Saturday, April 27, 2024

अरुणाचल में नाम बदलने की खुराफात के पीछे,आखिर चीन की मंशा क्या है?

भारत ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का नाम बदलने के प्रयास को सिरे से खारिज कर दिया है। इसके बाद बीजिंग ने 4 अप्रैल को इस क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता का दावा किया है। चीन का यह कदम तब सामने आया है जब भारत ने हाल ही में सीमावर्ती राज्य अरुणाचल प्रदेश में जी 20 कार्यक्रमों की श्रृंखला के तहत एक अहम बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में चीन शामिल नहीं हुआ था। अब कुछ दिन बाद उसने एक बार फिर भारत को उकसाने की कोशिश की है।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने एक नियमित संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘’ज़ंगनान’ (अरुणाचल प्रदेश) चीन के क्षेत्र का हिस्सा है। राज्य परिषद के भौगोलिक नामों के प्रशासन की प्रासंगिक शर्तों के अनुसार, चीनी सरकार के सक्षम अधिकारियों ने ‘ज़ंगनान’ के कुछ हिस्सों के नामों को मानकीकृत किया है। यह चीन के संप्रभु अधिकारों के भीतर है।”

इससे पहले भारत के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहेगा।

चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों का नाम बदलने के संबंध में मीडिया के सवालों के जवाब में अरिंदम बागची ने एक बयान में कहा, “हमने ऐसी रिपोर्ट देखी है। यह पहली बार नहीं है जब चीन ने इस तरह का प्रयास किया है। हम इसे सिरे से खारिज करते हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविच्छेद्य अंग है और हमेशा रहेगा। आविष्कृत नामों को देने का प्रयास इस वास्तविकता को नहीं बदलेगा।”

व्हाइट हाउस ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका भारतीय क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश पर दावा करने के चीन के प्रयासों का “दृढ़ता से विरोध” करता है।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव काराइन जीन-पियरे ने कहा। “यह भारतीय क्षेत्र पर चीनी दावे का एक और प्रयास है। इसलिए जैसा कि आप जानते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका ने लंबे समय से उस क्षेत्र को मान्यता दी है और हम इलाकों का नाम बदलकर क्षेत्र के दावे को आगे बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं,”

‘ग्लोबल टाइम्स’ की खबर के मुताबिक, स्टेट काउंसिल, चीन की कैबिनेट द्वारा जारी किए गए भौगोलिक नामों के नियमों के अनुसार, चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों के नाम चीनी अक्षरों, ‘तिब्बती और पिनयिन’ में जारी किए।

मंत्रालय ने 2 अप्रैल को 11 स्थानों के नामों की घोषणा की और दो आवासीय क्षेत्रों, पांच पर्वत चोटियों, दो नदियों और दो अन्य क्षेत्रों सहित सटीक निर्देशांक भी दिए। समाचार रिपोर्ट के अनुसार, चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने भी स्थानों के नाम और उनके अधीनस्थ प्रशासनिक जिलों की श्रेणी सूचीबद्ध की है।

‘ग्लोबल टाइम्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश में मंत्रालय द्वारा घोषित भौगोलिक नामों का यह तीसरा बैच है। समाचार रिपोर्ट के अनुसार छह स्थानों के मानकीकृत नामों का पहला बैच 2017 में जारी किया गया था, और 15 स्थानों का दूसरा बैच 2021 में जारी किया गया था।

पिछले साल दिसंबर में, केंद्र सरकार ने कहा कि उसने चीन द्वारा “अपनी भाषा में” अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों का नाम बदलने का प्रयास करने की रिपोर्ट देखी है और कहा कि सीमावर्ती राज्य हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा।

चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में कुछ स्थानों का नाम अपनी भाषा में बदलने की खबरों पर मीडिया के सवाल के जवाब में,  भारत के आधिकारिक प्रवक्ता बागची ने कहा कि चीन ने अप्रैल 2017 में भी ऐसे नामों को निर्दिष्ट करने की मांग की थी।

2017 में पहली बार नाम छह स्थानों के नामों के मानकीकरण पर टिप्पणी करते हुए चीनी विशेषज्ञों ने कहा था कि यह “दक्षिण तिब्बत के विवादित क्षेत्र में देश की क्षेत्रीय संप्रभुता की पुष्टि” करने के लिए एक कदम है। स्थानों का नामकरण दक्षिण तिब्बत में चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता की पुष्टि करने के लिए एक कदम है।”

चीनी विशेषज्ञों ने कहा कि क्षेत्रों के नामों का वैधीकरण कानून के शासन का एक हिस्सा है। “ये नाम प्राचीन काल से मौजूद हैं, लेकिन पहले कभी भी मानकीकृत नहीं किए गए थे। इसलिए नामों की घोषणा एक उपचार की तरह है।

गुओ केफन, जो तिब्बत एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के एक शोध विद्यार्थी हैं, ने कहा कि संस्कृति और भूगोल के दृष्टिकोण से नामों का मानकीकरण एक संदर्भ के रूप में काम कर सकता है जब चीन और भारत भविष्य में सीमा मुद्दों पर बातचीत करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, “दक्षिण तिब्बत क्षेत्र चीन की दक्षिण-पश्चिमी सीमा और भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा के साथ स्थित है, जहां चीन-भारत सीमा विवाद है।”

गुओ ने दावा किया कि भारत ने “अचानक घोषणा की कि वह आधिकारिक तौर पर इस क्षेत्र को ‘अरुणाचल प्रदेश’ के रूप में नामित कर रहा है, लेकिन चीनी सरकार ने न तो इस क्षेत्र पर भारत के कब्जे को मान्यता दी है, न ही प्रांत की वैधता को”।

पिछले कुछ वर्षों में चीन और भारत के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच डोकलाम को लेकर तनाव देखने को मिला था। पूर्वी लद्दाख में 2020 में गतिरोध देखने को मिला था। पिछले साल दिसंबर में अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प भी हुई।

इसमें भारत के छह जवान घायल हुए, जबकि चीन के 19 से ज्यादा सैनिकों को गंभीर चोटें लगी। इसके अलावा व्यापार को लेकर भी चीन और भारत के बीच तनाव रहा है। भारत ने पिछले कई वर्षों में ‘टिकटॉक’ समेत कई चीनी एप को बैन किया है।

(दिनकर कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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