियर के लिए दमन के सामने इतना दब जाते हैं, जिसमें उनकी आवाज गुम हो जाती है। कैरियर के लिए वह ऑफिसों से लेकर अपने घरों में एक सुरक्षित कोना तलाशते हैं जो उन्हें कभी नहीं मिलता।
वे उत्पीड़न सहते हुए भयावह मानसिक यातना में दफ्न होते-होते खत्म हो जाते हैं, लेकिन आवाज नहीं उठाते। जिनके दरवाजों पर ‘नो पॉलिटिक्स’ का पोस्टर चस्पा रहता है। विनेश फोगाट की जीत उन सभी के लिए संदेश है जो ‘जंतर-मंतर’ पर उतरने को तौहीन की तरह देखते हैं और अमेरीका जाने के ख्वाब में अपने ही देश का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। विनेश फोगाट निश्चित ही आज के युवाओं की मॉडल है, उनकी जीत में इस देश की उम्मीदों का परचम ऊपर उठा है।
(अंजनी कुमार लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)