Friday, April 19, 2024

अरविन्द शर्मा को उपाध्यक्ष बनाया जाना क्या मोदी शाह के पराभव की शुरुआत है?

देश विशेषकर उत्तरप्रदेश की राजनीति में यदि आने वाले दिनों में भाजपा में वनवास झेल रहे संजय जोशी, जो नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी माने जाते हैं, की सक्रिय वापसी होती है तो यह तय मानें कि 2022 नहीं 2024 में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार शाह का पूरी तरह पराभव निश्चित है। इसके संकेत यूपी, कर्नाटक और मध्यप्रदेश से आने शुरू हो गये हैं। यूपी में तो दिल्ली दरबार के खिलाफ खुलकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आने और मध्यप्रदेश और कर्नाटक में शिवराज सिंह चौहान और येदियुरप्पा के खिलाफ आलाकमान की शह पर चल रही असंतुष्ट गतिविधियों पर संघ के कठोर रुख के कारण पार्टी नेतृत्व को खुलकर लगाम लगाने की कवायद करनी पड़ रही है। इसकी कल्पना कभी सपने में भी प्रधानमन्त्री मोदी ने नहीं की होगी।

दिल्ली दरबार के पराभव की शुरुआत का एक प्रमाण यूपी है, जहाँ नरेंद्र मोदी के चहेते पूर्व आईएएस अधिकारी अरविन्द शर्मा को डिप्टी सीएम के बजाय प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष के पद से संतोष करना पड़ा है। इसे भी गोदी मीडिया में काफी महिमा मंडित किया जा रहा है पर इसकी वास्तविक महिमा का अंदाजा केवल इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि क्या आपको मालूम है कि भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष या जहाँ-जहाँ भाजपा की प्रदेश सरकारें हैं वहां के प्रदेश भाजपा उपाध्यक्षों के क्या नाम हैं और उनके जिम्मे कौन सी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां पार्टी ने दे रखी है? अपवाद छोड़कर आपका जवाब नहीं में ही होगा। राम जन्म भूमि न्यास के जमीन घोटाले और इसमें विहिप के चम्पत राय की कथित भूमिका सामने आने से भी दिल्ली दरबार रक्षात्मक मुद्रा में है और इस प्रकरण में माना जा रहा है कि इन दस्तावेजों को जानबूझकर लीक कराया जा रहा है।

दरअसल जिस दिन से यूपी की राजनीति में बवंडर उठा है उस दिन से ही योगी के तेवर तल्ख हैं। जहाँ योगी ने ताबड़ तोड़ पूरी यूपी का दौरा शुरू किया है वहीं प्रधानमन्त्री के क्षेत्र में पूर्वांचल बिजली वितरण निगम के चेयरमैन सरोज कुमार आईएएस को निलंबित करके अपने तल्खी को पार्टी आलाकमान तक पहुंचा दिया है। यूपी में बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा योगी के विरोधी और दिल्ली दरबार के नजदीकी माने जाते हैं। मामला यहीं नहीं रुका, मुख्यमंत्री योगी ने जल निगम के चीफ इंजीनियर और नगर आयुक्त को भी हालात में सुधार करने के सख्त निर्देश दिये हैं।

कोरोना की दूसरी लहर में अरविन्द कुमार शर्मा की यूपी के पूर्वांचल इलाके में सक्रियता रही। जहां एक ओर योगी कैबिनेट के मंत्री, सांसद, विधायक इस बात का रोना रोते रहे कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही है, तो वहीं राजनीति में महज पांच महीने पुराने एके शर्मा पूर्वांचल के जिलों में समीक्षा बैठक लेकर अधिकारियों को दिशा-निर्देश देते देखे गए। नौकरशाही उनके चरणों में कृपा पाने को गिर गयी लेकिन योगी द्वारा वाराणसी में एक आईएएस के निलंबन से नौकरशाही में हड़कम्प मच गया है और यह स्पष्ट हो गया है कि योगी सत्ता का दूसरा केंद्र नहीं बनने देंगे। इसके एक दिन बाद ही अरविन्द कुमार शर्मा को पार्टी उपाध्यक्ष बनाये जाने का निहितार्थ आसानी से समझा जा सकता है।

पीएम के करीबी पूर्व आईएएस अधिकारी और बीजेपी एमएलसी अरविंद कुमार शर्मा को संगठन में प्रदेश उपाध्यक्ष जैसा अलंकारिक पद दिया गया है, यानी सरकार में उनका कोई रोल नहीं रहेगा। इससे उन अटकलों को जरूर तगड़ा झटका लगा है, जिनमें उन्हें कैबिनेट मंत्री, उपमुख्यमंत्री और जाने क्या-क्या बनाए जाने की बातें की जा रही थीं। एके शर्मा को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाए जाने की खबर के बाद इसे उनके डिमोशन  और पार्टी आलाकमान पर योगी के भारी पड़ने के तौर पर भी देखा जा रहा है।

