Tuesday, April 23, 2024

‘सीबीआई-आईबी जब सुप्रीमकोर्ट की नहीं सुनती तो आम लोगों की हैसियत ही क्या’

क्या आपको विश्वास है कि देश की प्रमुख जाँच एजेंसियां केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) उच्चतम न्यायालय की बात भी अनसुनी करती हैं और न्यायपालिका कोई शिकायत करती है तो एक कान से सुनती हैं और दूसरे कान से निकाल देती हैं। नहीं न! लेकिन यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि उच्चतम न्यायालय ने धनबाद (झारखंड) के जज उत्तम आनन्द की संदिग्ध मौत के मामले की सुनवाई का दौरान कहा है। इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि जाँच एजेंसियां कितनी निरंकुश हो गयी हैं और देश कहाँ जा रहा है। जब देश के शीर्ष अदालत की बात को तवज्जो नहीं दी जाती तो आम आदमी तो पहले से ही व्यवस्था के हाशिये पर है।     

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) को कड़े शब्दों में फटकार लगाते हुए कहा कि वे न्यायपालिका की बिल्कुल भी मदद नहीं करते हैं, भले ही न्यायाधीश उन्हें मिलने वाली धमकियों का आरोप लगाते हुए शिकायतें दर्ज कराते हैं। कोर्ट ने कहा कि गैंगस्टर या हाई प्रोफाइल लोगों से जुड़े मामलों में जजों को कई बार मानसिक रूप से प्रताड़ित और धमकाया जाता है लेकिन सीबीआई या पुलिस से शिकायत करने पर कोई नतीजा नहीं निकलता।

उच्चतम न्यायालय ने जजों को धमकी देने की शिकायतों पर संतोषजनक जवाब नहीं देने पर शुक्रवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो और खुफिया ब्यूरो पर नाराजगी जताई। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने सीबीआई के खिलाफ तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि, सीबीआई ने कुछ नहीं किया और इसके रवैये में अपेक्षित बदलाव नहीं हुआ है।

चीफ जस्टिस ने यह टिप्पणी तब की जब पीठ पिछले सप्ताह झारखंड के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश उत्तम आनंद की हत्या के मामले के मद्देनजर न्यायाधीशों और अदालतों की सुरक्षा के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान मामले पर विचार कर रही थी।

चीफ जस्टिस रमन्ना ने भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि न्यायाधीशों पर न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी हमला किया जा रहा है। व्हाट्सएप पर डराने वाले संदेश भेजकर, सोशल मीडिया में पोस्ट प्रसारित किये जा रहे हैं। सीजेआई ने कहा कि कुछ जगहों पर ऐसे मामलों में सीबीआई जांच के आदेश दिए गए हैं। सीजेआई पिछले साल आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का जिक्र कर रहे थे, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ सोशल मीडिया पर धमकी भरे पोस्ट की सीबीआई जांच का निर्देश दिया गया था।

चीफ जस्टिस ने अटॉर्नी जनरल से कहा, “एक या दो जगहों पर, अदालतों ने सीबीआई जांच का आदेश दिया। यह कहना दुखद है कि सीबीआई ने कुछ नहीं किया है। हमें सीबीआई के रवैये में कुछ बदलाव की उम्मीद थी, लेकिन कोई बदलाव नहीं हुआ है। हमें यह देखकर दुःख होता है। चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि प्रतिकूल आदेश पारित होने पर न्यायाधीशों को बदनाम करने का एक नया चलन बनता जा रहा है। यदि कोई प्रतिकूल आदेश पारित किया जाता है तो न्यायपालिका को बदनाम किया जाता है। न्यायाधीशों की शिकायत के बावजूद, कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। सीबीआई, आईबी आदि न्यायपालिका की बिल्कुल भी मदद नहीं कर रहे हैं। सीजेआई ने कहा कि वह ये टिप्पणियां जिम्मेदारी की पूरी भावना के साथ कर रहे हैं।

पीठ ने झारखंड के न्यायाधीश की मौत की जांच में प्रगति के बारे में अदालत को अवगत कराने के लिए सोमवार, 10 अगस्त को सीबीआई को उपस्थित होने को कहा। पीठ ने 2019 में दायर एक रिट याचिका पर भारत संघ से शीघ्र जवाब मांगा, जिसमें न्यायाधीशों और अदालतों के लिए एक विशेष सुरक्षा बल की मांग की गई थी। इस याचिका को आज इस स्वत: संज्ञान मामले के साथ सूचीबद्ध किया गया था।

