नई दिल्ली। दक्षिण भारत के दो राज्यों के केरल और तमिलनाडु के बाद राजस्थान सरकार ने मंदिरों में दलित, आदिवासी, पिछड़ा और महिलाओं को पुजारी नियुक्त किया है। सरकार के इस फैसले का जहां समाज के विभिन्न समुदायों ने स्वागत किया है वहीं ब्राह्मण पुजारियों की संस्था पुजारी परिषद और विप्र फाउंडेशन ने इन नियुक्तियों पर एतराज जताया है। विप्र फाउंडेशन ने मंदिरों में गैर ब्राह्मणों की नियुक्तियों को निरस्त करने के लिए राज्यपाल कलराज मिश्र से हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।
अशोक गहलोत सरकार ने राज्य की राजधानी जयपुर में स्थित प्रमुख 22 मंदिरों में समाज के विभिन्न तबकों के लोगों को नियुक्त किया है। यह नियुक्ति राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग के अंतर्गत आने वाली मंदिरों में हुई है। ये सारे पुजारियों का चयन लिखित परीक्षा के आधार पर हुआ है। पुजारी भर्ती परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों का मेरिट के आधार चयन कर राजस्थान सरकार ने जयपुर शहर के 22 मंदिरों में देवस्थान विभाग के माध्यम से 16 जून को नियुक्ति दे दी।
दरअसल, राजस्थान में मंदिरों में पुजारी की नियुक्ति को लेकर लंबे समय से योजना बन रही थी। वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने 2013 में राज्य सरकार के देवस्थान विभाग के मंदिरों में रिक्त चल रहे सेवागीर और पुजारी पदों पर भर्ती निकाली थी। इन पुजारी पदों पर भर्ती में आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। तब सरकार ने 65 पुजारियों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी। वसुंधरा सरकार ने 2014 में इसके लिए भर्ती प्रक्रिया और प्रशिक्षण की व्यवस्था की थी। तत्कालीन सरकार ने 2014 में मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय उदयपुर को कार्य एजेंसी नियुक्त कर भर्ती परीक्षा का आयोजन करवाया था। लेकिन उस परीक्षा का न परिणाम घोषित किया गया और न गैर-ब्राह्मणों को पुजारी नियुक्त किया गया।
कांग्रेस की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हस्तक्षेप से पुजारी भर्ती परीक्षा के परिणाम 9 साल बाद सितम्बर 2022 में जारी हुआ। संस्कृत शिक्षा के अंतर्गत न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता प्रवेशिका थी। चूंकि यह सरकारी भर्ती थी, इसलिए आरक्षण के नियमों का पालन करना था, जिसके परिणामस्वरूप एससी-एसटी, ओबीसी का चयन हुआ।
उदयपुर पुजारी परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारी हेमेंद्र पुजारी ने गैर ब्राह्ममणों को मंदिरों में पुजारी नियुक्त करने पर कड़ा एतराज जताते हुए नियुक्ति निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि हर मन्दिर में पूजा का एक विधान तय होता है। वर्णव्यवस्था के तहत पूजा की विधि भी तय होती है। हर समुदाय के भी अलग मन्दिर होते हैं। सरकार मन्दिर और समाज के विधान के खिलाफ जाकर काम कर रही है, जिसका विरोध होगा।
विप्र फाउंडेशन प्रदेशाध्यक्ष राजेश कर्नल ने कहा कि हमारा किसी समुदाय विशेष या जाति से विरोध नहीं है। सरकार सभी वर्गों के लिए सफाईकर्मियों की भर्ती निकालती है। इस पर दलित समाज विरोध करता है और सरकार सामान्य वर्ग को हटाकर केवल दलित समाज के लिए ही सफाईकर्मी के पद आरक्षित रख देती है।
इसी तरह हिन्दू सनातन धर्म की संस्कृति के अपने मापदंड है। जिस तरह मुस्लिम, ईसाई, और सिखों की अपनी संस्कृति है। इनके अपने धर्म स्थलों में कोई दूसरे धर्म, संस्कृति का पुजारी पूजा नहीं कर सकता। इनके अपने विधान से पूजा होती है। अनादिकाल से यह व्यवस्था चली आ रही है। यह सरकार इस तरह का काम कर समाज को आपस में लड़ा रही है।
सर्वब्राह्मण महासभा ने राज्य सरकार के इस निर्णय का विरोध किया है। महासभा ने गहलोत सरकार से मांग की है कि देवस्थान विभाग के मंदिरों में सिर्फ ब्राह्मण पुजारियों को ही नियुक्ति दी जाए अन्य वर्ग के पुजारियों की नियुक्ति बर्दाश्त नहीं करेगें। सर्वब्राह्मण महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष दिनेश शर्मा ने कहा कि इस तरह की भर्ती करने के पहले कानून के साथ-साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए था कि अनेक कार्य कुछ समुदाय या जाति विशेष ही करता आ रहा है।
पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष भंवर मेघवंशी ने कहा कि सामाजिक समरसता के लिए यह स्वागत योग्य कदम है। अगर कोई इसका विरोध करता है तो इसका मतलब है कि समाज में असमानता की भावना अभी भी कायम है।
राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष शास्त्री कोसलेंद्र दास ने कहा कि सभी को इसका अधिकार है। लेकिन प्राचीन मंदिरों की पूजा-अर्चना और सेवा पद्धति को उनकी प्रतिष्ठा के समय तय किये गये क्रम को बनाये रखना देवस्थान विभाग का दायित्व है।
( जनचौक की रिपोर्ट)