पिछले दिनों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली का दौरा किया था और गृह मंत्री अमित शाह, पीएम मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी। उनके दौरे से पहले से अटकलें लगाई जा रही थीं कि योगी कैबिनेट में बड़ा फेरबदल हो सकता है, उनके दौरे के बाद इन अटकलों को और बल मिला। यह भी तय माना जा रहा था कि अगर कैबिनेट विस्तार हुआ तो मोदी के करीबी एके शर्मा को बड़ा पद मिल सकता है। हालांकि अभी तक ऐसे किसी कैबिनेट विस्तार की दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आ रही है और कहा जा रहा है जुलाई में कभी कैबिनेट विस्तार पर विचार किया जायेगा। आलाकमान के दबाव के बावजूद योगी ने अभी तक अपने मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किया है, इसे भी योगी के भारी पड़ने का संकेत माना जा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ समय से ब्राह्मणों को साधने की कोशिश भी करती नजर आ रही है। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि यूपी में ब्राह्मण बीजेपी और सीएम योगी आदित्यनाथ से नाराज चल रहे हैं। मगर राज्य में ब्राह्मण वोटरों की अच्छी खासी तादाद को देखते हुए पार्टी चुनाव से ठीक पहले उनकी नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगी। ब्राह्मण कार्ड के तहत भले ही जितिन प्रसाद को भाजपा में लाया गया हो लेकिन बड़े चेहरे के तहत संजय जोशी को आगे करने पर संघ में विचार चल रहा है। संघ का मानना है कि संजय जोशी के आने से  बिखरते ब्राहमण वोट बैंक का डैमेज कंट्रोल करने में मदद मिलेगी। जोशी में इतनी क्षमता है कि वे पार्टी में संवाद हीनता के कारण पनप रहे असंतोष को अपनी वाकपटुता और व्यवहार कुशलता से आसानी से दूर कर सकते हैं। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि संजय जोशी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते हैं। मोदी का पार्टी में कद बढ़ने के बाद जोशी पूरी तरह हाशिए पर धकेल दिया गया था लेकिन अब परिस्थितियाँ उलटी दिशा की ओर चल रही हैं।

इस हकीकत से कोई इंकार नहीं कर सकता कि भाजपा के आंतरिक सत्ता संघर्ष में मोदी पर योगी चाहे जितना भारी पड़ें लेकिन सुशासन के स्तर पर उनकी उपलब्धियां नहीं के बराबर हैं। कोरोना की दूसरी लहर में गंगा जी में बहती लाशें हों, लव जिहाद और कोरोना कंट्रोल को लेकर में कोर्ट से किरकिरी हो, सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पोस्टर बाजी और बेजा सख्ती हो, योगी मोदी के लिए नेशनल और इंटरनेशनल सुर्खियां बटोरते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार भी हर मोर्चे पर फेल है। कोरोना की बदइन्तजामी ने मोदी की लोकप्रियता को तार तार कर दिया है और रही सही कसर सुप्रीमकोर्ट ने तीखी आलोचना करके पूरी कर दी है। फिर संघ के जमीनी कार्यकर्ताओं का फीडबेक मोदी सरकार के खिलाफ है।

अरविन्द शर्मा प्रकरण से संघ के आगे दूसरी बार पीएम मोदी को झुकना पड़ा है। इससे पहले जब यूपी का सीएम चुनने की बारी आयी थी तो भाजपा के वरिष्ठ नेता और मोदी के करीबी माने जाने वाले मनोज सिन्हा को यूपी का सीएम बनाए जाने की काफी अटकलें चलीं थीं। यहां तक कि मनोज सिन्हा को संसद में भी यूपी का नया मुख्यमंत्री बनाए जाने की बधाई भी दे दी गई थी, लेकिन आखिरी वक्त में संघ ने योगी के नाम पर मुहर लगा दी थी।

सरकार के कुशासन से आम जनता में भाजपा की गिरती छवि से संघ कितना परेशान है यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि संघ ने निर्णय किया है कि सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले को मुख्यालय नागपुर के बजाय लखनऊ में बैठेंगे । पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी प्रधानमंत्री मोदी और सरसंघचालक भागवत के बीच समन्वय का काम देखेंगे और बहुत संभव है कि वे दिल्ली में रहें। सरसंघचालक नागपुर में ही रहेंगे। सहसरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य को भोपाल मुख्यालय दिया गया है।

 (वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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