सीजेआई ने कहा कि हालांकि रिट याचिका 2019 में दायर की गई थी, केंद्र ने अभी तक अपना जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है। न्यायाधीश उत्तम आनंद की मौत के बारे में सीजेआई ने टिप्पणी किया कि एक युवा न्यायाधीश की मौत के दुर्भाग्यपूर्ण मामले को देखें। यह राज्य की विफलता है। न्यायाधीशों के आवासों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

झारखंड के महाधिवक्ता राजीव रंजन ने पीठ को सूचित किया कि राज्य सरकार ने मामले की जांच के लिए तुरंत एक विशेष जांच दल का गठन किया था और अपराध के उसी दिन एसआईटी ने ऑटो-रिक्शा में सवार दो लोगों को गिरफ्तार किया था, जिन्होंने सुबह की सैर के दौरान न्यायाधीश उत्तम आनंद को ऑटो के धक्का दे नीचे गिरा दिया। महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि सीबीआई ने राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर जांच अपने हाथ में ले ली है।

सीजेआई ने महाधिवक्ता से पूछा तो आपने अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ धो लिया ? एडवोकेट जनरल ने जवाब दिया कि इस मामले में सीमा पार से निहितार्थ और बड़ी साजिश होने की आशंका है और इसलिए सीबीआई को यह मामला सौंपा गया। पीठ के एक प्रश्न का उत्तर देते हुए, एजी ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने न्यायाधीशों के आवासों को सुरक्षा देने के आदेश जारी किए हैं, जैसा कि पिछले सप्ताह झारखंड उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। मामले पर अगली सुनवाई 9 अगस्त सोमवार को होगी।

सीजेआई ने इस मामले में जिस तरह का रवैया अपनाने के लिए जाँच एजेंसियों की तीखी आलोचना की है वैसी ही आलोचना झारखंड उच्च न्यायालय ने इसी हफ़्ते झारखंड पुलिस की भी की थी। इसने कहा था कि झारखंड पुलिस ‘एक ख़ास जवाब पाने के लिए ख़ास सवाल पूछ रही है। कोर्ट ने कहा कि यह सही नहीं है।

धनबाद ज़िले की यह घटना 28 जुलाई को हुई थी। शुरुआती रिपोर्ट आई थी कि जज की मौत ऑटो की टक्कर से हुई। लेकिन इसके साथ ही हत्या की आशंका जताई जा रही थी। बाद में इस घटना का वीडियो आने पर वह आशंका और पुष्ट हुई कि यह टक्कर जानबूझकर मारी गई है। घटना सुबह उस वक़्त हुई थी जब एडिशनल जज उत्तम आनंद मॉर्निंग वॉक पर थे। वीडियो क्लिप में दिख रहा था कि जज उत्तम आनंद सड़क किनारे मॉर्निंग वॉक पर थे और पूरी सड़क खाली थी। लेकिन ऑटो ड्राइवर ऑटो को बीच सड़क से किनारे ले आया और जज को टक्कर मारकर फरार हो गया। बाद में ऑटो को जब्त कर लिया गया था। उस ऑटो को चुराया गया था। काफ़ी पहले ही दो लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है।

तब घटना के दूसरे दिन ही उच्चतम न्यायालय में इस मामले को उठाया गया था। इसी मामले की शुक्रवार फिर से सुनवाई हुई। इसी दौरान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने कहा कि जब हाई प्रोफाइल मामलों में अनुकूल आदेश पारित नहीं किए जाते तो न्यायपालिका को बदनाम करने की प्रवृत्ति थी। उन्होंने कहा कि गैंगस्टरों से जुड़े हाई प्रोफाइल मामलों में वाट्सऐप और फेसबुक पर अपमानजनक संदेश न्यायाधीशों को मानसिक रूप से परेशान करने के लिए भेजे जाते हैं। उन्होंने कहा कि सीबीआई ने कुछ नहीं किया है। सीजेआई रमन्ना ने कहा कि जब न्यायाधीश सीबीआई और खुफिया ब्यूरो से धमकी की शिकायत करते हैं तो वे कोई जवाब नहीं देते।


(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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